लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> अपराजेय निराला

अपराजेय निराला

आशीष पाण्डेय

प्रकाशक : रोली प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9486
आईएसबीएन :9789384478124

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

124 पाठक हैं

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

निराला की पंक्तियों में महाभारत के दसवें दिन का वही बिम्ब प्रखर हो रहा है, जब महामहिम भीष्म नौ दिन पाण्डव सेना का संहार करने के बाद रणभूमि की ओर बढ़ रहे हों। भीष्म को भी पता था कि आज युद्ध में क्या होने वाला है, क्योंकि उसके सूत्रधार वही थे। उन्हें पता था कि आज महाकाल के शर इस देह को बेधेंगे, इसके बावजूद वह योद्धा प्रचण्ड तेज के साथ युद्धभूमि की ओर प्रयाण करता है। भीष्म भी मरण का वरण करने आ रहे हैं, मृत्यु को मुक्ति के रूप में सहज भाव से ग्रहण करने जा रहे हैं। मृत्यु उनके लिए जीवन का एक सहज भाग बनकर आ रही है। वही भाव निराला का है। जीवन उनका, रथ उनका, जो भला मृत्यु या प्रलय या महाकाल उस पर कैसे आरूढ़ हो सकते हैं ? रथ तो निराला ही चलाएंगे, भले उसका पथ मृत्युगामी हो। प्रसाद के रथ पर प्रलय चढ़ चुका है, वह हावी हो चुका है पर निराला का रथ निराला का ही हैं, जैसे भीष्म की मृत्यु भीष्म ने ही स्वयं वरण की, अर्जुन के तीर, युधिष्ठिर के भल्ल, ‘भीम का गदा या कृष्ण की नीति ने नहीं। मृत्यु भीष्म के लिए भी मुक्ति थी और निराला के लिए भी।

- इसी पुस्तक से

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai