गीता प्रेस, गोरखपुर >> मेरे तो गिरधर गोपाल मेरे तो गिरधर गोपालस्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत है मेरे तो गिरधर गोपाल...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भगवत्प्रेम को मोक्ष से भी ऊँचा माना गया है। उसे प्राप्त करने का मुख्य
उपाय सन्तोंने बताया है—भगवान् को अपना मानना। मीराबाई ने इसी
उपाय को अपनाया था। ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न
कोई’—यही मीराबाई की एकमात्र साधना थी।
प्रस्तुत पुस्तक में परमश्रद्धेय श्रीस्वामीजी महाराज के ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ आदि पन्द्रह लेखों का अनूठा संग्रह है। भगवत्प्रेमी साधकों के लिये ये लेख बहुत उपयोगी एवं सुगमतापूर्वक परमात्मप्राप्ति कराने में विशेष सहायक हैं। पाठकों से नम्र निवेदन है कि वे इस पुस्तक को ध्यानपूर्वक पढ़ें, समझें और लाभ उठायें।
प्रस्तुत पुस्तक में परमश्रद्धेय श्रीस्वामीजी महाराज के ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ आदि पन्द्रह लेखों का अनूठा संग्रह है। भगवत्प्रेमी साधकों के लिये ये लेख बहुत उपयोगी एवं सुगमतापूर्वक परमात्मप्राप्ति कराने में विशेष सहायक हैं। पाठकों से नम्र निवेदन है कि वे इस पुस्तक को ध्यानपूर्वक पढ़ें, समझें और लाभ उठायें।
-प्रकाशक
।।श्रीहरिः।।
1. मेरे तो गिरधर गोपाल
मानवशरीर भगवान् की कृपा से मिला है और केवल भगवान् की प्राप्ति के लिये
मिला है। इसलिये सब काम छोड़कर भगवान् में लग जाना चाहिये। जिनकी उम्र
छोटी है, उनको भी सच्चे हृदयसे भगवान् में लगना है संसार का सब काम कर
देना है, पर अपना असली ध्येय, लक्ष्य, उद्देश्य केवल परमात्मा की प्राप्ति
ही रखना है।
वास्तव में सत्ता एक परमात्मा की ही है। संसार की तरफ आप ध्यान दें तो यह सब मिटनेवाला है और निरन्तर मिट रहा है। आप अपनी तरफ देखें कि जब आप अपनी माँके पेट से पैदा हुए, उस समय शरीर की कैसी अवस्था थी और आज कैसी अवस्था है संसार निरन्तर बदलने वाला है और परमात्मा निरन्तर रहनेवाले हैं। संसार रहनेवाला है ही नहीं और परमात्मा बदलनेवाले हैं ही नहीं। वे परमात्मा हमारे हैं और हम परमात्मा के हैं।—इसमें दृढ़ता होनी चाहिये। जैसे छोटा बालक कहता है कि माँ मेरी है। उससे कोई पूछे कि माँ तेरी क्यों है, तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है। उसके मन में यह शंका ही पैदा नहीं होती कि माँ मेरी क्यों है ? माँ मेरी है, बस, इसमें उसको कोई सन्देह नहीं होता। इसी तरह आप भी सन्देह मत करो और यह बात दृढ़ता से मान लो कि भगवान् मेरे हैं। भगवान् के सिवाय और कोई मेरा नहीं है; क्योंकि वह सब छूटनेवाला है। जिनके प्रति आप बहुत सावधान रहते हैं, वे रुपये, जमीन, मकान, आदि सब छूट जायँगे।
