स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
|
6 पाठकों को प्रिय 394 पाठक हैं |
जैतून का तेल
जैतून वृक्ष के विभिन्न नाम
हिन्दी, गुजराती, पंजाबी- जैतून, अरबी- जीतून, फारसी- दरख्ते जीतून, अंग्रेजी- Olive-ऑलिया, लेटिन- ऑलिया यूरोपियना या ऑलिया यूरोपिका (Olea Europiana or Olea Europica)
यह वनस्पति जगत के ओलिएसी (Oleaceae) कुल का सदस्य है।
जैतून का वृक्ष सदाबहार होता है। इसका तना काष्ठीय तथा मोटा होता है। तने में शाखायें कुछ ऊपर से निकलती हैं। यह कांटों से युक्त होती हैं। शाखाओं पर लगने वाली पत्तियां लम्बी एवं अण्डाकार (obloug) होती हैं। इसके पुष्प छोटे तथा सफेद रंग के खुशबूदार होते हैं। फल छोटे तथा अण्डाकार अर्थात् जामुन प्लेम के समान होते हैं। पकने पर ये बैंगनी-काले रंग के होते हैं। इन्हें संपीड़ित करके तेल प्राप्त किया जाता है। यह तेल हल्के-पीले अथवा हरे रंग का होता है। इसमें मुख्य रूप से ओलिक अम्ल होता है। वसीय अम्ल का प्रतिशत तेल में कम होता है।
आयुर्वेदानुसार यह तेल उष्ण प्रकृति का, शरीर में गर्मी को उत्पन्न करने वाला, मूत्रल, अश्मरीनाशक, त्वचा शोधक, मसूढ़ों को बल देने वाला तथा प्रस्वेद प्रवर्तक है। इसकी 10 से 30 बूंद मात्रा ली जा सकती है। आंतरिक प्रयोग किसी वैद्य के निर्देशन में ही करें।
जैतून के तेल के औषधीय प्रयोग
जैतून के तेल को स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त उपयोगी बताया गया है। इसलिये इसे खाने के काम भी लिया जाता है। इसका औषधीय महत्व इतना अधिक है कि इसके सामान्य औषधीय प्रयोगों से स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याओं से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। यह प्रयोग इतने सरल हैं कि कोई भी सामान्य व्यक्ति करके लाभ ले सकता है। यहां कुछ इसी प्रकार के उपयोगी किन्तु सरल औषधीय प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है-
धूप में जली हुई त्वचा के शोधन हेतु- कई बार धूप के प्रभाव से त्वचा जल जाती है तथा काली पड़ जाती है। गर्मी के मौसम में यह समस्या अनेक व्यक्तियों को, विशेषकर युवतियों को अधिक परेशान करती है। इसके उपचारार्थ लगभग 20 मि.ली. जैतून का तेल लेकर उसमें बराबर मात्रा में सिरका मिला दें। इस मिश्रण को त्वचा पर हल्के से लगा लें तथा लगभग एक घंटे के बाद त्वचा को शीतल जल से धो लें। ऐसा 2-3 दिन तक करने से धूप के कारण जली हुई त्वचा सामान्य रंग की होने लग जाती है।
शुष्क त्वचा हेतु- कई व्यक्तियों की त्वचा शुष्क रहती है। त्वचा के अधिक शुष्क रहने पर वह खरखर करती है। त्वचा की रूक्षता को दूर करने के लिये 2 चम्मच जैतून का तेल लें। उसमें उससे आधी मात्रा में तिल का तेल मिला लें। अब जितनी मात्रा में तिल का तेल मिलाया हो उतनी ही मात्रा में क्रीम मिलायें। इस मिश्रण को अच्छी तरह से अंगुली की सहायता से मथ लें। मथने के बाद इसे फ्रिज में सुरक्षित रख दें। चाहें तो इसी अनुपात में अधिक मात्रा में क्रीम बनाई जा सकती है। इस क्रीम को चेहरे पर अथवा गर्दन पर अथवा जहां भी रूक्षता प्रतीत हो वहां रूई की सहायता से लगा लें तथा कुछ समय बाद में साफ कर लें। ऐसा करने से त्वचा की शुष्कता दूर होती है।
लिंग दृढ़ीकरण हेतु-लिंग दृढ़ीकरण हेतु जैतून का तेल एक उत्तम औषधि है। इस हेतु कुछ दिनों तक नित्य जैतून के तेल से लिंग का मर्दन करना होता है। इस प्रयोग का चमत्कारिक प्रभाव दिखाई देता है।
