लेख-निबंध >> अर्थात अर्थातरघुवीर सहाय
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
रघुवीर सहाय आधुनिक भारत के अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कवि तो थे ही, इस दौर के एक सशक्त संपादक और समाजवादी विचारक भी थे ! हिंदी पत्रकारिता में उन्होंने संवाददाता, संपादक और स्तम्भ-लेखक के रूप में लम्बे समय तक महत्त्पूर्ण भूमिका निबाही ! अर्थात में संकलित लेख उन्होंने 1984 से 1990 के दौरान लिखे जो ‘जनसत्ता’ में नियमित स्तम्भ के तौर पर छपे !
प्रस्तुत पुस्तक में संकलित लेखों में रघुवीर सहाय की सामाजिक चिंताएं, उनकी जीवनदृष्टि और समाज विरोधी शक्तियों के विरुद्ध उनकी संघर्षशीलता परिलक्षित होती है ! उनके इन लेखों से राजनीति, समाज, संस्कृति, भाषा, पत्रकरिता, संचार, रंगमंच, फिल्म, साहित्य, यात्रा और संस्मरण जैसे विषयों पर समग्रता से विचार करने की पद्धति सीखने को मिलती है ! रघुवीर सहाय ने अपने इन लेखों में राजनीति में प्रबंध और साम्प्रदायिकता पर तीखे प्रहार किये हैं, पत्रकारिता और भाषा के सवालों पर गहराई से विचार किया है और समाज में न्याय, समता तथा स्वतंत्रता की धारणा प्रस्तुतु की है !
यह पुस्तक रघुवीर सहाय के लेखन में रुचि रखनेवालों के लिए तो महत्त्पूर्ण है ही, समाजवादी विचारों से जुड़े व्यक्तियों और पत्रकारिता, साहित्य तथा संस्कृति के अध्येताओं के लिए भी विशेष उपयोगी है !
प्रस्तुत पुस्तक में संकलित लेखों में रघुवीर सहाय की सामाजिक चिंताएं, उनकी जीवनदृष्टि और समाज विरोधी शक्तियों के विरुद्ध उनकी संघर्षशीलता परिलक्षित होती है ! उनके इन लेखों से राजनीति, समाज, संस्कृति, भाषा, पत्रकरिता, संचार, रंगमंच, फिल्म, साहित्य, यात्रा और संस्मरण जैसे विषयों पर समग्रता से विचार करने की पद्धति सीखने को मिलती है ! रघुवीर सहाय ने अपने इन लेखों में राजनीति में प्रबंध और साम्प्रदायिकता पर तीखे प्रहार किये हैं, पत्रकारिता और भाषा के सवालों पर गहराई से विचार किया है और समाज में न्याय, समता तथा स्वतंत्रता की धारणा प्रस्तुतु की है !
यह पुस्तक रघुवीर सहाय के लेखन में रुचि रखनेवालों के लिए तो महत्त्पूर्ण है ही, समाजवादी विचारों से जुड़े व्यक्तियों और पत्रकारिता, साहित्य तथा संस्कृति के अध्येताओं के लिए भी विशेष उपयोगी है !
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