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चमत्कारिक तेल

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :252
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9417
आईएसबीएन :9789385151071

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सुदाब का तेल


सुदाब के विभिन्न नाम

हिन्दी- सिताब, सातरी, संस्कृत- पीतपुष्पा, बंगला- इस्पन्द, गुजरातीसीताब, मलयालम- सत्ताप, अंग्रेजी- Garden Rue (गडॅन रू), लेटिन- रूटा Jagler (Ruta graveolens-Linn)

यह वृक्ष वनस्पति जगत के रूटेसी (Rutaceae) कुल में आता है।

यह पौधा मुख्य रूप से फारस के खेतों में पाया जाता है। औषधीय दृष्टि से इसे इतना उपयोगी पाया गया है कि फारस से आयात कर भारत में भी इसके पौधे आयुर्वेद उपचारों की दृष्टि से लगाये जाते हैं। सुदाब के पौधे छोटे-छोटे एवं शाकीय होते हैं। इसका तना बेलनाकार एवं मुलायम होता है। तने में काष्ठ की मात्रा न के बराबर अर्थात् बहुत कम होती है। तना कई शाखाओं से युक्त होता है। पतियां सफेद रंग की होकर दो भागों में बंटी होती हैं। पत्तियों पर छोटी-छोटी बिन्दू के आकार की विशेष तेल ग्रंथियां होती हैं। इन तेल ग्रंथियों की वजह से पत्तियों को मसलने पर एक तीव्र गंध आती है। फूल छोटे तथा पीले रंग के हाते हैं। फूलों के अग्रभाग पर 5 लहरदार, अन्दर की ओर मुड़े हुए दलपत्र होते हैं। इसके फल भी आकार में छोटे होते हैं। फलों में त्रिकोणाकार तथा कत्थई रंग का एक बीज होता है।

सुदाब में एक उड़नशील तेल पाया जाता है जो कि मुख्य रूप से इसकी पत्तियों में मौजूद तेल ग्रंथियों में स्थित होता है। तेल में 90 प्रतिशत मिथाइलनानिलकीटोन पाया जाता है। पत्तियों से तेल आसवन विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है। आयुर्वेदानुसार यह तेल वायुनाशक, वातानुलोमन, स्वेदनजनन, नाड़ी उत्तेजक एवं मूत्रल होता है। सुदाब के तेल के औषधीय प्रयोग मूलरूप से यह सुदाब पौधा फारस में पाया जाता है किन्तु इसके औषधीय गुणों को देखते हुये इसे हमारे देश में भी लाया गया ताकि इसका औषधीय रूप से उपयोग किया जा सके। इस पौधे की मुख्य विशेषता इसकी पत्तियों में स्थित तेल है इस तेल के अनेक औषधीय प्रयोग हैं जिनसे स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होती है क्योंकि सुदाब का तेल कई अति महत्वपूर्ण औषधीय गुणों से युक्त होता है। इसके लाभप्रद एवं अत्यन्त सरल औषधीय प्रयोग निम्नानुसार हैं:-

ज्वर दूर करने हेतु- आयुर्वेदानुसार सुदाब का तेल स्वेदजनन होता है। इसी गुण की वजह से सुदाब के तेल का प्रयोग किसी भी प्रकार के ज्वर को दूर करने में किया जाता है। इस प्रयोग हेतु सुदाब के तेल की दो बूंद की मात्रा को खाण्ड में मिलाकर सुबह तथा शाम को ग्रहण करना चाहिये। इस प्रयोग को निरन्तर पांच दिन तक करना चाहिये। इसके प्रयोग से चमत्कारिक रूप से लाभ की प्राप्ति होती है।

पाचन तंत्र को मजबूत करने हेतु- आजकल की इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में लोगों की आहार सम्बन्धी आदतें विकृत हो रही हैं। कभी व्यस्तता के कारण व्यक्ति समय पर भोजन नहीं कर सकता तो कभी स्वाद के वशीभूत तला-भुना, चटपटा, कुछ भी खा लेता है। परिणामस्वरूप अधिकांश लोगों को अपच की समस्या घेरे रहती है। ऐसे रोगियों के लिये सुदाब का तेल अत्यन्त लाभप्रद होता है। ऐसे रोगी सुदाब के तेल की 2 बूंद मात्रा लेकर एक गिलास गुनगुने गर्म दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें। यह प्रयोग लगातार 7 दिनों तक करें। इस प्रयोग के प्रभाव से रोगियों का पांचन तंत्र सुदृढ़ होकर पाचन सम्बन्धी समस्यायें समाप्त होती हैं, भूख बढ़ती है तथा शारीरिक दौर्बल्य दूर होता है।