झुर्रियां दूर करने हेतु- चेहरे तथा हाथ-पैरों में आने वाली झुर्रियों को कम करने हेतु जैतून का तेल तथा शहद की बराबर-बराबर मात्रा मिलाकर इस मिश्रण की चेहरे पर अथवा प्रभावित स्थल पर धीरे-धीरे मालिश करें। कुछ समय के पश्चात् जहां इस मिश्रण की मालिश की गई हो, वहां शीतल जल से धो लें। ऐसा करने से चेहरे आदि की झुर्रियां धीरे-धीरे कम पड़ जाती हैं। त्वचा में लोच बढ़ जाती है। चेहरे पर यही प्रयोग करने से चेहरा साफ और चमकदार बना रहता है।
त्वचा को कोमल रखने हेतु- सम्पूर्ण शरीर की त्वचा को कोमल रखने हेतु सप्ताह में 2-3 बार सम्पूर्ण शरीर पर जैतून के तेल की भली प्रकार मालिश करके उसके 15 मिनट बाद नहाना चाहिये। प्रयोग अचंभित करने वाला परिणाम देता है।
चेहरे के दाग-धब्बे, कील मुंहासे इत्यादि के निवारणार्थ- चेहरे पर कौल-मुंहासे अथवा अन्य प्रकार के दाग-धब्बे हो जाने की स्थिति में नित्य कुछ दिनों तक जैतून के तेल की मालिश चेहरे पर करें। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में चेहरा बिलकुल साफ हो जाता है तथा कील-मुंहासे एवं दाग-धब्बे इत्यादि समाप्त हो जाते हैं।
बच्चों की मांसपेशियां ताकतवर बनाने हेतु- छोटे बच्चों के बदन पर जैतून के तेल की पर्याप्त मालिश करके फिर उन्हें स्नान कराने से उनकी मांसपेशियां सुदृढ़ होती हैं। उनमें स्फूर्ति बनी रहती है।
कील-मुंहासों पर- बड़े-बड़े कील-मुंहासे चेहरे पर हो जाने की स्थिति में जैतून के तेल में थोड़ा सा नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगायें। इसके बाद 30 मिनट पश्चात् चेहरे को सुहाते गर्म जल से धो डालें। ऐसा करने से कील-मुंहासे समाप्त हो जाते हैं।
नेत्र ज्योतिर्वन हेतु- अंगुली के पोर की सहायता से नेत्रों के नीचे की ओर जैतून का तेल हल्के से लगाने व मालिश करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है तथा नेत्रों के नीचे का कालापन दूर होता है।
वक्ष वृद्धन हेतु- वक्षों पर जैतून के तेल की मालिश करने से वे सुदृढ़ तथा उन्नत हो जाते हैं। वक्षों पर इस तेल को गोलाई देते हुये मालिश करना चाहिये। ताजे दूध के साथ तेल मिलाकर मालिश करने से और भी अच्छा परिणाम आता है।
गले अथवा गर्दन की त्वचा झुलने पर-गले अथवा गर्दन की त्वचा झुलने पर जैतून के तेल को शहद अथवा मलाई में मिलाकर लगाने से लाभ होता है। मिश्रण लगाने के एक घंटे पश्चात् धो डालें।
गर्भोपरान्त पेट पर पड़ने वाले धारीनुमा दागों को दूर करने हेतु- महिलाओं में अधिकांशतः यह समस्या देखने में आती है कि प्रसव के पश्चात् उनके पेट के ऊपर सफेद धारियां जैसी बन जाती हैं। यह धारियां उनकी सुन्दरता को कम करती हैं। ऐसी समस्या में पेट पर जैतून के तेल की मालिश कुछ दिनों तक नित्य करने से परम लाभ होता है।
जैतून के तेल का विशेष प्रयोग
थोड़ा सा जैतून का तेल लें। उसमें बराबर मात्रा में लौकी का रस मिला दें। इस मिश्रण को किसी खुले हुये पात्र में रखकर 15-20 मिनट तक धूप में पड़ा रहने दें। बाद में इस मिश्रण से अंगुलियों के पौरों की सहायता से बालों में मालिश करें। इस प्रयोग को नित्य कुछ दिनों तक करने से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं, बाल लम्बे एवं घने होने लगते हैं तथा उनमें विशेष चमक आ जाती है।
जैतून के तेल के चमत्कारिक प्रयोग
जैतून के तेल का जितना औषधीय महत्व है, उतना ही चमत्कारिक प्रयोगों में भी यह महत्वपूर्ण है। जैतून के तेल द्वारा किये जाने वाले विभिन्न प्रयोगों से अनेक प्रकार की समस्याओं का शमन होता है और अन्य अनेक प्रकार के लाभ की प्राप्ति होती है। इनमें से कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
