स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
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कुसुम्भ का तेल
कुसुम्भ के विभिन्न नाम
हिन्दी- कुसुमा, संस्कृत- कुसुम्भ, वस्त्ररन्जक, बंगला- कुसुम फूल, मराठीकर्डयांचे फूल, गुजराती- कुसुम्बो, कन्नड़- कुसुम्भ, तेलुगु- अग्निशिखा, फारसी- खस्वारानाकाजिरा, अरबी- अखरीज, अतुल अस्कर, अंग्रेजी- Cloth colouring plant. लेटिन-कार्थेमस टिंक्टोलियस (Carthamustinctorius)
यह पौधा वनस्पति जगत के कम्पोजिटी (Compositae) कुल का है।
यह शाकीय जाति का पौधा है। इसका काण्ड अति अल्प काष्ठयुक्त होता है। इसके पत्ते पतले, लम्बे, कांटेदार तथा मुलायम होते हैं। इसके पुष्प का रंग कुमकुम की भांति होता है। इसलिये इसका एक नाम ग्राम्य कुमकुम भी है। पुष्प केवल शाखा के अग्रभाग में ही होते हैं। इसके बीज सफेद, चिकने तथा देखने में छोटे शंख की तरह होते हैं अर्थात् एक तरफ से ये मोटे तथा दूसरी तरफ से पतले होते हैं। इसके मोटे भाग की तरफ धूसर वर्ण (Grey colour) का एक चिहन होता है जबकि पतले वाले भाग की तरफ अंगूठी के समान निशान बने रहते हैं। इसकी माँगी का स्वाद तिक्त होता है। इन्हीं बीजों में एक प्रकार का तेल पाया जाता है, जिसे संपीड़न के द्वारा प्राप्त किया जाता है। तेल या मोंगी में एक प्रकार की गंध भी होती है। भारत में पंजाब इत्यादि में कुसुम्भ की खेती भी की जाती है। इसे रबी की फसल के साथ शरदकाल में बोया जाता है और शीतकाल में ही यह पुष्पित हो जाता है। यह हल्के पीले रंग का अथवा गंदले रंग का होता है।
आयुर्वेदानुसार यह एक उष्ण, गुरु, दाहकारक, अम्ल स्वाद, नेत्रों के लिये अहितकारक, बलकारी, रक्तपित्त और कफकारक, मलस्तम्भक, त्रिदोशनाशक, कृमिनाशक तथा वात रोगों का नाश करने वाला है।
कुसुम्भ के तेल के औषधीय प्रयोग
औषधीय दृष्टि से कुसुम्भ के महत्व को स्वीकार किया गया है। प्राकृतिक जड़ी-बूटियों पर आधारित आयुर्वेद ने इसे अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं एवं रोगों को दूर करने में उपयोगी पाया है। कुसुम्भ के बीजों से प्राप्त तेल का भी स्वास्थ्य रक्षा में प्रयोग लाभदायक सिद्ध होता है। कुसुम्भ तेल के अनेक औषधीय प्रयोग हैं जो न केवल सरल एवं प्रभावी हैं बल्कि निरापद भी हैं। इनमें से कुछ प्रयोगों को यहां लिखा जा रहा है-
घावों को भरने के लिये- केवल मधुमेह के रोगियों के शरीर पर होने वाले घावों को छोड़कर अन्य किसी भी व्यक्ति को शरीर में यदि कहीं घाव हो तो कुसुम्भ के तेल का प्रयोग लाभदायक रहता है। इसके लिये कुसुम्भ के तेल के एक भाग में तीन भाग तिल का तेल मिला ले। भली प्रकार मिलाकर इस मिश्रण को घावों पर लगाने से वे शीघ्र भर जाते हैं तथा ठीक हो जाते हैं। बड़े घाव होने की स्थिति में उत्त मिश्रण में रूई का फोहा डुबोकर उसे घाव में भर देने से तथा ऊपर से रूई रखकर पट्टी बांध देने से पर्याप्त लाभ होता है।
प्रतिश्याय में- प्रतिश्याय की स्थिति में कुसुम्भ का तेल चमत्कारिक रूप से प्रभाव दिखाता है और इससे उत्पन्न पीड़ा का शमन करता है। कुसुम्म का तेल 3-4 बूंद लेकर नासा के ऊपर तथा आस-पास मसलने से प्रतिश्याय में लाभ होता है। ध्यान रहे कि यह तेल नेत्रों में जाने न पाये अन्यथा हानि हो सकती है।
