हास्य-व्यंग्य >> अनुभव अनुभवमदन शर्मा
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पहले गुट ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा, ‘‘महोदय, विश्वास कीजिए, पार्टी के सच्चे और ईमानदार सेवक केवल हम हैं। वे लोग तो शहर के छंटे बदमाश है जो हमारी पार्टी को बदनाम करने के इरादे से हमारे बीच आ घुसे हैं। पार्टी की भलाई इसी में है कि इन्हें शीघ्र अति शीघ्र बाहर का रास्ता दिखाया जाए।
राज्याध्यक्ष ने सहानुभूति दर्शाते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं। मेरा अपना मत भी यही है कि वे लोग छंटे हुए बदमाश हैं। मगर... आप अभी धैर्य बनाये रखिए। आगामी चुनाव सम्पन्न हो जाने के बाद मैं उन लोगों को बिलकुल दुरुस्त कर दूँगा।’’
दूसरे गुट के साथ राज्याध्यक्ष की जो वार्ता हुई उसमें भी लगभग वही शब्द दोहराये गए, जो पहली वार्ता में कहे गए थे...
समस्या थी, कि इस वर्ष का साहित्य-शिरोमणि पुरस्कार किसे प्रदान किया जाए। निर्णायक मंडल के तीन सदस्य थे। ए.बी.सी इनमें से कोई भी दो, एक मत हो जाते तो कठिनाई न थी। किंतु वे तो तीनों अपनी बात पर अड़े थे और क्रमशः एक्स.वाई.ज़ेड के पक्ष में अपनी ठोस दलीलें प्रस्तुत किए जा रहे थे।
मौका पाकर ‘ए’ ने ‘सी’ के साथ जा संपर्क किया और खूब मीठी-मीठी बातें कीं और यह भी जानना चाहा कि आखिर क्यों वह - ‘ज़ेड’ को पुरस्कार दिलाने पर बज़िद है।
‘सी’ ने बिना लाग-लपेट के ही कारण उग़ल दिया। कहा, ‘‘दरअसल, ‘ज़ेड’ के पास मेरा एक निजी काम अटका पड़ा है। जब मैं उसके लिए कुछ करूँगा तभी तो वह मेरा काम करेगा।’’...
- इसी पुस्तक से
राज्याध्यक्ष ने सहानुभूति दर्शाते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं। मेरा अपना मत भी यही है कि वे लोग छंटे हुए बदमाश हैं। मगर... आप अभी धैर्य बनाये रखिए। आगामी चुनाव सम्पन्न हो जाने के बाद मैं उन लोगों को बिलकुल दुरुस्त कर दूँगा।’’
दूसरे गुट के साथ राज्याध्यक्ष की जो वार्ता हुई उसमें भी लगभग वही शब्द दोहराये गए, जो पहली वार्ता में कहे गए थे...
समस्या थी, कि इस वर्ष का साहित्य-शिरोमणि पुरस्कार किसे प्रदान किया जाए। निर्णायक मंडल के तीन सदस्य थे। ए.बी.सी इनमें से कोई भी दो, एक मत हो जाते तो कठिनाई न थी। किंतु वे तो तीनों अपनी बात पर अड़े थे और क्रमशः एक्स.वाई.ज़ेड के पक्ष में अपनी ठोस दलीलें प्रस्तुत किए जा रहे थे।
मौका पाकर ‘ए’ ने ‘सी’ के साथ जा संपर्क किया और खूब मीठी-मीठी बातें कीं और यह भी जानना चाहा कि आखिर क्यों वह - ‘ज़ेड’ को पुरस्कार दिलाने पर बज़िद है।
‘सी’ ने बिना लाग-लपेट के ही कारण उग़ल दिया। कहा, ‘‘दरअसल, ‘ज़ेड’ के पास मेरा एक निजी काम अटका पड़ा है। जब मैं उसके लिए कुछ करूँगा तभी तो वह मेरा काम करेगा।’’...
- इसी पुस्तक से
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