> उत्तम निद्रा प्राप्ति हेतु जैतून के तेल का दीपक नित्य संध्याकाल में बेडरूम में जलायें। इस तेल में बड़ी इलायची भी डालें। इसके लिये 100 ग्राम जैतून का तेल लें। इसमें 2 बड़ी इलायची कूट कर डाल दें। अब नियमित रूप से प्रतिदिन रूई की एक फूलबती बनाकर इस तेल में डुबोकर पीतल के दीपक पर रखें। इस दीपक को जलाकर बेडरूम में रख दें। यह 10 मिनट तक जलेगा। इस प्रकार नित्य इसी प्रकार शयनकक्ष में यह दीपक लगायें। इसके प्रभाव से न केवल उत्तम निद्रा प्राप्त होती है बल्कि उस कक्ष में शयन करने वाले को बुरे स्वप्न भी नहीं आते हैं।
> नजर दोष का प्रभाव हमें प्राप्त होने वाले सुखों को बाधित करके अनेक प्रकार की समस्याओं को उत्पन्न कर देता है। नज़र दोष का प्रभाव स्वयं व्यक्ति पर तो आता ही है, साथ ही उन पर भी नज़र दोष का प्रभाव आता है जिनसे व्यक्ति को किसी भी प्रकार के लाभ की प्राप्ति होती है। अपने लाभ के लिये बहुत से व्यक्ति अपने घर पालतू जानवर रखते हैं। इनमें उन जानवरों की संख्या ही अधिक होती है, जो दूध देते हैं। इसलिये घर में पाले हुये पशुओं को भी नज़र लगती है। नज़र के प्रभाव से वे सुस्त हो जाते हैं। खाना-पीना बंद कर देते हैं। यदि दूध देने वाले पशु हुये तो दूध देना बहुत कम कर देते हैं या फिर बिलकुल ही बंद कर देते हैं। ऐसी किसी भी स्थिति में अग्रांकित थत्र को बनाकर उस पशु पर से 21 बार उसार कर उस पर जैतून का तेल लगाकर जला दें। उसके जल जाने के बाद जो राख बचे उसे किसी झाड़ में डाल दें। ऐसा दो-तीन बार करने से उस पशु की नज़र उतर जाती है। इस यंत्र का निर्माण सादा सफेद कागज पर करें। लेखन के लिये काली स्याही तथा किसी भी कलम का प्रयोग कर सकते हैं। जब भी आवश्यकता हो, तभी इस यंत्र का निर्माण करके काम में लिया जा सकता है। यंत्र इस प्रकार है
> जैतून के तेल में बराबर मात्रा में चालमोगरा का तेल मिला लें। रोजाना इस मिश्रण में रूई की फूलबत्ती डुबोकर उसे पीतल के दीपक पर रखकर घर में जलाने से प्रतिकूल परिस्थितियां शीघ्र ही दूर हो जाती हैं। कार्यों में आने वाली बाधायें समाप्त होती हैं एवं शांति का वातावरण बना रहता है।
> जैतून के तेल की कुछ मात्रा फिनाइल में मिलाकर कमरे में छिड़कने अथवा इससे फर्श साफ करने से हैजा, प्लेग आदि के संक्रमण का खतरा नहीं रहता है।
|
- जीवन का आधार हैं तेल
- तेल प्राप्त करने की विधियां
- सम्पीड़न विधि
- आसवन विधि
- साधारण विधि
- तेलों के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारियां
- नारियल का तेल
- अखरोष्ट का तेल
- राई का तेल
- करंज का तेल
- सत्यानाशी का तेल
- तिल का तेल
- दालचीनी का तेल
- मूंगफली का तेल
- अरण्डी का तेल
- यूकेलिप्टस का तेल
- चमेली का तेल
- हल्दी का तेल
- कालीमिर्च का तेल
- चंदन का तेल
- नीम का तेल
- कपूर का तेल
- लौंग का तेल
- महुआ का तेल
- सुदाब का तेल
- जायफल का तेल
- अलसी का तेल
- सूरजमुखी का तेल
- बहेड़े का तेल
- मालकांगनी का तेल
- जैतून का तेल
- सरसों का तेल
- नींबू का तेल
- कपास का तेल
- इलायची का तेल
- रोशा घास (लेमन ग्रास) का तेल
- बादाम का तेल
- पीपरमिण्ट का तेल
- खस का तेल
- देवदारु का तेल
- तुवरक का तेल
- तारपीन का तेल
- पान का तेल
- शीतल चीनी का तेल
- केवड़े का तेल
- बिडंग का तेल
- नागकेशर का तेल
- सहजन का तेल
- काजू का तेल
- कलौंजी का तेल
- पोदीने का तेल
- निर्गुण्डी का तेल
- मुलैठी का तेल
- अगर का तेल
- बाकुची का तेल
- चिरौंजी का तेल
- कुसुम्भ का तेल
- गोरखमुण्डी का तेल
- अंगार तेल
- चंदनादि तेल
- प्रसारिणी तेल
- मरिचादि तेल
- भृंगराज तेल
- महाभृंगराज तेल
- नारायण तेल
- शतावरी तेल
- षडबिन्दु तेल
- लाक्षादि तेल
- विषगर्भ तेल