गैस की समस्या से छुटकारा पाने हेतु- गैस की समस्या से ग्रसित व्यक्तियों को सुदाब के तेल के एक अति सरल प्रयोग से कम समय में ही छुटकारा मिल सकता है। इस प्रयोग के अन्तर्गत सुबह के समय खाली पेट सुदाब के तेल की दो बूंदें तथा एक केला एवं दो इलायची का सेवन करना होता है। सर्वप्रथम केले को छीलकर उसके बारीक टुकड़े काट लें। तत्पश्चात् उसमें सुदाब के तेल की दो बूंदें तथा दो इलायची पीसकर डाल दें और इसे अच्छे से फेंट लें। अब यह औषधि सेवन के लिये तैयार है। इसका सेवन दिन में एक बार तथा मात्र चार दिन तक करने से ही गैस (वायु) की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।

मूत्रावरोध दूर करने हेतु- जिन व्यक्तियों को मूत्र त्याग में समस्या जैसे मूत्र रुक-रुक कर होना, मूत्र खुलकर न होना, होने पर भी बेचैनी रहना इत्यादि रहती हो, ऐसे रोगियों के लिये सुदाब का तेल रामबाण औषधि है। मूत्रावरोध दूर करने हेतु सुदाब के तेल की दो बूंद शहद में मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करना चाहिये। इस प्रयोग के दस दिन तक करने से धीरे-धीरे उपरोक्त सभी समस्यायें समाप्त होने लगती हैं। आयुर्वेदानुसार यह प्रयोग करने से मूत्र संस्थान की अधिकांश समस्यायें जड़ से समाप्त हो जाती हैं।

शारीरिक गर्मी दूर करने हेतु- जिन व्यक्तियों को अत्यधिक शारीरिक गर्मी रहती हो, उन्हें सुदाब के तेल की नित्य मालिश करनी चाहिये। मालिश करते समय इस बात का ध्यान रखें कि शरीर को ज्यादा बल लगाकर न रगड़ें। नहाने के पानी में दो बूंद सुदाब का तेल डालकर नहाने से भी समान परिणाम प्राप्त होते हैं। इस प्रालिश का एक और लाभ यह भी है कि शरीर में फोड़े-फुसियां होने की सम्भावना समाप्त अथवा कम हो जाती है।

सुदाब के तेल का विशेष प्रयोग

ऐसे रोगी जिन्हें नाड़ियों की कम उत्तेजना के कारण शारीरिक तथा मानसिक दुर्बलता हो, सुदाब का तेल उनके लिये अत्यन्त हितकर सिद्ध होता है। नाड़ियों की इत्यादि में अपने आपको असहाय महसूस करने लगता है। नाड़ी दुर्बलता को दूर करने हेतु सुदाब के तेल का विशेष प्रयोग इस प्रकार है- रोगी व्यक्ति को प्रात: एवं सायं के समय सुदाब के तेल को मक्खन में मिलाकर ग्रहण करना चाहिये। तेल की मात्रा दो बूंद ही पर्याप्त है। इस प्रयोग को नित्य दो महीने तक करना चाहिये। साथ ही पूर्व में बताये अनुसार इस तेल की मालिश करने से भी नाड़ी दौर्बल्यता में हितकर परिणाम मिलते हैं।

विशेष- सुदाब के तेल का प्रयोग करते समय एक बात का विशेष ध्यान रखें कि इसके अधिक प्रयोग से सिरदर्द एवं दृष्टि कमजोर होती है। इसकी बताई गई मात्रा में ही करें।

सुदाब के तेल का चमत्कारिक प्रयोग

सुदाब के तेल के कुछ ऐसे चमत्कारिक प्रयोग हैं जिनके करने से जीवन में आने वाली समस्यायें दूर हो होने लगती हैं। इसके साथ-साथ व्यक्ति की कामनाओं की पूर्ति भी होने लगती हैं। यहां पर ऐसे ही कुछ प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है। इन्हें पूर्ण श्रद्धा एवं आस्था से करने पर पूर्ण लाभ की प्राप्ति होती है-

> नज़रदोष के प्रभाव से अनायास रूप से अनेक प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होकर पीड़ा का कारण बन जाती हैं। जो व्यक्ति किसी की नज़र का शिकार होता है, उसे अचानक ही विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। जहां से लाभ एवं सुख-शांति की प्राप्ति हो रही होती है, वहीं से उसे हानि तथा दुख-कलह आदि की पीड़ा होने लगती है। ऐसा क्यों हो रहा है, इस बारे में वह जान नहीं पाता है। बहुत से लोग इसे भाग्य का लिखा मानकर पीड़ा भोगते रहते हैं किन्तु वास्तव में यह समस्या किसी की नज़र लगने से उत्पन्न होती है। इसका समाधान किसी औषधीय उपचार से नहीं होता अपितु इसके लिये विशेष उपाय करने की आवश्यकता रहती है। इन उपायों के प्रभाव से शीघ्र ही नज़र दोष की पीड़ा समाप्त हो जाती है। नज़रदोष का प्रभाव दूर करने हेतु अग्रांकित यंत्र को किसी भी दिन शुभ मुहूर्त में बनाकर नज़रदोष से पीड़ित व्यक्ति पर से 21 बार उसार कर इस यंत्र पर सुदाब का तेल लगाकर जला दें। जलाने के लिये कर्पूर की टिकिया का प्रयोग करें। एक मिट्टी के दीपक में कर्पूर की एक टिकिया रख कर जला दें और फिर उसकी अग्नि से यंत्र को जला दें। मिट्टी का दीपक नहीं मिलने पर किस अन्य पात्र आदि में कपूर की टिकिया रखकर जलाई जा सकती है। यंत्र के जलने के बाद बनने वाली राख किसी झाड़ में डाल दें। इसके प्रभाव से नज़र उतर जाती है। यंत्र इस प्रकार है-

