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चमत्कारिक तेल

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :252
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9417
आईएसबीएन :9789385151071

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यूकेलिप्टस का तेल


यूकेलिप्टस के विभिन्न नाम

हिन्दी- नीलगिरी, संस्कृत- तेलपर्णी, गुजराती-यूकेलिप्टसो, अंग्रेजी-Eucalyptus-लेटिन-यूकेलिप्टस ग्लॉबुलस (Eucalyptus globulus)

यह वृक्ष वनस्पति जगत के मायरटेसी (Myrtaceae) कुल का सदस्य है।

यह मूल रूप से आस्ट्रेलिया तथा तस्मानिया का आदिवासी वृक्ष है किन्तु अति प्राचीनकाल से ही इसके गुणों का अध्ययन भारत में किया गया है। भारत के अनेक प्रांतों में इस वृक्ष को समूहबद्ध लगाया जाता है जिससे सौन्दर्य के साथ-साथ इसके अन्य लाभों को अर्जित किया जा सके। प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं है।

इसके वृक्ष पर्याप्त ऊँचे होते हैं। इनका काण्ड काफी ऊँचा, सीधा तथा चिकना होता है। समय-समय पर तने की ऊपरी छाल जो कि हल्की गुलाबी-भूरे रंग की होती है, निकलती रहती है। छाल के निकलने से यह तना चिकना तथा चमकदार दिखाई देता है। तने में पर्याप्त ऊपर से शाखायें निकलती हैं जिन पर लम्बी-लम्बी पत्तियां लगी होती है। पत्तियां 5 से 8 इंच तक लम्बी होती है। इनके वृंत छोटे, सलंग किनारे वाले एवं नुकीले शीर्ष होते हैं। पत्तियों में नीलापन होता है। उन्हें मसल कर सूंघने पर मनभावनी गंध आती है जो कि उनमें उपस्थित तेलीय रसायनों के कारण होती है। इस वृक्ष का तेल इन्हीं पत्तियों से प्राप्त होता है।

इसके पुष्प हल्के पीले होकर एक से तीन की संख्या में पत्रकोणों से निकलते हैं। पुष्पों में वृन्त नहीं के बराबर होते हैं। उनके पुमंग बाहर की ओर निकले रहते हैं। फल कैप्सूल के समान होता है जो व्यास में आधा इंच होता है। इनका स्फुटन ढक्कन के रूप में होता है। इस वृक्ष की पत्तियों से तेल आसवन विधि द्वारा निकाला जाता है। यह तेल रंगहीन अथवा हल्के पीले रंग का होता है। तेल में एक विशिष्ट प्रकार की गंध होती है जो कुछ तीव्र होती है। यह तेल एल्कोहल में घुलनशील होता है जबकि जल में यह घुलता नहीं है। स्वाद में यह कड़वा होता है। इसमें सीनिओल (Cineole) कैम्फीन (Camphene), पायनीन (Pinene) तथा अल्पमात्रा में फिलैड्रीन (Phellendrene) इत्यादि होते हैं।

आयुर्वेद में यूकेलिप्टस के तेल को अत्यन्त उपयोगी पाया गया है। इसके यथायोग्य प्रयोग करने से रोगों की पीड़ा से मुक्ति प्राप्त होती है। आयुर्वेदानुसार यह एक कटु, उष्ण वीर्य, कफवातशामक, जीवाणु वृद्धिरोधक, जीवाष्णुनाशक, उत्तेजक, वेदनाहर, कफध्न, मूत्रजनन, स्वेदनजनन तथा ज्वरध्न होता है।

यूकेलिप्टस के तेल का औषधीय महत्व

अन्य तेलों की भांति यूकेलिप्टस के तेल का भी अत्यन्त औषधीय महत्व है। सामान्य रूप से यदा-कदा परेशान करने वाली समस्याओं में इसका समुचित प्रयोग करने से शीघ्र लाभ प्राप्त होता है और चिकित्सक के पास जाने की परेशानी से बचा जा सकता है। यहां पर ऐसे ही कुछ सामान्य औषधीय प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है:-

