पर्यावरणीय >> जिगरी जिगरीपी. अशोक कुमार
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘जिगरी’ अशोक कुमार का सर्वाधिक चर्चित और पुरस्कृत उपन्यास है, जिसे इन्होंने एक हफ्ते तक एक मदारी के साथ रहकर उसके पेशे और उसके भालू के स्वाभाव-व्यवहार का अध्ययन करने के बाद लिखा था !
‘अमेरिकन तेलुगु एसोसिएशन’ की उपन्यास लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार के लिए चुने जाने के बाद इसका यह हिंदी अनुवाद 2008 में साहित्य अकादेमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ में प्रकाशित हुआ !
उपन्यास की लोकप्रियता का यह प्रमाण है कि उस हिंदी अनुवाद के आधार पर इसके मराठी, पंजाबी, ओड़िया, कन्नड़, बांग्ला, मैथिली आदि भाषाओं के अनुवाद पुस्तकाकार प्रकाशित हुए हैं ! बाद में इसका अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ ! अति संवेदनशील कथानक से युक्त इस उपन्यास में एक भालू और एक मदारी की कथा है, जिसमे मदारी की जीविका का आधार बने भालू के हाव-भाव, क्रिया-कलापों, क्रोध, अपनत्व आदि का तथा मदारी के साथ उसके आत्मीय संबधों का मार्मिक चित्रण किया गया है !
यह है तो एक लघु उपन्यास पर सवाल बड़े खड़े कर देता है ! ‘वन्य जीव संरक्षण कानून’ वन्य प्राणियों के संरक्षण की दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम है ! लेकिन यहाँ यह भी सत्य कि प्राणी और मनुष्य के बीच प्रेम और ममता का ऐसा मजबूत सम्बन्ध होता है जो कानून का उल्लंघन भी लग सकता है ! आज जब मानवीय संवेदनाएँ मंद-दुर्बल पड़ती जा रही हैं, अधिकांशतः औपचारिक मात्र रह गई हैं, यह उपन्यास इन संवेदनाओं को बचाए रखने की आवश्यकता की ओर बरबस हमारा ध्यान खींचता है ! जीवंत अनुवाद में प्रस्तुत एक अत्यंत पठनीय उपन्यास !
‘अमेरिकन तेलुगु एसोसिएशन’ की उपन्यास लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार के लिए चुने जाने के बाद इसका यह हिंदी अनुवाद 2008 में साहित्य अकादेमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ में प्रकाशित हुआ !
उपन्यास की लोकप्रियता का यह प्रमाण है कि उस हिंदी अनुवाद के आधार पर इसके मराठी, पंजाबी, ओड़िया, कन्नड़, बांग्ला, मैथिली आदि भाषाओं के अनुवाद पुस्तकाकार प्रकाशित हुए हैं ! बाद में इसका अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ ! अति संवेदनशील कथानक से युक्त इस उपन्यास में एक भालू और एक मदारी की कथा है, जिसमे मदारी की जीविका का आधार बने भालू के हाव-भाव, क्रिया-कलापों, क्रोध, अपनत्व आदि का तथा मदारी के साथ उसके आत्मीय संबधों का मार्मिक चित्रण किया गया है !
यह है तो एक लघु उपन्यास पर सवाल बड़े खड़े कर देता है ! ‘वन्य जीव संरक्षण कानून’ वन्य प्राणियों के संरक्षण की दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम है ! लेकिन यहाँ यह भी सत्य कि प्राणी और मनुष्य के बीच प्रेम और ममता का ऐसा मजबूत सम्बन्ध होता है जो कानून का उल्लंघन भी लग सकता है ! आज जब मानवीय संवेदनाएँ मंद-दुर्बल पड़ती जा रही हैं, अधिकांशतः औपचारिक मात्र रह गई हैं, यह उपन्यास इन संवेदनाओं को बचाए रखने की आवश्यकता की ओर बरबस हमारा ध्यान खींचता है ! जीवंत अनुवाद में प्रस्तुत एक अत्यंत पठनीय उपन्यास !
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