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चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9413
आईएसबीएन :0000000

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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?

गेंदा

 

गेंदा के विभिन्न नाम

हिन्दी में- गेंदा, गुजराती में- गेंदो, गेंदलो, मराठी में- गेंदुगुंदा चा फूल, अंग्रेजी में-Marry gold, लेटिन में-Tagetes erecta (टेजेटस इरेक्टा)

यह वनस्पति जगत के कम्पोजिटी (Compositae) कुल का सदस्य है।

गेंदा का संक्षिप्त परिचय

गेंदे के पौधे शाकीय प्रकार के होते हैं। ये एक वर्षीय से बहुवर्षीय होते हैं। इनका तना हरा एवं खुरदरा होता है। उसकी सतह पर रोम हों, ऐसा मालूम देता है। तने में काष्ठ नहीं के बराबर होती है। यह बहुशाखीय होता है। शाखायें तने के निचले भाग से निकलती हैं। इसके पत्ते छोटे, पतले तथा कटानयुक्त (दन्तुर) होते हैं। पत्तों के सिरे नुकीले होते हैं। इस पौधे की ऊँचाई 2-3 फुट से अधिक नहीं होती है। पुष्प गाढ़े पीले अथवा केशरिया वर्ण के होते हैं। ये पुष्प समूह में, मुण्डक के रूप में लगते हैं। पुष्पों का यह समूह ही सामान्य भाषा में गेंदे के फूल के नाम से पहचाना जाता है। इसके पत्र तथा पुष्पों में ऑसीमीन (O Cimene)होते हैं।

आयुर्वेदानुसार यह ज्वरनाशी, शोथ को समाप्त करने वाली, ग्राही, मूत्रल तथा विषघ्न वनस्पति होती है। यह ज्वर, शोथ, अर्श, कर्णशूल, नेत्र रोगों में तथा प्रदर रोगों में हितकर है।

गेदे का धार्मिक महत्त्व

हिन्दू धर्म में किसी भी प्रकार के पूजा-कार्यों में विभिन्न प्रकार के पुष्पों का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन में गेंदे के पुष्पों की माला श्रीलक्ष्मीजी को अर्पित करने से तथा लक्ष्मी के चरणों में गेंदे के पुष्पों को अर्पित करने से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा साधक को उसका सुफल प्राप्त होता है। वैसे नित्य लक्ष्मी माता को गेंदे का पुष्प अर्पित करना भी उतना ही प्रभावी होता है।

गेंदे का ज्योतिषीय महत्व

> गेंदे के पुष्पों को प्रत्येक गुरुवार के दिन गुरु ग्रह को अर्पित करने से गुरु की पीड़ा का शमन होता है। इसके लिये स्नान आदि से निवृत्त होकर गेंदे के9पुष्प अपने दोनों हाथों से गुरु को अर्पित करें।

> यदि उपरोक्तानुसार कोई व्यक्तिगुरु ग्रह को पुष्प अर्पित नाकर सके तो उसे मात्र 3 गेंदे के पुष्प अपने स्रान के जल में डाल कर फिर उस जल से नित्य स्रान करना चाहिये। स्रान 9 या 9 के गुणन वाले दिनों तक करना चाहिये।

गेंदे का वास्तु में महत्त्व

वास्तु की दृष्टि से गेंदे के पौधों का घर की सीमा में होना शुभ फलदायी होता है। जिस घर में गेंदे के पौधे सदैव पुष्पित होते हैं वहाँ सुख-शान्ति रहती है।

गेंदा का औषधीय महत्त्व

यह एक अत्यन्त सुन्दर फूल है। पूजा कार्य में अधिकांश रूप से इसका प्रयोग किया जाता है। हालांकि इसका धार्मिक महत्व ही अधिक है किन्तु औषधीय महत्व भी देखा गया है। इसके प्रयोग से अनेक प्रकार की समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होती है। संक्षिप्त रूप से इसे इस प्रकार देखा जा सकता हे:-

> गेंदे के पत्तों से क्वाथ तैयार करके इससे कुल्ला करने से दाँतों के दर्द में तत्काल आराम आ जाता है। इसके लिये गेंदे के 3-4 पत्तों को ठीक से कूट लें, तत्पश्चात् एक कप जल में कुछ समय तक उबाल लें। इसे छान कर ठण्डा करें और कुल्ला करें। आप चाहें तो इसमें चुटकी भर नमक भी डाल सकते हैं।

> कानों में अगर किसी भी कारण से दर्द होता हो तो इसके पत्तों को कूटकर उसका रस निकालें और इसकी 2-2 बूंदें कानों में डालें। ऐसा 2-3 बार करें। लाभ प्राप्त होगा।

> अगर मूत्र सम्बन्धी किसी प्रकार की समस्या है, तो यह प्रयोग करें- गेंदे के 10 ग्राम के लगभग पते लेकर ठीक प्रकार से पीस लें। इसमें एक कप जल मिलाकर छान लें। इसमें स्वाद के अनुसार मिश्री कूट-पीस कर मिलायें और पी जायें। दिन में 2-3 बार यह प्रयोग करने से रुका हुआ पेशाब खुलकर आ जाता है।

