कविता संग्रह >> कानपुर के समकालीन कवि कानपुर के समकालीन कविविनोद त्रिपाठी
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
लवकुश बाँधकर अश्व, बिना सेना लड़े लंकाजेता बाप से भी हार नहीं मानी है। भूषणा की बानी ने, चढ़ाया ऐसा पानी यहीं चमकी भवानी भक्त, शिवा को भवानी है। पहले स्वतंत्रता समर में, सनेही यहीं नानाराव से मरी फिरंगियों की नानी है नाम सुनते ही हैं पकड़ते विपक्षी कान यह कानपुर है यहाँ का कड़ा पानी है।
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