21Vi Shati Mein Hindi Sahitya stithi evam sambhavn - Hindi book by - Ranjana Chavana - 21वीं सदी में हिन्दी साहित्य स्थिति एवं संभावनाएं - रंजना चावड़ा
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21वीं सदी में हिन्दी साहित्य स्थिति एवं संभावनाएं

रंजना चावड़ा

प्रकाशक : राज पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :246
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9419
आईएसबीएन :9799381005316

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘इक्कीसवीं सदी में हिंदी साहित्य : स्थिति एवं संभावनाएँ’ विषय पर सूक्ष्मताओं के साथ विमर्श हो अपेक्षा है। भूतकालीन एवं वर्तमानकालीन साहित्य को देखकर भविष्य का हिंदी साहित्य कौन सी करवट ले सकता है इसको पकड़ने की हमारी कोशिश है। बाजारीकरण, औद्योगिकरण से मनु य एक-दूसरे के बहुत नजदीक पहूँच चुका है। एक-दूसरे के विचारों से सभी प्रभावित हो रहे हैं और यह प्रभावित होना इंसान का चहूंमुखी है। केंद्र में है अर्थ-पैसा। पैसा अपने अंगुलियों पर आदमी को नचाने की कोशिश कर रहा है। झुग्गी झोपड़ियाँ टूटी, घर बने; गाँव टूटकर बिखर रहे हैं, नगर-शहर-महानगर बनते जा रहे हैं। रोज नवीन विकास यात्राएँ और उसके साथ नव-नवीन मुश्किलें। आदमी की कठिनाइयाँ साहित्य में उतरना लाजमी। हिंदी साहित्य का आदिकालीन युग राजाओं और राजकवियों का, मध्ययुग भकित श्रृंगार कवियों का, आधुनिक युग नवजागरण और परिवर्तन का और भविष्य ?

यह केवल हम क्यों, हमारे साथ आप भी सोचे इक्कीसवीं सदी में हिंदी साहित्य कौन सी दिशाओं की ओर जा खा है और संभावनाएँ कौन सी बन रही है ? इसका उत्तर देती यह पुस्तक।

यह केवल हम क्यों, हमारे साथ आप भी सोचे इक्कीसवी सदी में हिंदी साहित्य कौनसी दिशाओं की ओर जा रहा है और संभावनाएँ कौनसी बन रही है ? इसका उत्तर देती यह पुस्तक इस किताब में व्यक्त विचार समीक्षकों के अपने हैं इनसे संपादक और प्रकाशक की नीतियों व विचारों का सहमत होना आवश्यक नहीं है।

भूमिका

हम क्यों - आप भी सोचे

देखते-देखते इक्कीसवीं सदी के ग्यारह साल गुजर गए। परिस्थितियाँ बदल रही है; विश्व स्तर पर 2020 या उसके बाद के भारत की स्थितियों की तरफ देखने का नजरिया बदल रहा है। उभरती हुई एक बड़ी ताकत के नाते अमरिका जैसे विकसित देश भारत की तरफ स्पर्धात्मक दृष्टि से देख रहे हैं। परंतु हमारे मन में साषंकता है क्यों ? क्योंकि घर की मुर्गी दाल बराबर समझने की हमारी आदत है। पर थोड़ा सोचे, दिमाग पर जोर दें, तो दावे के साथ कह सकते हैं 2020 तक ना सही थोड़ा आगे जाकर भारत विश्व की बड़ी ताकत बनेगा इसमें कोई शक नहीं।

बड़ी ताकत, विश्व के साथ स्पर्धा, गिने-चुने लोगों में भारत का स्थान, अच्छा लगता है। चारों तरफ से भारत का परिवर्तन हो रहा है, खुशी है। यह परिवर्तन उद्योग और आर्थिक दृष्टियों से हो रहा है वैसे ही सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक स्थितियों में होगा और इसका असर साहित्यिक दृष्टियों से भी पड़ेगा। भारतीय व्यक्ति जैसे-जैसे बदल रहा है वैसे-वैसे उसकी भाषा भी बदल रही है। वह समय दूर नहीं जहाँ पर भारत की सारी भाषाएँ एक-दूसरे के साथ घुलमिलकर एक नया रूप धारण करेंगी। विविध कार्यों से एक आदमी कई गाँवों, शहरों और देशों में पहुंच रहा है। देश एवं भाषाओं की सीमाओं को लांघ रहा है। ऐसी स्थिति में साहित्य भी बदले आश्चर्य नहीं लगेगा। वर्तमान का वर्णन और भविष्य का संकेत साहित्य है। कुछ साल पहले साहित्य में पीड़ित-शोषित वर्ग का चित्रण नाममात्र रहा परंतु आज उसकी बाढ़ आ चुकी है। दबे-कुचले लोगों ने अपनी वाणी को धारदार बनाकर साहित्य जगत को खंगाल डाला पर इसके संकेत तो 1920-30 से मिल रहे थे। मनुष्य की कल्पनाएँ साहित्य में उतरती है और साहित्य का आधार लेकर विज्ञान विकसित होता है। ‘पुष्पक याने’ का जिक्र रामायण में आया आधुनिक युग में हवाई जहाज बने। भारत का आरंभिक साहित्य रामायण, महाभारत से युद्ध से संबंधित कई ताकतों का जिक्र है, जिनको काल्पनिक मानकर मजाक किया जा सकता है पर आप अणुशक्तियों से जोड़कर उसे देखे तो कल्पना काफुर हो जाती है।

‘इक्कीसवीं सदी में हिंदी साहित्य : स्थिति एवं संभावनाएँ’ विषय पर इन्हीं सूक्ष्मताओं के साथ विमर्श हो अपेक्षा है। भूतकालीन एवं वर्तमानकालीन साहित्य को देखकर भविष्य का हिंदी साहित्य कौनसी करवट ले सकता है इसको पकड़ने की हमारी कोशिश है। बाजारीकरण, औद्योगिकरण से मनुष्य एक-दूसरे के बहुत नजदीक पहुँच चुका है। एक-दूसरे के विचारों से सभी प्रभावित हो रहे हैं और यह प्रभावित होना इंसान का चहूंमुखी है। केंद्र में है अर्थ-पैसा। पैसा अपने अंगुलियों पर आदमी को नचाने की कोशिश कर रहा है। झुग्गी झोपड़ियाँ टूटी, घर बने; गाँव टूटकर बिखर रहे हैं, नगर-शहर-महानगर बनते जा रहे हैं। रोज नवीन विकास यात्राएं और उसके साथ नव-नवीन मुश्किलें। आदमी की कठिनाइयाँ साहित्य में उतरना लाजमी। हिंदी साहित्य का आदिकालीन युग राजाओं और राजकवियों का, मध्ययुग भक्ति श्रृंगार कवियों का, आधुनिक युग नवजागरण और परिवर्तन का और भविष्य ?

यह केवल हम क्यों, हमारे साथ आप भी सोचे इक्कीसवीं सदी में हिंदी साहित्य कौनसी दिशाओं की ओर जा रहा है और संभावनाएँ कौनसी बन रही है ?

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