रहस्य-रोमांच >> चकमा चकमावेद प्रकाश शर्मा
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
उसकी त्वचा का एक जर्रा भी नहीं चमक रहा था। पैरों में जुराब और क्रेपसोल के जूते। टांगों पर गर्म-काली पतलून, घुटनों तक की नीचाई वाला गर्म ओवरकोट, हाथों में दस्ताने, सिर पर गोल कैप, जिसका अग्रिम भाग अपनी अंतिम सीमा तक ललाट पर झुका था। कुछ तो उसके चेहरे को ओवरकोट के खड़े हुए कॉलर ने ढक लिया था, शेष को ढकने के लिए उसने गले और चेहरे पर गर्म मफलर लपेट लिया था।
वह एक शानदार ड्राइंगरूम के शानदार सोफे पर आराम से देता था। सोफा काठ का था और उस पर डनलप की शनील चढ़ी गद्दियां पड़ी थीं। सामने पड़ी छोटी टेबल पर उसने पैर फैला रखे थे। दस्तानों में धंसी उसकी अंगुलियों में एक सिगरेट थी-जिसमें वह कश मारने की कोई चेष्टा नहीं कर रहा था।
कमरे में ग्रीन नाइट बल्ब का बीमा प्रकाश विद्यमान था।
दीवार पर लगी एक शानदार घड़ी की ‘टिक...टिक’ के अतिरिक्त कहीं से कोई ध्वनि उत्पन्न नहीं हो रही थी। इस बंगले का ही नहीं - बल्कि पूरे शहर का वातावरण अंधेरे और सन्नाटे के आगोश में था।
घड़ी रात के बारह बजने की सूचना दे रही थी।
साढ़े बारह बजने वाले में छाए सन्नाटे को कॉलबेल की तीव्र आवाज ने झिंझोड़ दिया। इसका प्रभाव उस पर भी पड़े बिना नहीं रह सका। उसने शीघ्रता से मेज पर रखी ऐश-ट्रे में सिगरेट मसली और उठकर खड़ा हो गया।
इस बीच कॉलबेल दुबारा चीख पड़ी थी।
इसमें शक नहीं कि वह व्यक्ति बेहद लंबा था। यह तेजी के साथ ड्राइंगरूम एवं बेडरूम के बीच वाले दरवाजे की तरफ लपका। ‘की होल’ से आंख सटाकर वह बेडरूम का दृश्य देख ही रहा था कि बंगले के किसी भाग का दरवाजा खुलने की आवाज आई।
खाली बेडरूम देखकर उसने बीच का दरवाजा खोता। बेडरूम में आकर उसने चटकनी चढ़ा दी।
उधर बंगले के किसी भाग में किसी के द्वारा सीढ़ियों से उतरने की आवाज गूंज रही थी…इधर वह बेडरूम में स्वयं को छुपाने के लिए स्थान खोज रहा था।
वह तेजी के साथ काठ की एक बडी कपड़ों वाली अलमारी के पीछे सरक गया।
बंगले का मुख्य द्वार खुलने की आवाज आई।
उसने अपनी सांस रोक ली।
कछ ही देर बाद कमरे के बाहर गैलरी में से दो व्यक्तियों की पदचापों के साथ बात करने की आवाज उभरी। कोई महिला कह रही थी - ‘‘आज तो आपने बहुत देर कर दी। बबलू तो आपको याद करता-करता सो गया।’’
- ‘‘आज क्लब में देर हो गई, मेहता से बिजनेस की बातें कर रहा था।’’ एक भारी स्वर।
- ‘‘क्या बातें हुईं ?’’