उनकी यादतक नहीं रहेगी। अगर याद रहने की रीति हो तो बतायें कि इस जन्म से पहले आप कहाँ थे ? आपके माँ-बाप, स्त्री-पुत्र कौन थे ? आपका घर कौन-सा था ? जैसे पहले जन्म की याद नहीं है, ऐसे ही इस जन्म की भी याद नहीं रहेगी। जिसकी यादतक नहीं रहेगी, उसके लिये आप अकारण परेशान हो रहे हो ! यह सबके अनुभव की बात है कि हमारा कोई नहीं है। सब मिले हैं और बिछुड़ जायँगे। इसलिये ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’—ऐसा मानकर मस्त हो जाओ। संसारका काम बिगड़ रहा है तो बिगड़ने दो। वह तो बिगड़ने वाला ही है। सुधर जाय तो भी बिगड़ेगा। उसकी चिन्ता मत करो। आरम्भ में थोड़ा-सा बिगड़ेगा, परन्तु पीछे बहुत बढ़िया हो जायगा। दुनिया सब-की-सब चली जाय तो परवाह नहीं है। मैं और भगवान्—इन दोके सिवाय और कोई नहीं है। मैं केवल भगवान् का हूँ और केवल भगवान् मेरे हैं—इसके सिवाय और किसी बातकी तरफ देखो ही मत, विचार ही मत करो।
एक परमात्मा ही सब जगह परिपूर्ण हैं। उनके सिवाय और कोई है नहीं, कोई हुआ नहीं, कोई होगा, कोई हो सकता नहीं। वे परमात्मा ही मेरे हैं—ऐसा मानकर मस्त हो जाओ, प्रसन्न हो जाओ। हम अच्छे हैं कि मन्दे हैं, इसकी फिक्र मत करो। जैसे भरतजी महाराज चित्रकूट जाते हुए माँ कैकेयीकी तरफ देखते हैं तो उनके पैर पीछे पड़ते हैं, और अपनी तरफ देखते हैं तो खड़े रहते हैं, पर जब रघुनाथजी महाराजकी तरफ देखते हैं तो दौड़ पड़ते हैं—
वास्तव में सत्ता एक परमात्मा की ही है। संसार की तरफ आप ध्यान दें तो यह सब मिटनेवाला है और निरन्तर मिट रहा है। आप अपनी तरफ देखें कि जब आप अपनी माँके पेट से पैदा हुए, उस समय शरीर की कैसी अवस्था थी और आज कैसी अवस्था है संसार निरन्तर बदलने वाला है और परमात्मा निरन्तर रहनेवाले हैं। संसार रहनेवाला है ही नहीं और परमात्मा बदलनेवाले हैं ही नहीं। वे परमात्मा हमारे हैं और हम परमात्मा के हैं।—इसमें दृढ़ता होनी चाहिये। जैसे छोटा बालक कहता है कि माँ मेरी है। उससे कोई पूछे कि माँ तेरी क्यों है, तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है। उसके मन में यह शंका ही पैदा नहीं होती कि माँ मेरी क्यों है ? माँ मेरी है, बस, इसमें उसको कोई सन्देह नहीं होता। इसी तरह आप भी सन्देह मत करो और यह बात दृढ़ता से मान लो कि भगवान् मेरे हैं। भगवान् के सिवाय और कोई मेरा नहीं है; क्योंकि वह सब छूटनेवाला है। जिनके प्रति आप बहुत सावधान रहते हैं, वे रुपये, जमीन, मकान, आदि सब छूट जायँगे।
