स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
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पान का तेल
पान के तेल के विभिन्न नाम
हिन्दी- पान, नागरबेल, संस्कृत- ताम्बूलवल्ली, ताम्बूली, नागिनी, नागवल्लरी, बंगला-पान, मराठी- नागबेल, गुजराती-नागर बेलना, पान, कन्नड्र- नागरवल्ली, तेलुगु- तमलपाकु, तामिल- बेष्टिली, फारसी- वर्ग ताम्बोल, अरबी- कान, अंग्रेजी-Betel leaf– बेटल लीफ, लेटिन-पाईपर बेटल-(Piperbetel)
यह लता वनस्पति जगत के पाईपेरेसी (Piperaceae) कुल की सदस्या है।
पान लता जाति की वनस्पति है। इसकी लता देखने में काफी सुन्दर होती है। इसकी पत्तियों का आकार पीपल की पत्तियों के समान होता है। ये पत्तियां एक तरफ से चिकनी तथा गहरे रंग की तथा दूसरी तरफ से खुरदरी तथा हल्के रंग की होती हैं। पत्तियां मोटे वृन्त वाली होती हैं। वृंत पर लम्बी-लम्बी धारियां भी होती हैं। काण्ड पतला होता है। पान की एक जाति को टट्टर बांध कर उसकी छाया में विकसित किया जाता है। इसकी एक जाति के पर्ण छोटे आकार के होते हैं। इसकी पत्तियों में खुशबू होती है। पत्तियों के आसवन से इनमें उपस्थित एक खुशबूदार, वाष्पशील तेल प्राप्त किया जाता है। इस तेल में टरपीन, बेटल फिनॉल तथा सेस्क्वीटरपीन नामक रसायन मुख्य रूप से पाये जाते हैं।
आयुर्वेदानुसार पान का तेल उत्तम श्रेणी का सड़नरोधक है। यह श्लेष्म रोगों में हितकारी, रोहिणी आदि गले के रोगों में लाभ करने वाला, उष्ण एवं पाचक होता है। इसकी 1 से 6 बूंद तक मात्रा ली जा सकती है। पान के तेल की एक बूंद 4 पान के बराबर है। यह हल्के रंग का उड़नशील एवं सुगन्धित होता है।
पान के औषधीय महत्त्व
पान चबाने का प्रचलन प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है। भोजन के पश्चात् पान चबाने से मुखशोधन के साथ-साथ पाचन भी ठीक प्रकार से होता है। इसलिये इसके औषधीय महत्व को स्वीकार किया गया है। इसी प्रकार से पान के तेल के भी अनेक ऐसे औषधीय प्रयोग हैं जिनसे आप लाभ ले सकते हैं। यहां कुछ विशेष प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है-
बच्चों के कब्ज होने पर- छोटे बच्चों को कब्ज हो जाने की स्थिति में यह प्रयोग करें- दो चम्मच मूंगफली के तेल में एक बूंद पान का तेल मिलाकर उस तेल में पान के डंठल को डुबो दें। इस डंठल को बच्चे के गुहयद्वार में प्रवेश करा दें। ऐसा करने से उनकी कोष्ठबद्धता समाप्त होती है तथा उन्हें साफ दस्त हो जाता है। यह प्रयोग एक दिन में एक बार से अधिक न करें। मूंगफली के तेल के स्थान पर नारियल का तेल भी ले सकते हैं। वह मूंगफली के तेल की तुलना में उत्तम होता है।
मुख दुर्गन्ध निवारणार्थ- कई व्यक्तियों के मुख से काफी दुर्गन्ध आती है। इस दुर्गन्ध का मुख्य कारण अपच तो होता ही है इसके अलावा दांतों के बीच उत्पन्न होने वाले कीटाणु भी होते हैं। मुख दुर्गन्ध निवारणार्थ लगभग 50 ग्राम सरसों के तेल में 8-10 बूंद पान का तेल मिला दें। इस तेल की थोड़ी सी मात्रा मुख में भरकर कुछ समय तक रखकर मुंह में चारों तरफ घुमायें। इससे यह दांतों के बीच-बीच में जाकर दुर्गन्ध एवं कीटाणुओं को समाप्त करता है। इस प्रयोग को 4-8 दिन करने से मुख कीटाणु जनित दुर्गन्ध दूर होती है।
शिरोपीड़ा में- शिरोपीड़ा होने की स्थिति में मस्तक तथा कपाल पर पान के तेल की मालिश अंगुली के पौरों द्वारा हल्के से करने से श्रेष्ठ लाभ होता है।