- साले ने हिसाब में हेर-फेर कर दिया।’’ पुरुष क्रोध में था - ‘‘मैंने कहा तो पार्टनरशिप खत्म करने की बात करने लगा। काम तो उस हरामजादे के साथ करना ही नहीं है। हां-उसे छोडूंगा भी नहीं, मुझे समझता क्या है ? अभी उसने मेरी दोस्ती देखी है, दुश्मनी तो अब देखेगा। मेरे पास उसके दस्तखत किए हुए ऐसे कागजात हैं कि जिंदगी-भर जेल की चक्की पीसेगा।’’
- आपके कागजात भी तो उसके पास हैं।’’ महिला की आवाज।
उसी समय बेडरूम का मुख्य द्वार खुला और वे दोनों अंदर प्रविष्ट हुए। सेफ के पीछे छुपे व्यक्ति ने देखा-महिला बेहद सुंदर थी और उसके जिस्म पर नाइट गाउन था। पुरुष का मोटा और थुल-थुल शरीर एक कीमती सूट में ढका हुआ था।
वह कह रहा था- ‘‘वो उल्लू का पट्ठा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’
- ‘‘लेकिन...।’’
महिला ने कुछ कहना चाहा तो उसकी बात बीच में ही काटकर पुरुष ने कहा-‘‘दिमाग खराब मत करो कमला, किसी बात का मूड नहीं है, जाओ - आराम से अपने कमरे में जाकर सो जाओ।’’
कुछ देर के लिए चुप रह गई कमला, फिर बोली - ‘‘अच्छा, खाना तो... !’’
- ‘‘बोर मत करो कमला, खाना मैंने खा लिया है। तुम जाओ।’’
अनिच्छापूर्वक कमला को उस कमरे से जाना ही पड़ा। पुरुष ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। कोट उतारकर बेड पर फेंकता हुआ वह बड़बड़ाया - ‘‘हरामजादा, मुझसे चाल चलता है। जानता नहीं ये जायदाद मैंने...।’’
आगे वह क्या बड़बड़ाया, सेफ के पीछे घुपा व्यक्ति न सुन सका।
वह यूं ही अनाप-शनाप न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहा। एक छोटी-सी अलमारी से उसने विस्की की बोतल, एक गिलास और सोडा निकाला। सारा सामान एक मेज पर रखकर मेज बेड की तरफ खींच ली।’’
बेड के कोने पर बैठकर वह विस्की पीने लगा।
मेहता नामक व्यक्ति पर वह बुरी तरह खुंदक खाया हुआ था। क्रोध और जोश में जाने क्या-क्या बड़बड़ाए चला जा रहा था। सेफ के पीछे खड़ा व्यक्ति आराम से समय गुजरने की प्रतीक्षा कर रहा था।
एक बजे - तब, जबकि उसने पूरी बोतल खाली कर दी।
सेफ के पीछे छुपे व्यक्ति ने अपने ओवरकोट की जेब से एक चाकू निकाला, बटन दबाते ही लंबा चाकू हल्की-सी ‘क्लिक’ की आवाज के साथ खुल गया। खुला चाकू हाथ लिए वह बेखौफ बाहर निकल आया।
वह एक शानदार ड्राइंगरूम के शानदार सोफे पर आराम से देता था। सोफा काठ का था और उस पर डनलप की शनील चढ़ी गद्दियां पड़ी थीं। सामने पड़ी छोटी टेबल पर उसने पैर फैला रखे थे। दस्तानों में धंसी उसकी अंगुलियों में एक सिगरेट थी-जिसमें वह कश मारने की कोई चेष्टा नहीं कर रहा था।
कमरे में ग्रीन नाइट बल्ब का बीमा प्रकाश विद्यमान था।
दीवार पर लगी एक शानदार घड़ी की ‘टिक...टिक’ के अतिरिक्त कहीं से कोई ध्वनि उत्पन्न नहीं हो रही थी। इस बंगले का ही नहीं - बल्कि पूरे शहर का वातावरण अंधेरे और सन्नाटे के आगोश में था।
घड़ी रात के बारह बजने की सूचना दे रही थी।
साढ़े बारह बजने वाले में छाए सन्नाटे को कॉलबेल की तीव्र आवाज ने झिंझोड़ दिया। इसका प्रभाव उस पर भी पड़े बिना नहीं रह सका। उसने शीघ्रता से मेज पर रखी ऐश-ट्रे में सिगरेट मसली और उठकर खड़ा हो गया।
इस बीच कॉलबेल दुबारा चीख पड़ी थी।
इसमें शक नहीं कि वह व्यक्ति बेहद लंबा था। यह तेजी के साथ ड्राइंगरूम एवं बेडरूम के बीच वाले दरवाजे की तरफ लपका। ‘की होल’ से आंख सटाकर वह बेडरूम का दृश्य देख ही रहा था कि बंगले के किसी भाग का दरवाजा खुलने की आवाज आई।
खाली बेडरूम देखकर उसने बीच का दरवाजा खोता। बेडरूम में आकर उसने चटकनी चढ़ा दी।
उधर बंगले के किसी भाग में किसी के द्वारा सीढ़ियों से उतरने की आवाज गूंज रही थी…इधर वह बेडरूम में स्वयं को छुपाने के लिए स्थान खोज रहा था।
वह तेजी के साथ काठ की एक बडी कपड़ों वाली अलमारी के पीछे सरक गया।
बंगले का मुख्य द्वार खुलने की आवाज आई।
उसने अपनी सांस रोक ली।
कछ ही देर बाद कमरे के बाहर गैलरी में से दो व्यक्तियों की पदचापों के साथ बात करने की आवाज उभरी। कोई महिला कह रही थी - ‘‘आज तो आपने बहुत देर कर दी। बबलू तो आपको याद करता-करता सो गया।’’
- ‘‘आज क्लब में देर हो गई, मेहता से बिजनेस की बातें कर रहा था।’’ एक भारी स्वर।
- ‘‘क्या बातें हुईं ?’’