> गेंदे के पत्तों को पीसकर लुगदी जैसा बना लें, फिर इसे फोड़े-फुसी पर लगा लें। इससे फोड़ा पककर मवाद बाहर आ जायेगी और पीड़ा से मुक्ति प्राप्त होगी।

> अनेक व्यक्तियों के पैरों में बिवाई फटने की बहुत समस्या रहती है। कुछ लोग इससे बहुत अधिक पीड़ा भोगते हैं। बिवाइयां ठीक हो जायें और पीड़ा से मुक्ति मिले, इसके लिये यह प्रयोग करें- उपरोक्त अनुसार गेंदे के पत्तों का रस प्राप्त कर लें। थोड़ी वेसलीन में इस रस को मिलाकर बिवाइयों पर ठीक से लगा लें। लगाने से पहले पैरों को ठीक से स्वच्छ जल से साफ कर लें। इसके बाद लगायें। लगाने के पश्चात् कुछ समय तक बैठे रहें फिर काम पर जायें। रात्रि को सोने से पूर्व यह प्रयोग अवश्य करें। आशातीत लाभ की प्राप्ति होगी।

> बवासीर दो प्रकार की होती हैं- खूनी तथा बादी। खूनी बवासीर में मल त्याग के समय न केवल पीड़ा होती है बल्कि अल्पाधिक रक्त भी निकलता है। इसी रतार्श में गेंदे के पुष्प से उपकार होता है। इस हेतु इसके 3-4 पुष्पों को पीसकर उनका रस निकाल लें। इस - रस की एक चम्मच भर मात्रा जल के साथ लेने से रक्तार्श में बहुत लाभ होता है। इस प्रयोग से रक्त का जाना बंद हो जाता है तथा दर्द की निवृत्ति भी होती है।

> कभी-कभी कान में फफूंद पड़ जाने से अथवा कानों में अति सूक्ष्म कृमियों के उत्पन्न हो जाने से कान में पीड़ा होती है। पीड़ा की इस स्थिति में गेंदे की 4-8 पत्तियां पीसकर उसकी एक या दो बूंदें कान में डालने से कान की पीड़ा शांत होती है।

> शरीर के जिस स्थान पर शोथ हो वहाँ पर गेंदे की कुछ पत्तियों को पीसकर उनकी चटनी बनाकर उसका मोटा लेप करने से मात्र 1-2 दिनों में ही पर्यात लाभ होता है।

> व्रणों के ऊपर गेंदे के पुष्प को चटनी की भांति पीसकर लेप करने से अथवा गेंदे के पुष्प का स्वरस व्रणों पर लगाने से वे शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।

> नेत्रों में कभी-कभी पीड़ा होती है, उस स्थिति में गेंदे के पुष्प को कूट कर उसका रस प्राप्त कर लें।इस रस को नेत्रों के चारों ओर लगाने से नेत्रों की पीड़ा दूर हो जाती है। इस रस को लगाने के पश्चात् जब वह सूख जाये तब नेत्रों को बंद रखते हुये उसे धो लें। ध्यान रहे कि यह रस ऑखों के भीतर न जाने पाये।

> यूँ तो गेंदा सभी प्रकार के प्रदर रोगों में लाभदायक है तथापि रक्तप्रदर में यह बहुत ही शीघ्र लाभ करता है। इस हेतु इसके पुष्पों को कूट-पीसकर, उन्हें छान कर रस प्राप्त कर लें। इस स्वरस की एक चम्मच मात्रा रक्तप्रदर से पीड़ित महिला यदि एक सप्ताह तक सेवन कर ले तो उसे काफी लाभ होता है। इसी प्रकार इसके मात्र दो पुष्पों को पीसकर उसका कल्क घी में भूनकर लेने से भी रक्तप्रदर में लाभ होता है। उपरोक्त दोनों में से कोई भी एक उपचार किया जा सकता है।

> गेंदे की पत्तियों को पीसकर चूहे के काटे गये स्थान पर लगाने से लाभ होता है।

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    अनुक्रम

  1. उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
  2. जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
  3. जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
  4. तुलसी
  5. गुलाब
  6. काली मिर्च
  7. आंवला
  8. ब्राह्मी
  9. जामुन
  10. सूरजमुखी
  11. अतीस
  12. अशोक
  13. क्रौंच
  14. अपराजिता
  15. कचनार
  16. गेंदा
  17. निर्मली
  18. गोरख मुण्डी
  19. कर्ण फूल
  20. अनार
  21. अपामार्ग
  22. गुंजा
  23. पलास
  24. निर्गुण्डी
  25. चमेली
  26. नींबू
  27. लाजवंती
  28. रुद्राक्ष
  29. कमल
  30. हरश्रृंगार
  31. देवदारु
  32. अरणी
  33. पायनस
  34. गोखरू
  35. नकछिकनी
  36. श्वेतार्क
  37. अमलतास
  38. काला धतूरा
  39. गूगल (गुग्गलु)
  40. कदम्ब
  41. ईश्वरमूल
  42. कनक चम्पा
  43. भोजपत्र
  44. सफेद कटेली
  45. सेमल
  46. केतक (केवड़ा)
  47. गरुड़ वृक्ष
  48. मदन मस्त
  49. बिछु्आ
  50. रसौंत अथवा दारु हल्दी
  51. जंगली झाऊ

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