लोगों की राय

रहस्य-रोमांच >> हमशक्ल

हमशक्ल

अनिल मोहन

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :332
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9401
आईएसबीएन :9789383600762

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

264 पाठक हैं

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अर्जुन भारद्वाज ने कार की रफ्तार धीमी की फिर बाईं तरफ मोड़ काटा और कुछ गति बढ़ा दी। दिन के ग्यारह बज रहे थे। तेज धूप थी। पसीना-सा महसूस हो रहा था। कार में ए.सी. ऑन था। अर्जुन कमीज-पैंट में शेव किए मौजूद था और घंटाभर पाले ही अपने फ्लैट से निकला था। इस वक्त कोई खास केस हाथ में नहीं था। जो छोटे केस हाथ में थे, उन्हें उसके असिस्टेंट संभाल रहे थे। उसका इरादा ऑफिस पहुंचकर पुरानी फाइलें चैक करने का था। कुछ पुराने केस ऐसे भी थे जो किसी वजह से आज तक सॉल्व नहीं हो सके थे, वो उन पर फिर से नजर दौड़ाने की सोच रहा था। परंतु पंद्रह मिनट कार दौड़ाने के पश्चात उसे गड़बड़ का एहसास हुआ। लगा कि जैसे उसका पीछा किया जा रहा है।

वो सफेद कार थी।

जब-जब भी उसने शीशे में पीछे की तरफ देखा, वो कार दिखी।

परंतु अर्जुन ने सोचा कि ये इत्तफाक भी हो सकता है कि पीछे वाली कार भी उसी रास्ते पर जा रही हो, जिस पर वो जा रहा है। अन्य ढेरों वाहन और भी तो थे उस सड़क पर। लेकिन वो कार उसके पीछे की दो कारों को छोड़कर, उनके पीछे ही हर बार दिखी थी। न तो वो पास आई, न दूर गई। ये ही वजह थी दिमाग में शक पैदा होने की।

अर्जुन भारद्वाज उसी प्रकार कार ड्राइव करता अपने रास्ते पर जाता रहा।

बीस मिनट और बीत गए।

दो कार उसी प्रकार पीछे ही रही।

धीरे-धीरे अर्जुन को विश्वास होने लगा कि दो सफेद कार उसी के पीछे है। उसके बाद वो सड़कों पर इधर-उधर कार को घुमाता रहा और एक वक्त ऐसा भी आया कि उसे पूरा विश्वास हो गया कि सफेद कार उसके पीछे लगी है। उसने शीशे में पीछे देखते हुए ये जानने की चेष्टा की कि उस कार के भीतर कितने लोग हैं।

दस मिनट की कोशिश के बाद इतना ही जान पाया कि उसमें सिर्फ एक ही है, जो कार चला रहा है।

सफेद कार के भीतर सिर्फ उसे चलाने वाला ही था। वो पैंतीस बरस का सांवले रंग का व्यक्ति था और चेहरे से बदमाश जैसा लग रहा था। पिछले एक घंटे से वो अर्जुन भारद्वाज की कार का पीछा कर रहा था। लेकिन अर्जुन को कार यूं ही सड़कों पर दौड़ाते पाकर उसे समझते देर न लगी कि अर्जुन को अपना पीछा किए जाने का शक हो गया है। उसने तुरंत मोबाइल निकाला और एक हाथ से स्टेयरिंग सम्भाले नम्बर मिलने लगा फिर बात हो गई।

‘‘असीम।’’ उसने फोन पर कहा - ‘‘तू कहां है ?’’

‘‘दादर रोड पर, क्या हुआ ?’’

‘‘उस जासूस को पीछा किए जाने का शक हो गया है।’’ उसने कहा।

‘‘कैसे पता ?’’

‘‘वो यूं ही कार को सड़कों पर घुमा रहा है। अब मुझे उसके पीछे से हट जाना चाहिए। तू आ जा।’’

‘‘हमें तो पहले ही कहा गया था कि जासूस बहुत तेज चीज है। सावधानी से उस पर नजर रखनी है।’’ उधर से असीम ने कहा।

‘‘तू चल ले।’’

‘‘किधर आना है मुझे ?’’

सफेद कार वाले ने अपनी स्थिति बताई कि वो किस सड़क पर से निकल रहा है।

‘‘ठीक है।’’ उधर से असीम ने कहा - ‘‘जब तक मैं नहीं आता, तू उसके पीछे ही रह, वो नजरों से दूर न हो। इस बीच तुम फोन पर मुझे बताते रहना कि दो जासूस किधर का रुख कर रहा है।’’

सफेद कार वाले ने फोन काटा और नया नम्बर मिलाने लगा।

‘‘कहो।’’ बात होते ही उधर से भारी-सा स्वर कानों में पड़ा।

‘‘जासूस को पीछा किए जाने का शक हो गया है।’’ सफेद कार वाला बोला।

‘‘मैंने पहले ही कहा था कि सावधानी से उस पर नजर रखना।’’

‘‘मैं बहुत सावधान था पर उसे पीछा किए जाने का आभास हो ही गया।’’

‘‘तुम उसके पीछे से हट जाओ और किसी दूसरे को इस काम पर लगा दो।’’ उस भारी-भरकम आवाज ने कहा।

‘‘मैंने असीम को बुलाया है।’’

‘‘जिसे भी बुलाओ। मुझे सिर्फ अपने काम से मतलब है। इस काम के लिए तुम्हें मोटी रकम दी है। मुझे अर्जुन भारद्वाज के बारे में पूरी जानकारी चाहिए कि वो कहां-कहां आता-जाता है। किससे मिल रहा है इन दिनों। उससे कौन मिलता है। इसके अलावा और जो भी बात तुम लोगों को दिखे, मुझे मालूम हो जानी चाहिए। मेरा काम ठीक से करो। वरना अंजाम तुम जानते ही हो।’’

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai