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नारी विमर्श >> बेटियाँ जिनपर हमें गर्व है

बेटियाँ जिनपर हमें गर्व है

जयवीर सिंह यादव

प्रकाशक : निरुपमा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9474
आईएसबीएन :9789381050361

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

...दो शब्द

इतिहास साक्षी है कि बेटियों ने हर युग में अपने माता-पिता, परिवार का ही नहीं अपितु पूरे देश का गौरव बढ़ाया है। अतः यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आज भी ऐसी अनेक बेटियाँ हैं जिन पर हमें गर्व है-सरोजनी नाइडू, इंदिरा गाँधी, झाँसी की रानी, पन्ना धाय, सती सावित्री, अनुसुइया जैसी बेटियों ने भारतवर्ष का मान संपूर्ण विश्व में बढ़ाया है।

प्रस्तुत पुस्तक ऐसी ही बेटियों की अनूठी प्रेरणादायक जीवन गाथा का अद्भुत संग्रह है, जिन पर हमे हमेशा गर्व रहा है। परंतु आज कुछ स्वार्थी लोगों ने अपने निज स्वार्थ वश कन्या भ्रूण हत्या जैसे कुकृत्य को बढ़ावा देकर बेटियों को जन्म से पूर्व ही मौत के आगोश में उतार देते हैं। शायद वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि जिन बेटियों की वे जाने-अनजाने में हत्या कर रहे हैं, उन्हीं बेटियों ने हमेशा इतिहास बनाया है। समाज में रिश्तों का महत्व इन्हीं बेटियों ने समझाया है। जरा सोचो ! यदि ये बेटियाँ न होंगी तो रिश्तों को समझ पाना कितना मुश्किल हो जाएगा। अतः आज आवश्यक हो गया है कि बेटियों को संरक्षित किया जाएगा। ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध सख्त कानूनों का प्रावधान हो जो जन्म से पूर्व बेटियों की हत्या कर देते हैं।

...तो आइए, हम और आप मिलकर संकल्प ले कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे।

शकुंतला

शकुंतला के जन्म का, करता हूँ मैं ब्यान।
विश्वामित्र पिता थे, मात मेनका जान।
मात मेनका जान, जन्म दे त्याग कर दिया।
शकुंत चिड़ियों ने नदी, में छाया छत्र किया।
कहता कवि जयवीर, कण्व ऋषियों को शिशु मिला।
पति दुष्यंत बेटा भरत, पतिव्रता शकुंतला।


एक बार महाराजा दुष्यंत वन में शिकार करते हुए कण्व के आश्रम पहुँच गए। वहाँ उन्होंने शकुंतला को देखा तो वे उसके अपूर्व सौंदर्य पर मुग्ध हो गए।

शकुंतला ने अतिथि का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘यह कुछ कंद तथा फल हैं, आप इन्हें स्वीकार करें। मेरे पिता महर्षि कण्व आश्रम पर नहीं हैं। वे सोम तीर्थ गए हैं।’’

दुष्यंत ने आतिथ्य-ग्रहण के पश्चात् पूछा, ‘‘तुम मुनि-कन्या नहीं जान पड़ती हो’’ शकुंतला ने कहा कि, ‘‘मैं महर्षि विश्वामित्र की पुत्री हूँ। मेरी माता मेनका ने उत्पन्न होते ही मेरा त्याग कर दिया था। नदी किनारे वन में शकुंत पक्षी मेरे ऊपर छाया किए मुझे घेरे हुए थे। महर्षि कण्व ने मुझे देखा और दयावश उठा लाए। उन पक्षियों के कारण ही मेरा नामकरण हुआ। महर्षि ने बड़े स्नेह से मेरा पालन-पोषण किया।’’

‘‘तुम राजर्षि के कुल में उत्पन्न हो। मेरा मन तुम्हें देखकर आकर्षित हो गया है। मुझे स्वीकार कर मेरे ऊपर कृपा करो और महारानी बनो।’’ दुष्यंत ने मधुर स्वर में अनुनय की।

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