प्रतिश्याय/सर्दी में- अत्यधिक सर्दी होने की स्थिति में यूकेलिप्टस के तेल की कुछ बूंदों को एक रूमाल में ले लें। इस रूमाल को थोड़ी-थोड़ी देर में सूंघने मात्र से सर्दी का दुष्प्रभाव जाता रहता है। नाक के नथुनों में होने वाली सुरसुरी अथवा शिरोपीड़ा इसको सूघने मात्र से दूर हो जाती है।

पाश्र्वशूल में- पीठ में दर्द होने की स्थिति में थोड़े से यूकेलिप्टस के तेल में थोड़ा सा घासलेट का तेल मिला लें। इस मिश्रण से पीठ की मालिश करें। ऐसा करने से पीठ दर्द जाता रहता है। यह मिश्रण इतना ही बनायें जितना एक बार की मालिश में काम आ सके। इसके लिये मात्र दो चम्मच घासलेट के तेल में 4-6 बूंद यूकेलिप्टस का तेल मिलाकर काम में लें।

जोड़ों एवं घुटनों के दर्द में- थोड़ा सा यूकेलिप्टस का तेल लेकर उसमें बराबर मात्रा में सरसों का तेल मिला लें। इस मिश्रण से जोड़ों की मालिश करने से दर्द बिलकुल चला जाता है। अगर मालिश के बाद कुछ देर नमक का सेक किया जाता है तो दर्द शीघ्र ही दूर हो जाता है। इसके लिये पिसा हुआ थोड़ा नमक लेकर हल्का गर्म करें और सूती कपड़े पर डालकर ढीली पोटली बनाकर सेक करें।

बुखार आने पर- जिस व्यक्ति को बुखार हो उसे यूकेलिप्टस के तेल के प्रयोग से लाभ मिलता है। इसके लिये एक रूमाल पर 2-4 बूंदें यूकेलिप्टस के तेल की लेकर थोड़ी-थोड़ी देर में सूघते रहने से आराम होता है। रूमाल धुला हुआ एवं स्वच्छ होना चाहिये!

यूकेलिप्टस के तेल का विशेष प्रयोग

विभिन्न प्रकार के जोड़ों के दर्द के उपराचार्थ एक विशेष प्रकार का तेल बनाया जाता है। इस तेल को बनाने के लिये किसी कन्दील अथवा स्टोक में उपयोग किया हुआ घासलेट का तेल लिया जाता है। इसी के साथ-साथ थोड़ा सा मिथाईल सेलीसिलेट, यूकेलिप्टस का तेल, तारपीन का तेल तथा एक बड़ा प्याज व सरसों का तेल लिया जाता है। सबसे पहले 200 मि.ली. सरसों का तेल एक बर्तन में डालकर गर्म करें। 2-4 प्याज के छिलके लेकर कूटकर तेल में डाल दें। धीरे-धीरे प्याज का पानी तेल में जलने लगेगा। जब प्याज पूरी तरह से जल जाये तो इसे नीचे उतार कर ठण्डा करें और छान लें। इसमें 20 मि.ली. उत्त उपयोग किया हुआ घासलेट, 20 मि.ली. तारपीन का तेल, 20 मिली. मिथाईल सेलीसिलेट तथा 20 मि.ली. यूकेलिप्टस का तेल मिला दें। इस मिश्रण को भली प्रकार से हिलाकर एक शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें। यह तेल जोड़ों के दर्द, पीठ दर्द, मांसपेशियों के दर्द इत्यादि पर अत्यंत लाभकारी है तथा अपना प्रभाव त्वरित दशतिा है।