स्तनों की सूजन पर- स्त्रियों के स्तनों पर, विशेष रूप से प्रसूता के स्तनों पर सूजन आने की स्थिति में उसके स्तनों पर ताम्बूल के तेल की मालिश करके कपड़े की सहायता से सिकाई करने से लाभ होता है। बच्चा यदि दूध पीता हो तो स्तनों को साफ कर लें।
गले में पीड़ा होने या गला बैठ जाने पर- आधा गिलास गुनगुने पानी में 4 से 6 बूंद पान के तेल की मिलाकर उससे गरारा करने से पर्याप्त लाभ होता है।
पान के तेल का विशेष प्रयोग
पान का तेल श्वासनली प्रदाह, श्वासनली में कष्ट होने पर परम उपकारी है। इसके लिये लगभग 600 ग्राम गर्म पानी में 2 बूंद पान का तेल डाल कर बनने वाली वाष्प को श्वास द्वारा ग्रहण करना चाहिये। इस प्रयोग से गलशोथ में भी लाभ होता है।
पान के तेल के चमत्कारिक प्रयोग
पान के तेल के अनेक ऐसे चमत्कारिक प्रयोग भी हैं जिनके द्वारा आप अपनी अनेक समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। यह प्रयोग अत्यन्त सरल हैं जिन्हें आसानी के साथ किया जा सकता है। यहां ऐसे ही कुछ प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है-
> जिस घर में पितृदोष जनित बाधायें बार-बार उत्पन्न हो रही हों, जिसके कारण घर के लोग अक्सर बीमार पड़ते रहते हों, उनकी पर्याप्त उन्नति न हो पा रही हो अथवा उन्हें संतान पीड़ा हो तथा ऐसे और भी अनेक उत्पात हो रहे हों तो निश्चय ही इस प्रयोग को सम्पन्न कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रयोग में रोजाना एक ग्राम देशी कपूर लेकर उस पर एक बूंद ताम्बूल तेल डालकर एक प्लेट पर रखकर जला दिया करें। प्रयोग कम से कम 40 दिनों तक करना है। इससे अधिक कर सकें तो और भी उत्तम रहेगा !
> शत्रु पीड़ा होने पर लगभग 50 ग्राम घी में 10 बूंद पान का तेल मिलाकर इस घी का दीपक नित्य पीड़ित व्यक्ति अपने शयनकक्ष में लगायें। दीपक लगाने के लिये उत्त मिश्रण में रूई की फूलबत्ती डुबोकर उसे पीतल के दीपक पर रखकर जलाया जाता है। यह दीपक 5 से 7 मिनट तक जलेगा तथा प्रतिदिन इतना ही पर्याप्त है। अत: उत्त अनुपात के अनुसार 100 ग्राम घी बना लिया जाये तो निश्चय ही वह 15 से 20 दिन तक के लिये पर्याप्त होगा। प्रयोग कम से कम 40 दिन तक करना होता है।
> जिस कन्या का विवाह नहीं हो पा रहा हो तो उसे 11 बुधवार लगातार फूलवाली 2 लौंग लेकर उन्हें पान के तेल में डुबोकर जलाना चाहिये। जलाने हेतु पान के तेल में लौंग डुबोकर उन्हें गैस-बर्नर पर रखकर भी जलाया जा सकता है। इसे आप अन्य प्रकार से भी जला सकती हैं। इसके लिये एक टिकिया कपूर की लें। उस टिकिया के ऊपर पान के तेल में डुबोकर 2 लौंग रखकर कपूर को अग्नि दिखा दें। कपूर के जलने के साथ लौंग भी जल जायेंगी। जब तक लौंग जलें तब तक वह कन्या वहीं बैठी रहे तथा शीघ्र विवाह हो जाये ऐसी भावना करे। ऋतुकाल में यदि बुधवार पड़े तो प्रयोग न करें। उसके बदले में एक बुधवार प्रयोग अधिक करें।
> कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति को अपने शयनकक्ष में एक सरल प्रयोग करने से लाभ होता है। इस प्रयोग के अंतर्गत वह 50 ग्राम तिल का तेल, 20 ग्राम कपास का तेल, 20 ग्राम देवदारु का तेल तथा 10 मि.ग्रा. पान का तेल लेकर उसका मिश्रण बनाये तथा इस मिश्रण एक मिट्टी के दीपक में लेकर उसमें 4 दिशाओं की तरफ 4 बत्तियां लगाकर नागपंचमी के दिन इस दीपक को शिव मंदिर में जला दे तथा 3 अथवा 5 गरीब लोगों को भोजन कराकर वस्त्र एवं द्रव्य दान करे। ऐसा करने से उसके सर्पदोष अथवा कालसर्प दोष की शांति होती है। अपने हाथों किसी सर्प की मृत्यु होने पर भी यही प्रयोग उसी दिन अवश्य करें।
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