हास्य-व्यंग्य >> स्कोलेरिस की छाँव में स्कोलेरिस की छाँव मेंपुरुषोत्तम अग्रवाल
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स्कोलेरिस की छाँव में
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वापसियों के थोक के थोक वापस चले आ रहे हैं। ऐसे में आपकी तो एकदम बेसिक-बल्कि रैडिकल वापसी थी, बॉस ! एकदम टू द रूट्स-अकबर इलाहाबादी की शिकायत, ज्ञानी जैलसिंह की मलामत और क्रिएशनिस्टों की हजामत के बावजूद-डार्विन को सही मानें तो एकदम टंच वापसी थी, बॉस, एकदम टंच ! ऊपर से मजा यह कि थिंक ग्लोबल-एक्ट लोकल; कॉरपोरेट प्लस एन.जी.ओ. प्रमाणित इडियम के सर्वथा अनुकूल भी। बाकी वापसियाँ डिफरेंट और स्पेसिफिक की वापसियाँ हैं, आइडेंटिटी की वापसियाँ हैं-आप तो पूज्यवर हम सबकी यूनिवर्सेलिटी और उसकी रूट्स-जड़ों की वापसी थे।
लेकिन साथ ही क्या कहने इस वापसी के अनमिस्टेकेबल लोकल टच के, हेल्मेट विभूषित आपका मुखमंडल बंधु भव्य बल्कि इरॉटिक तो लगता ही था - खास दिल्ली की खास पहचान भी तो बताता था। आपने याद दिलाया हम दिल्लीवालों को हमारा भविष्य कि बिना हेल्मेट पहने अब अपने घर में क्या बिस्तर में घुसना भी सेफ नहीं रहनेवाला। हालाँकि हेल्मेट भी किसी का क्या उखाड़ लेगा, लाला ? यह भी तो आपने ही अपने कपोलविदारक हृदयद्रावक तीक्ष्ण नख-समूह से सिद्ध कर डाला। इसीलिए अपन कहते भए कि आप ग्लोबल की भी वापसी थे, लोकल की भी। साइलेंट की वापसी भी, वोकल की भी।
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