ज्वर होने पर- ज्वर हो जाने पर अथवा हाथ-पैरों के टूटने पर अथवा बुखार के आने की यदि संभावना हो तो थोड़ा सा कुसुम्भ का तेल हथेलियों पर लेकर उसकी मालिश हाथ-पैर तथा पीठ में करने से लाभ होता है। बुखार उतर जाता है। आने वाला बुखार नहीं आता है।
कामला रोग में- एक बूंद कुसुम्भ के तेल में दो बूंद तिल अथवा अलसी का तेल मिलाकर एक कैप्सूल में भरकर जल से निगल लें। 3-4 दिन तक इस प्रयोग को करने से कामला रोग जाता रहता है।
जोड़ों के दर्द में- घुटनों पर, पीठ अथवा कमर दर्द होने की स्थिति में कुसुम्भ के तेल की मालिश संबंधित स्थान पर करने से लाभ होता है। इस मालिश हेतु तिल एवं कुसुम्भ का तेल बराबर-बराबर मात्रा में लेकर, मिलाकर इस प्रयोग को करना चाहिये। यह मालिश हल्के हाथों से करें। मालिश के पश्चात् अगर नमक को गर्म करके उसे एक सूती कपड़े में डालकर, इससे सेक किया जाये तो लाभ में वृद्धि होती है।
कुसुम्भ के तेल का विशेष प्रयोग
कभी-कभी हाथ-पैरों में अथवा अंगुलियों में लकवा मार जाता है जिससे सम्बन्धित स्थान पर सुन्नता आ जाती है। ऐसी अवस्था में कुसुम्भ के तेल का प्रयोग लाभ करता है। इसके लिये थोड़े से तिल के तेल में कालीमिर्च का चूर्ण तथा भांग का चूर्ण डालकर पर्याप्त रूप से गर्म कर पका लें। इसके लिये यदि तेल 100 ग्राम हो तो उसमें 10-10 ग्राम कालीमिर्च एवं भांग का चूर्ण डालकर पकायें। बाद में इसे छान लें। इस छने हुये तेल में लगभग 30 ग्राम कुसुम्भ का तेल मिला दें। यह मिश्रण अब प्रयोग के लिये तैयार है। इस मिश्रण की मालिश लकवा ग्रसित अंगों पर धीरे-धीरे करने से शीघ्र ही लकवे का प्रभाव समाप्त होता है तथा संबंधित भाग में चेतना आने लग जाती है। इस मिश्रण को नेत्रों में लगाने से हमेशा बचना चाहिये। इसलिये मालिश के बाद मालिश करने वाले को अपने हाथों को भली प्रकार से धो लेना चाहिये।
कुसुम्भ के तेल का चमत्कारिक प्रयोग
> कुसुम्भ का तेल ध्यान एवं त्राटक करने वालों के लिये अत्यंत उपयोगी है। इसके लिये एक दीपक में थोड़ा सा कुसुम्भ का तेल लें। उसमें थोड़ा सा कपूर मिला दें। यदि तेल 10 ग्राम हो तो उसमें 1 ग्राम कपूर मिलायें। इस दीपक को जला दें। इसकी लौ के थोड़े से ऊपर एक चीनी की प्लेट उलटा करके रख दें। इस लौ के कारण चीनी की प्लेट पर कालिख जमा हो जायेगी। उत्त कालिख से सफेद कागज पर एक काला गोला बना लें। गोले का आकार एक रुपये के सिक्के के बराबर का हो। इस कागज को अपने एकांत कक्ष की दीवार पर चिपका दें। इसे इस प्रकार चिपकायें कि इसके सामने बैठने पर यह ठीक आंखों की सीध में रहे। पर्याप्त दूरी पर एक सूती आसन बिछाकर उस पर एकदम सीधी अवस्था में बैठ जायें। अपनी आंखें बंद करके 2-3 गहरी-गहरी सांसें लें। इन्हें अपने भीतर जितना रोक सकते हैं, उतना रोकें फिर बाहर निकाल दें। अब आंखें खोल कर सामने कागज पर बनाये काले गोले पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। इसमें आपको पलकें नहीं झपकानी हैं। जितनी देर एकटक काले गोल निशान को अपलक देख सकते हैं, देखें। जब पलकें झपक जायें और आंखों से पानी आने लगे, तब इस क्रिया को रोक दें। इससे आपकी समस्त ऊर्जा काले निशान पर केन्द्रित होने लगती है, ध्यान का भटकना बंद हो जाता है और आत्मबल में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है, प्रतिदिन इस अभ्यास को करें।
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