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रहस्य-रोमांच >> तीन तिलंगे, आग लगे दौलत को

तीन तिलंगे, आग लगे दौलत को

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9396
आईएसबीएन :9788184910667

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘कट।’

एक हल्की-सी आवाज के साथ एक ‘कंचा’ दूसरे ‘कंचे’ से टकराया और वे दोनों कंचे गंदी और कच्ची जमीन पर लुढ़कने लगे। ‘घुच्चिक’ के इर्द-गिर्द इस समय बीस कंचे पड़े हुए थे। घुच्चिक के दाए-बाएं दो लड़के खड़े थे। एन.सी.सी. का एक ढीला-ढाला और खाकी निक्कर पहने एक लड़का पाले पर खड़ा था। घुच्चिक के दाईं ओर खड़े पट्टेदार कच्छे वाले लड़के ने जिस कंचे को पीटने के लिए कहा था - पाले पर खड़े लड़के ने हमेशा की भांति सही निशाने का प्रदर्शन करके उसे पीट दिया था। आपस में टकराने वाले दोनों कंचे कच्ची धरती पर लुढ़क रहे थे। उनमें से एक घुच्चिक की ओर लुढ़क रहा था, दूसरा एक अन्य स्थिर पड़े कंचे की ओर।

तीनों के दिल धड़क रहे थे। दंड होने का भय जो था।

पाले पर खड़े लड़के का एन.सी.सी. वाला ढीला निक्कर खिसककर कूल्हे पर अटक गया था, मगर उसे उसका ध्यान नहीं था - वह तो लुढ़कने वाले दोनों कंचों को देख रहा था।

दोनों कंचे बिना दंड किए रुक गए।

- ‘‘हुर्रे !’’ खाकी निक्कर वाले ने एक नारा लगाया। पल-भर में वह पाले से कूदकर धरती पर पड़े कंचे बटोर रहा था। वह अपने कार्य में व्यस्त था, जबकि इधर घुच्चिक के दाएं-बाएं खड़े दोनों लड़कों की नजरें मिली। दोनों की मासूम आंखों ने एक-दूसरे को संकेत किया।

एक साथ दोनों ने लपककर खाकी निक्कर वाले की गरदन थाम ली।

- ‘‘क्या है ?’’ खाकी निक्कर वाला बोला।

- ‘‘तूने ‘खुटका’ नहीं बजाया।’’ पट्टेदार कच्छे वाला लड़का घुड़का।

- ‘‘खुटके तो की थी तब।’’ खाकी निक्कर वाला चीखा।

- ‘‘चल साले !’’ एक साथ दोनों ने उसे गाली-रूपी अलंकार दिया - फिर अपने कर-कमलों से खाकी निक्कर वाले की तबीयत अच्छी तरह से दुरुस्त कर दी। खाकी निक्कर वाला रोने लगा, जबकि वे दोनों उसे रोता छोड़कर कंचों सहित फरार हो गए।

दोनों भागते-भागते एक टूटे-फूटे मकान में आ गए। दोनों की सांसें बुरी तरह फूल रही थीं। चारों हाथ कंचों से भरे पड़े थे। इन दोनों की आयु इस समय सात वर्ष थी। दोनों गरीब घराने के थे। एक तो इतना गरीब था कि एकमात्र अंडरवियर और गंदी-सी बनियान के अतिरिक्त उसे कभी किसी ने अन्य कपड़ों में नहीं देखा था। कड़ी-से-कड़ी ठंड में भी उसके जिस्म पर वही कपड़े देखे जाते थे। मौसम इत्यादि का उस पर जैसे कोई प्रभाव न पड़ता था। दूसरा भी गरीब था परंतु उसकी स्थिति पहले के मुकाबले बेहतर थी। उसके मां-बाप गरीब जरूर थे लेकिन उसके पास पहनने के लिए एक-दो जोड़ी कपड़े तो थे ही। इस समय वे टूटे हुए मकान के मलबे के ढेर पर खड़े हांफ रहे थे।

- ‘‘साला हर घांई पीट देता है।’’ कमीज-पाजामे वाला लड़का बोला।

- ‘‘यार, शंकर की चाल के बाद हमारी चाल ही नहीं आती।’’ कच्छे वाला बोला - साला कोई भी घांई नहीं छोड़ता। अच्छे-से-अच्छे बिच्चे में से गोली निकाल देता है।’’

- ‘‘साले को कैसा मारा !’’ पाजामे वाला खुश होता हुआ बोला।

- ‘‘हां।’’ कच्छे वाला लड़का कह तो गया लेकिन कहते-कहते उसका छोटा-सा मस्तिष्क जैसे कुछ सोचने लगा। वह एकदम बोला-‘‘यार बुंदे, हमें शंकर को मारना नहीं चाहिए था।’’

- ‘‘क्यों ?’’

- ‘‘वो हमारा दोस्त है यार !’’

बुंदे नामक लड़के के नन्हे-से मस्तिष्क को भी जैसे एक झटका-सा लगा। उसके पास भी जैसे सोचने-समझने की बुद्धि आ गई। अपनी मासूम आंखें अपने दोस्त की आंखों में डालकर एक पल तो वह कुछ सोचता रहा, फिर बोला - ‘‘यार चंचक, बात तो तूने ठीक कही है। यार, गोलियों के चक्कर में हमने अपने दोस्त को पीट दिया। हम तीनों ने जिंदगी-भर एक-दूसरे का साथ निभाने की कसम खाई है।’’

- ‘‘आ, शंकर को मनाएंगे।’’ चंचक ने कहा।

- ‘‘लेकिन अब वो मानेगा नहीं ?’’ बुंदे बोला - ‘‘उस साले को जब गुस्सा आता है तो कुछ नहीं सोचता - गुस्से में अगर उसने हमें ईंट-पत्थर मार दिया तो खोपड़ा फट जाएगा।’’

- ‘‘हां यार, उसमें बुद्धि की कमी है।’’ चंचक इस प्रकार बोला मानो खुद दुनिया का सबसे बड़ा बुद्धिमान हो।

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