स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
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मुलैठी का तेल
मुलैठी के विभिन्न नाम
हिन्दी-मुलहठी, मुलैठी, संस्कृत-मधूलिका, यष्टिमधु क्लीतक, बंगला-यष्टीमधु मराठी- ज्येष्ठमध, गुजराती- जेठी मधु, फारसी-बेखमहक, अरबी- असलुस्सूस, तेलुगु- यष्ठीमधुकम, अंग्रेजी- Liquorice root (लिकोरिस रूट), लेटिन-ग्लायसायराईझा ग्लेबा (Glycyrrhiza glabra)
यह वनस्पति लैग्युमिनोसी (Leguminosae) कुल में आती है।
यह एक चिरस्थायी क्षुप जाति की वनस्पति है। इसकी ऊंचाई 3-4 फीट के लगभग होती है। इसका काण्ड पतला होता है। पत्तियाँ पक्षवत एवं संयुक्त प्रकार की होती हैं। पुष्प बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी मूल (जड़) स्वाद में मीठी होती है। उसी मूल में एक प्रकार का उत्पत् तेल होता है जिसे मुलैठी का तेल कहते हैं। इसमें मुख्य रूप से ग्लायसायराईझिक अम्ल, ग्लायसायराईजीन, ग्लूकोज, सुक्रोज आदि रसायन हाते हैं।
आयुर्वेदानुसार यह एक बल्य, रुचिकर, वमन शामक, वाजीकारक, रक्तशोधक, व्रणरोपण, शोथहर, नेत्रों को हितकारी, स्वरशोधक, केशशोधन, क्षयनाशक, त्वचा के लिये हितकारी तथा ग्लानि को दूर करने वाला होता है।
मुलैठी के तेल के औषधीय प्रयोग
मुलैठी अति प्राचीनकाल से रोगोपचार में प्रयुक्त की जाती है। इसके अनेक सरल एवं निरापद औषधीय प्रयोग हैं। इसी प्रकार इसके तेल के भी अनेक औषधीय प्रयोग हैं। इसके प्रयोग से अनेक रोगों में तत्काल लाभ दृष्टिगोचर होता है। यह प्रयोग अत्यन्त सरल हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से कर सकता है। इनमें से कुछ अति सरल एवं प्रभावी प्रयोगों को नीचे लिखा जा रहा है:-
चेहरे का सौंदर्य बढ़ाने हेतु- चेहरे पर चमक एवं गौरेपन की वृद्धि करने हेतु मुलैठी के तेल द्वारा उबटन बनाकर काम में लिया जाता है। इसके लिये थोड़े से मक्खन में 4-8 बूंद मुलैठी का तेल मिलाकर उस मिश्रण को भली प्रकार से चेहरे पर मल लेना चाहिये। 10-15 मिनट के पश्चात् इसे गुनगुने जल से धो लेना चाहिये। ऐसा करने से चेहरा साफ हो जाता है। यह प्रयोग उन युवतियों के लिये अत्यन्त लाभदायक है जो अपने सौंदर्य के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती हैं।
शुक्रवर्द्धन हेतु- अनेक व्यक्तियों के वीर्य में कमी होती है अथवा उनके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम होती है। ऐसे किसी भी मामले में मुलैठी के 4 बूंद तेल को औटाये हुये दूध के साथ सेवन करना चाहिये। यह प्रयोग नित्य करें। कुछ ही दिनों में इस प्रयोग के परिणामस्वरूप शुक्राणुओं में पर्याप्त वृद्धि परिलक्षित होती है।
घावों के उपचारार्थ- हाथ-पैरों में घाव हो जाने की स्थिति में अग्रांकित प्रयोग द्वारा लाभ लिया जा सकता है। इसके लिये एक चम्मच घी में 8 बूंद मुलैठी का तेल मिला लें। इस मिश्रण को रूई में भिगोकर घाव पर रख दें एवं ऊपर से एक जालीदार पट्टी बांध दें। ऐसा करने से घाव शीघ्रता से भरने लगता है।
गर्भवती महिला के उपकारार्थ- कभी-कभी किसी गर्भवती महिला के पेट में शिशु काफी कमजोर हो जाता है। इस स्थिति में उस महिला को एक पाव औटाये हुये दूध में 2 बूंद मुलैठो का तेल मिलाकर देने से पर्याप्त लाभ होता है। इस प्रयोग को किसी वैद्य के निर्देशन में करना ज्यादा उत्तम होगा।