> यह प्रयोग ऐसे लोगों के लिये अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हो सकता है, जिनके घर में कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमार रहता है। कई बार ईष्या से भरा व्यक्ति टोने-टोटके द्वारा आपको हानि पहुंचा सकता है। यह ईर्ष्या आपकी सुख-समृद्धि अथवा अन्य किसी भी कारण से हो सकती है। इस टोने-टोटके के प्रभाव से परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा किसी न किसी रोग से पीड़ित रहता है। इस समस्या के समाधान के लिये आगे दिया गया यंत्र उपाय करना अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होता

है। अग्रांकित यंत्र को सफेद कागज पर काली स्याही से बनायें। इसे किसी भी दिन शुभ मुहूर्त में पूर्वाभिमुख होकर बनायें। बनाते समय मुख में कोई खुशबू रखें अर्थात् मुंह में छोटी हरी इलायची रखकर चबाते हुए ऊनी आसन पर बैठकर इसे बनायें। बनाने के बाद इस यंत्र पर सुदाब का तेल लगाकर इसे कर्पूर की अग्नि से जला दें अर्थात् पहले एक टिकिया कपूर लेकर उसे मिट्टी के दीये पर रखकर जलायें और फिर उसकी अग्नि से इस यंत्र को जला दें। इस यंत्र को घर में जलाने से उस घर में बीमारी का सिलसिला टूट जाता है। अगर आप पर किसी के द्वारा टोना-टोटका किया गया है तो इस प्रयोग से उसका प्रभाव भी समाप्त हो जायेगा। अगर किसी प्रकार की नज़र लगने से समस्यायें उत्पन्न हो रही हों, तब भी यह प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग लगातार 5-7 दिन तक करना होता है। यंत्र इस प्रकार है-


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    अनुक्रम

  1. जीवन का आधार हैं तेल
  2. तेल प्राप्त करने की विधियां
  3. सम्पीड़न विधि
  4. आसवन विधि
  5. साधारण विधि
  6. तेलों के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारियां
  7. नारियल का तेल
  8. अखरोष्ट का तेल
  9. राई का तेल
  10. करंज का तेल
  11. सत्यानाशी का तेल
  12. तिल का तेल
  13. दालचीनी का तेल
  14. मूंगफली का तेल
  15. अरण्डी का तेल
  16. यूकेलिप्टस का तेल
  17. चमेली का तेल
  18. हल्दी का तेल
  19. कालीमिर्च का तेल
  20. चंदन का तेल
  21. नीम का तेल
  22. कपूर का तेल
  23. लौंग का तेल
  24. महुआ का तेल
  25. सुदाब का तेल
  26. जायफल का तेल
  27. अलसी का तेल
  28. सूरजमुखी का तेल
  29. बहेड़े का तेल
  30. मालकांगनी का तेल
  31. जैतून का तेल
  32. सरसों का तेल
  33. नींबू का तेल
  34. कपास का तेल
  35. इलायची का तेल
  36. रोशा घास (लेमन ग्रास) का तेल
  37. बादाम का तेल
  38. पीपरमिण्ट का तेल
  39. खस का तेल
  40. देवदारु का तेल
  41. तुवरक का तेल
  42. तारपीन का तेल
  43. पान का तेल
  44. शीतल चीनी का तेल
  45. केवड़े का तेल
  46. बिडंग का तेल
  47. नागकेशर का तेल
  48. सहजन का तेल
  49. काजू का तेल
  50. कलौंजी का तेल
  51. पोदीने का तेल
  52. निर्गुण्डी का तेल
  53. मुलैठी का तेल
  54. अगर का तेल
  55. बाकुची का तेल
  56. चिरौंजी का तेल
  57. कुसुम्भ का तेल
  58. गोरखमुण्डी का तेल
  59. अंगार तेल
  60. चंदनादि तेल
  61. प्रसारिणी तेल
  62. मरिचादि तेल
  63. भृंगराज तेल
  64. महाभृंगराज तेल
  65. नारायण तेल
  66. शतावरी तेल
  67. षडबिन्दु तेल
  68. लाक्षादि तेल
  69. विषगर्भ तेल

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