यूकेलिप्टस के तेल का चमत्कारिक प्रयोग

इस प्रयोग को बहुत पहले मुझे एक वृद्ध व्यक्ति ने बताया था तथा उसके बाद मैंने अनेक लोगों पर इस प्रयोग के प्रभाव का सत्यापन किया है। प्रयोग करने पर अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुआ। इस प्रयोग को उन व्यक्तियों को करना चाहिये जिनके घर में एक के बाद एक बीमारी आती-जाती है यानी बीमारी का सिलसिला टूटता नहीं है अथवा यह किसी ऐसे व्यक्ति के लिये भी किया जा सकता है जो आये दिन बीमार बना रहता है।

इस प्रयोग के अन्तर्गत संबंधित घर में अथवा उस बीमार व्यक्ति के शयन कक्ष में यूकेलिप्टस के तेल में थोड़ा सा सरसों का तेल मिलाकर दीपक लगाया जाता है। यह दीपक दिन भर में एक बार कभी भी 15-20 मिनट के लिये लगायें। इस प्रयोग को लगभग 40 दिन तक लगातार करने से सकारात्मक परिणाम परिलक्षित होते हैं। अगर व्यक्ति बार-बार बीमार होता है अथवा किसी गम्भीर जटिल रोग से पीड़ित है, पर्याप्त औषधीय उपचार के उपरांत भी लाभ प्राप्त नहीं होता है, तो यह प्रयोग अवश्य करें। इस प्रयोग के पश्चात् उसका रोग धीरे-धीरे ठीक होने लगेगा। सम्भव है कि उपाय पूरा होने तक वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाये। अगर उत्त प्रकार से सप्ताह में एक बार 15-20 मिनट के लिये दीपक लगाया जाता है तो उस घर में रोगों का प्रकोप बहुत ही कम होता है।

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    अनुक्रम

  1. जीवन का आधार हैं तेल
  2. तेल प्राप्त करने की विधियां
  3. सम्पीड़न विधि
  4. आसवन विधि
  5. साधारण विधि
  6. तेलों के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारियां
  7. नारियल का तेल
  8. अखरोष्ट का तेल
  9. राई का तेल
  10. करंज का तेल
  11. सत्यानाशी का तेल
  12. तिल का तेल
  13. दालचीनी का तेल
  14. मूंगफली का तेल
  15. अरण्डी का तेल
  16. यूकेलिप्टस का तेल
  17. चमेली का तेल
  18. हल्दी का तेल
  19. कालीमिर्च का तेल
  20. चंदन का तेल
  21. नीम का तेल
  22. कपूर का तेल
  23. लौंग का तेल
  24. महुआ का तेल
  25. सुदाब का तेल
  26. जायफल का तेल
  27. अलसी का तेल
  28. सूरजमुखी का तेल
  29. बहेड़े का तेल
  30. मालकांगनी का तेल
  31. जैतून का तेल
  32. सरसों का तेल
  33. नींबू का तेल
  34. कपास का तेल
  35. इलायची का तेल
  36. रोशा घास (लेमन ग्रास) का तेल
  37. बादाम का तेल
  38. पीपरमिण्ट का तेल
  39. खस का तेल
  40. देवदारु का तेल
  41. तुवरक का तेल
  42. तारपीन का तेल
  43. पान का तेल
  44. शीतल चीनी का तेल
  45. केवड़े का तेल
  46. बिडंग का तेल
  47. नागकेशर का तेल
  48. सहजन का तेल
  49. काजू का तेल
  50. कलौंजी का तेल
  51. पोदीने का तेल
  52. निर्गुण्डी का तेल
  53. मुलैठी का तेल
  54. अगर का तेल
  55. बाकुची का तेल
  56. चिरौंजी का तेल
  57. कुसुम्भ का तेल
  58. गोरखमुण्डी का तेल
  59. अंगार तेल
  60. चंदनादि तेल
  61. प्रसारिणी तेल
  62. मरिचादि तेल
  63. भृंगराज तेल
  64. महाभृंगराज तेल
  65. नारायण तेल
  66. शतावरी तेल
  67. षडबिन्दु तेल
  68. लाक्षादि तेल
  69. विषगर्भ तेल

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