नारी विमर्श >> खुलती गिरहे खुलती गिरहेदिलीप पांडेय
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘खुलती गिरहें’ उपन्यास में पांच अलग-अलग स्त्री किरदार हैं जो अपनी धुन में दुनिया के सामने अपने होने के अहसास को मजबूत कराती हुई दिखाई देती हैं ! उनकी जिंदगी की उधेड़बुन, उनकी जद्दोजहद, उनके अस्तित्व का संकरे पिंजरों की कैद से छूटकर बाहर निकलना और अपना आसमान तथा अपनी दिशा तय करना-सब कुछ उपन्यास में बहुत बारीकी से अभरता है ! हर जीवन-प्रसंग एक औरत में बहुत कुछ तोडना भी है, जोड़ता भी है! मुश्किलों से भरे जीवन में जब भी लगता है कि हिम्मत जवाब दे रही है तो कभी अवनि, कभी धरा, कभी गोमती, कभी वसुधा, कभी देवयानी का किरदार हमारे सामने आ जाता है और जीने की इच्छा फिर से जाग जाती है ! दरअसल, यह किताब एक उम्मीद है, दोस्ती से भरा एक हाथ है और हजारों अनकही कहानियों का सामने आना है !
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