पाण्डु रोग में- पाण्डु रोग अर्थात् पीलिया होने पर रोगी को एक तोला शहद में 2-3 बूंद मुलैठी का तेल मिलाकर देना परम हितकर होता है। प्रयोग 2-3 दिन तक लगातार करना होता है। रोग में स्पष्ट लाभ होता हुआ दिखाई देगा। यह एक निरापद प्रयोग है।
मूत्रावरोध में- मूत्र के रुक-रुक कर आने अथवा मूत्र थोड़ा-थोड़ा उतरने की स्थिति में लगभग 250 मि.ग्रा. दूध को 10-15 किशमिश के साथ उबालें। फिर इसे ठण्डा होने दें। जब यह गुनगुना रह जाये तब इसमें 3-4 बूंद मुलैठी का तेल मिलायें और इस दूध को रोगी को पिलायें। यह प्रयोग सुबह के समय करना चाहिये। ऐसा 3-4 दिन तक करने से मूत्रावरोध की समस्या दूर होती है।
नेत्रों के हितार्थ- कुटे हुये ताजा आंवले के आधा चम्मच रस के साथ 2-3 बूंद मुलैठी का तेल मिलाकर जल के साथ नित्य सुबह लेने से नेत्रों की अनेक समस्यायें दूर होने लगती हैं।
बालों के झड़ने पर- लगभग 100 ग्राम तिल का तेल लेकर उसमें 20 मिग्रा. मुलैठी का तेल मिला लें। इस मिश्रण को सहेज कर रख लें। नित्य इस तेल के मिश्रण को अंगुलियों की सहायता से सिर में भली प्रकार लगाने से बालों का झड़ना कुछ ही दिनों में बंद हो जाता है।
दुग्धवर्द्धन हेतु- कभी-कभी किसी महिला को प्रसवोपरान्त पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं उतरता है जिसका विपरीत प्रभाव उसके बच्चे पर पड़ता है। प्रसूति के उपरान्त महिला के स्तनों में पर्याप्त दूध उतरे, इस हेतु वह एक चम्मच भर खाण्ड में 4 बूंद मुलैठी का तेल मिलाकर फांक लें तथा ऊपर से उबला हुआ ठण्डा किया दूध पी लें। इस प्रयोग को 4-5 दिन तक करने से ही पर्याप्त लाभ होता है।
मुलैठी के तेल का विशेष प्रयोग
मुलैठी का तेल उत्तम वाजीकारक होता है। इस हेतु लगभग 300 मि.ग्रा. दूध को इतना उबालें कि वह 200 मि.ग्रा. रह जाये। इसमें आवश्यकतानुसार मिश्री तथा 4 बूंद मुलैठी का तेल मिलाकर रात्रि में सोने के 2 घण्टे पूर्व लेने से उत्तम वाजीकरण होता है। प्रयोग कुछ दिनों तक करने से अत्यन्त लाभ होता है।
मुलैठी के तेल का चमत्कारिक प्रयोग
कई बार ऐसा देखने में आता है कि अनेक व्यक्तियों के कार्य एक प्रकार से स्थिर हो जाते हैं अर्थात् वह कार्य पूर्ण नहीं होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने काम को पूरी निष्ठा तथा श्रम के साथ करते हैं किन्तु उन्हें लाभ होता प्रतीत नहीं होता है। इस कारण से अनेक प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होने लग जाती हैं। काम बनते नहीं हैं और बनते हैं तो अचानक अनेक बाधायें उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसी किसी भी स्थिति में अग्रांकित कागज पर काली स्याही से बना लें। जिस दिन आपको यंत्र का निर्माण करना हो, उस दिन प्रातः स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र पहनें। जहां यंत्र बनाना है, वहां की स्थान शुद्धि करें। सूती आसन पर इस प्रकार से बैठे कि आपका मुंह उत्तर दिशा की तरफ हो। मुंह में एक हरी इलायची डाल लें और फिर यंत्र को बना लें। इसे बनाकर इस यंत्र के नीचे आपका जो काम नहीं हो पा रहा हो, वह लिखें और फिर इस यंत्र को किसी नदी में प्रवाहित कर दें। साथ में 2 गुलाब के फूल भी प्रवाहित करें। इसके प्रभाव से वह काम आगे बढ़ जाता है अर्थात् काम में आ रही बाधायें समाप्त होकर रुके हुये काम पूरे होने लगते हैं। यंत्र इस प्रकार है-
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