- साले ने हिसाब में हेर-फेर कर दिया।’’ पुरुष क्रोध में था - ‘‘मैंने कहा तो पार्टनरशिप खत्म करने की बात करने लगा। काम तो उस हरामजादे के साथ करना ही नहीं है। हां-उसे छोडूंगा भी नहीं, मुझे समझता क्या है ? अभी उसने मेरी दोस्ती देखी है, दुश्मनी तो अब देखेगा। मेरे पास उसके दस्तखत किए हुए ऐसे कागजात हैं कि जिंदगी-भर जेल की चक्की पीसेगा।’’
- आपके कागजात भी तो उसके पास हैं।’’ महिला की आवाज।
उसी समय बेडरूम का मुख्य द्वार खुला और वे दोनों अंदर प्रविष्ट हुए। सेफ के पीछे छुपे व्यक्ति ने देखा-महिला बेहद सुंदर थी और उसके जिस्म पर नाइट गाउन था। पुरुष का मोटा और थुल-थुल शरीर एक कीमती सूट में ढका हुआ था।
वह कह रहा था- ‘‘वो उल्लू का पट्ठा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’
- ‘‘लेकिन...।’’
महिला ने कुछ कहना चाहा तो उसकी बात बीच में ही काटकर पुरुष ने कहा-‘‘दिमाग खराब मत करो कमला, किसी बात का मूड नहीं है, जाओ - आराम से अपने कमरे में जाकर सो जाओ।’’
कुछ देर के लिए चुप रह गई कमला, फिर बोली - ‘‘अच्छा, खाना तो... !’’
- ‘‘बोर मत करो कमला, खाना मैंने खा लिया है। तुम जाओ।’’
अनिच्छापूर्वक कमला को उस कमरे से जाना ही पड़ा। पुरुष ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। कोट उतारकर बेड पर फेंकता हुआ वह बड़बड़ाया - ‘‘हरामजादा, मुझसे चाल चलता है। जानता नहीं ये जायदाद मैंने...।’’
आगे वह क्या बड़बड़ाया, सेफ के पीछे घुपा व्यक्ति न सुन सका।
वह यूं ही अनाप-शनाप न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहा। एक छोटी-सी अलमारी से उसने विस्की की बोतल, एक गिलास और सोडा निकाला। सारा सामान एक मेज पर रखकर मेज बेड की तरफ खींच ली।’’
बेड के कोने पर बैठकर वह विस्की पीने लगा।
मेहता नामक व्यक्ति पर वह बुरी तरह खुंदक खाया हुआ था। क्रोध और जोश में जाने क्या-क्या बड़बड़ाए चला जा रहा था। सेफ के पीछे खड़ा व्यक्ति आराम से समय गुजरने की प्रतीक्षा कर रहा था।
एक बजे - तब, जबकि उसने पूरी बोतल खाली कर दी।
सेफ के पीछे छुपे व्यक्ति ने अपने ओवरकोट की जेब से एक चाकू निकाला, बटन दबाते ही लंबा चाकू हल्की-सी ‘क्लिक’ की आवाज के साथ खुल गया। खुला चाकू हाथ लिए वह बेखौफ बाहर निकल आया।
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