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मानवपुत्र ईसा जीवन और दर्शन

रघुवंश

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :291
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9321
आईएसबीएन :9788180312267

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मानवपुत्र ईसा विश्वविख्यात चरितावली में मानवपुत्र ईसा का नाम प्रथम पंक्ति में है। उनका जीवन एक स्तर पर जितना सुस्पष्ट और सुलिखित है उतना ही उसके विविध पक्षों की व्याख्या को लेकर विद्वानों और विचारकों में मतभेद रहा है। वे ईश्वर के बेटे हैं पर मानवपुत्र कहे जाते हैं। इस रूप में लौकिक और अलौकिक संसार को वे बड़ी खूबी से जोड़ते हैं। उनके सीधे-सादे जीवनवृत्त में सृष्टि के अनेक रहस्य अंतर्निहित हैं। इस स्थिति में ईसा का जीवन आरंभ से ही बड़े-बड़े जीवनीकारों, दार्शनिकों और कलाकारों के लिए सूक्ष्म जिज्ञासा का विषय रहा है।

पश्चिमी संसार की कलाओं का एक बहुत बड़ा भाग ईसा के जीवन-चरित से प्रेरित और प्रभावित है। भारत के बड़े-बड़े मनीषी भी उनके व्यक्तित्व से सीखते हैं। महात्मा गांधी के लिए अत्यन्त प्रेरक प्रसंगों में से एक पर्वत-प्रवचन का रहा है। ऐसे सरल पर उलझे हुए चरित को लिखना किसी भी लेखक के लिए योग्य चुनौती है।

डॉ. रघुवंश ने केवल ईसा की कहानी नहीं कह दी है वरन् अपनी भाषा में उसका पुनः सृजन किया है। वृत्त, चरित और जीवनी से आगे वह रचनात्मक साहित्य बनने के लिए प्रस्तुत है। इलाहाबाद कैथलिक सैमिनरी के कई विद्वानों ने उसे पढ़ा और देखा है। इस रूप में जहाँ एक ओर उसका साहित्यिक पक्ष विकसित है, वहीं उसका वृत्ताधार प्रामाणिक और परीक्षित, और इन दोनों स्तरों पर वह आकर्षक पाठ्य-सामग्री सिद्ध होगी।

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