स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
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प्रसारिणी तेल
यह एक विशिष्ट प्रकार का तेल है जो कि अनेक वायु रोगों पर प्रभावशाली है। इसे सिद्ध करने हेतु सर्वप्रथम 60 ग्राम प्रसारिणी लें। प्रसारिणी इसी नाम से जड़ी-बूटी वालों के यहां प्राप्त हो जाती है। इस प्रसारिणी की 60 ग्राम मात्रा को 180 ग्राम जल में डालकर काढ़ा बनायें। जब चौथाई पानी बच जाये तब इसे उतारकर छान लें। अब इस काढ़े में 40-40 ग्राम तिल का तेल, दही और कांजी मिलायें। इसके पश्चात् इसमें 160 ग्राम गाय का दूध मिलायें। एक अलग पात्र में 20-20 ग्राम मुलैठी, पीपरामूल, चीते जटामांसी लें। इन सभी पदार्थों का कल्क करें अर्थात् इन्हें पीसकर इनका रस निकालें। शुष्क होने की स्थिति में पर्याप्त जल के साथ पीसकर इनका कल्क करें। अब इस कल्क को उपरोक्त तेल आदि मिश्रण में मिलायें (जिस मिश्रण में तेल, गोदुग्ध आदि थे)। इसके पश्चात् इस सम्पूर्ण मिश्रण को अग्नि पर चढ़ाकर औटायें। जब तेल मात्र बाकी रहे तब इसे उतारकर छान लें। यह प्रसारिणी तेल के नाम से विख्यात है। अनेक वायु रोगों पर अपना विलक्षण प्रभाव दर्शाने वाला यह एक दिव्य तेल है। इसके प्रयोग से निम्नांकित लाभ होते हैं:-
> इसकी मालिश करने से कफ तथा वात विकार लुप्त हो जाते हैं।
> इस तेल की मालिश से खंजवायु जो कि मनुष्य को टेढ़ाकार देती है तथा पूंगुवायु जो कि मनुष्य को पंगु बना देती है, ये दोनों ही प्रकार की वायु का नाश होता है।
> कूबड़ पर इस तेल की हल्की मालिश करने से उसका बढ़ना रुक जाता है तथा उसका घटाव शनै: शनै: होने लगता है। > लकवा ग्रसित क्षेत्र में लाभ प्राप्त करने हेतु इसकी मालिश करनी चाहिये।
> इसकी हल्की सी मालिश ठोड़ी पर करने से उसका दर्द दूर होता है।
> पीठ में इसकी मालिश करने से पीठ दर्द तथा पीठ की जकड़न दूर होती है।
> गर्दन की जकड़न पर इस तेल की मालिश करने से बहुत लाभ होता है।
> कमर दर्द तथा कमर की जकड़न पर सुबह-शाम इस तेल की मालिश करने से शीघ्र आराम होता है।
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