स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
|
6 पाठकों को प्रिय 394 पाठक हैं |
विषगर्भ तेल
समस्त वात रोगों का नाश करने वाला सर्वोत्तम तेल है, विषगर्भ तेल। इस तेल को सिद्ध करने हेतु पुष्कर मूल (पोहकर) सौंठ, वच, भारंगी, शतावर, मजीठ, हल्दी, लहसुन, बायविडंम, देवदारु, अश्वगंधा, अजमोद, मिरच, पीपलामूल, खरेंटी, गंध प्रसारिणी, सहजन, गिलोय, झाऊबेर (हाउबेर), हरड़, दशमूल, संभालु मैथी, पाठ, क्रौंच के बीज, इन्द्रायन की जड़ तथा सौंफ, इन सभी की 20-20 ग्राम मात्रा लें। इनका जितना वजन बने उससे चार गुना जल लेकर उसमें औटायें। जब 3 हिस्सा पानी जल जाये और चौथाई हिस्सा पानी शेष रहे तब इसे उतार लें। इसमें 250 ग्राम मूंगफली का तेल, 250 ग्राम अरण्डी का तेल तथा 250 ग्राम सरसों का तेल मिलायें। इसी के साथ इसमें धतूरा, अरण्डी, भांगरा तथा आंकड़े का 250-250 ग्राम रस मिलायें। इसके उपरांत गाय के गोबर को थोड़े से जल में घोल कर कपड़े की सहायतों से गार कर निकाला गया गोबर का 250 ग्राम रस मिलायें। इस सम्पूर्ण पदार्थों को गर्म करें। जब सम्पूर्ण जल तत्व उड़ जायें तब यह तेल सिद्ध हो जाता है। तत्पश्चात् इसे छानकर इसमें 15 ग्राम संखिया मिलाकर रख दें। यह तेल तैयार है। उपरोक्त वर्णित मात्रा के अनुपात के आधार पर तेल बनाने हेतु औषधियों की मात्रायें कम या अधिक उसी अनुपात में ली जा सकती हैं। ध्यान रहे कि जब भी इसका उपयोग करें, उस समय प्रयोग के उपरान्त इसकी मालिश करने वाला अपने हाथों को भलीभांति साबुन से धो ले। इस तेल के अनेक औषधीय महत्व हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न हैं:-
> इस तेल की मालिश करने से संधिगत वायु का नाश होता है जिसके कारण संधियों की पीड़ा समाप्त होती है।
> पीठ दर्द होने पर इसकी मालिश करने से तुरन्त लाभ होता है।
> कमर दर्द होने पर इसकी मालिश करने से त्वरित आराम मिलता है।
> किसी भी स्थान पर लकवा मार जाने पर इसकी मालिश करने से उत्तम लाभ होता है।
> कंपवात अर्थात् हाथ-पैर, अंगुली आदि में कपंन होने की स्थिति में इस तेल की मालिश करने से बहुत लाभ होता है।
> कूबड़ पर इसकी नित्य मालिश करने से उसकी वृद्धि रुक जाती है तथा वह शनै: शनै: न्यून होने लगता है।
> धनुष रोग में इसकी मालिश परम हितकर है।
कुल मिलाकर इस तेल के प्रयोग से सम्पूर्ण वायु रोगों का नाश होता है।
यहां जितने प्रकार के सिद्ध तेल बनाने के बारे में बताया गया है, वे सभी अत्यन्त चमत्कारिक परिणाम देते हैं। इनकी मालिश से अनेक प्रकार की पीड़ा का शमन होता है। इन तेलों को सिद्ध करने हेतु जिन सामग्रियों की आवश्यकता होती है, वे बाजार में पंसारियों की दुकानों से मिल जाती हैं। इसलिये आप चाहें तो इनका निर्माण अपनी सुविधानुसार घर में ही कर सकते हैं। अगर इसमें समस्या आती हो तो इनमें से जिस तेल की आवश्यकता हो, उसे बाजार से भी खरीद कर प्रयोग में लाया जा सकता है। यह तेल बाजार में इन्हीं नामों से उपलब्ध हो जाते हैं।
* * *
|
- जीवन का आधार हैं तेल
- तेल प्राप्त करने की विधियां
- सम्पीड़न विधि
- आसवन विधि
- साधारण विधि
- तेलों के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारियां
- नारियल का तेल
- अखरोष्ट का तेल
- राई का तेल
- करंज का तेल
- सत्यानाशी का तेल
- तिल का तेल
- दालचीनी का तेल
- मूंगफली का तेल
- अरण्डी का तेल
- यूकेलिप्टस का तेल
- चमेली का तेल
- हल्दी का तेल
- कालीमिर्च का तेल
- चंदन का तेल
- नीम का तेल
- कपूर का तेल
- लौंग का तेल
- महुआ का तेल
- सुदाब का तेल
- जायफल का तेल
- अलसी का तेल
- सूरजमुखी का तेल
- बहेड़े का तेल
- मालकांगनी का तेल
- जैतून का तेल
- सरसों का तेल
- नींबू का तेल
- कपास का तेल
- इलायची का तेल
- रोशा घास (लेमन ग्रास) का तेल
- बादाम का तेल
- पीपरमिण्ट का तेल
- खस का तेल
- देवदारु का तेल
- तुवरक का तेल
- तारपीन का तेल
- पान का तेल
- शीतल चीनी का तेल
- केवड़े का तेल
- बिडंग का तेल
- नागकेशर का तेल
- सहजन का तेल
- काजू का तेल
- कलौंजी का तेल
- पोदीने का तेल
- निर्गुण्डी का तेल
- मुलैठी का तेल
- अगर का तेल
- बाकुची का तेल
- चिरौंजी का तेल
- कुसुम्भ का तेल
- गोरखमुण्डी का तेल
- अंगार तेल
- चंदनादि तेल
- प्रसारिणी तेल
- मरिचादि तेल
- भृंगराज तेल
- महाभृंगराज तेल
- नारायण तेल
- शतावरी तेल
- षडबिन्दु तेल
- लाक्षादि तेल
- विषगर्भ तेल