उनकी यादतक नहीं रहेगी। अगर याद रहने की रीति हो तो बतायें कि इस जन्म से पहले आप कहाँ थे ? आपके माँ-बाप, स्त्री-पुत्र कौन थे ? आपका घर कौन-सा था ? जैसे पहले जन्म की याद नहीं है, ऐसे ही इस जन्म की भी याद नहीं रहेगी। जिसकी यादतक नहीं रहेगी, उसके लिये आप अकारण परेशान हो रहे हो ! यह सबके अनुभव की बात है कि हमारा कोई नहीं है। सब मिले हैं और बिछुड़ जायँगे। इसलिये ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’—ऐसा मानकर मस्त हो जाओ। संसारका काम बिगड़ रहा है तो बिगड़ने दो। वह तो बिगड़ने वाला ही है। सुधर जाय तो भी बिगड़ेगा। उसकी चिन्ता मत करो। आरम्भ में थोड़ा-सा बिगड़ेगा, परन्तु पीछे बहुत बढ़िया हो जायगा। दुनिया सब-की-सब चली जाय तो परवाह नहीं है। मैं और भगवान्—इन दोके सिवाय और कोई नहीं है। मैं केवल भगवान् का हूँ और केवल भगवान् मेरे हैं—इसके सिवाय और किसी बातकी तरफ देखो ही मत, विचार ही मत करो।
एक परमात्मा ही सब जगह परिपूर्ण हैं। उनके सिवाय और कोई है नहीं, कोई हुआ नहीं, कोई होगा, कोई हो सकता नहीं। वे परमात्मा ही मेरे हैं—ऐसा मानकर मस्त हो जाओ, प्रसन्न हो जाओ। हम अच्छे हैं कि मन्दे हैं, इसकी फिक्र मत करो। जैसे भरतजी महाराज चित्रकूट जाते हुए माँ कैकेयीकी तरफ देखते हैं तो उनके पैर पीछे पड़ते हैं, और अपनी तरफ देखते हैं तो खड़े रहते हैं, पर जब रघुनाथजी महाराजकी तरफ देखते हैं तो दौड़ पड़ते हैं—
जब समुझत रघुनाथ सुभाऊ। तब पथ परत उताइल पाऊ।।
(मानस, अयोध्या. 234 । 3)
ऐसे ही आप अपनी करनी की तरफ मत देखो, अपने पापोंकी तरफ मत देखो, केवल
भगवान् की तरफ देखो जैसे विदुरानी भगवान् को छिलका देती हैं तो भगवान्
छिलका ही खाते हैं। छिलका खाने में भगवान् को जो आनन्द आता है, वैसा आनन्द
गिरी खाने में नहीं आता। कारण कि विदुरानी के मन में यह भाव है कि भगवान्
मेरे हैं। जैसे बच्चे को भूखा देखकर माँ जिस भाव से उसको खिलाती है, उससे
भी विशेष भाव विदुरानी में है। ऐसे ही आप भगवान् को अपना मान लो।
जीने-मरने आदि किसी की भी परवाह मत करो। किसी से डरो मत। किसी की भी गर्ज
करने की जरूरत नहीं। बस, एक ही विचार रखो कि ‘मेरे तो गिरधर
गोपाल,
दूसरो न कोई’। अगर यह विचार कर लोगे तो निहाल हो जाओगे। परन्तु
बहुत
धन कमा लो, बहुत सैर-शौकीनी कर लो, बहुत मान-बड़ाई प्राप्त कर लो तो यह सब
कुछ काम नहीं आयेगा—
सपना-सा हो जावसी, सुत कुटुम्ब धन धाम,
हो सचेत बलदेव नींदसे, जप ईश्वरका नाम।
मनुष्य तन फिर फिर नहिं होई,
किया शुभ कर्म नहीं कोई,
उम्र सब गफलत में खोई।
हो सचेत बलदेव नींदसे, जप ईश्वरका नाम।
मनुष्य तन फिर फिर नहिं होई,
किया शुभ कर्म नहीं कोई,
उम्र सब गफलत में खोई।
अब आज से भगवान् के होकर रहो। कोई क्या कर रहा है, भगवान् जानें। हमें
मतलब नहीं है। सब संसार नाराज हो जाय तो परवाह नहीं, पर भगवान् मेरे
हैं—इस बातको छोड़ो मत। मीराबाई को जँच गयी कि अब मैं भगवान् से
दूर
होकर नहीं रह सकती—‘मिल बिछुड़न मत कीजै’
तो उनका
डेढ़-दो मन का थैला शरीर भी नहीं मिला, भगवान में समा गया ! एक ठाकुरजी
सिवाय किसी से कोई मतलब नहीं है।
अंतहुँ तोहिं तजैंगे पामर ! तू न तजै अबही ते।
(विनय. 198)
अन्त में तुझे सब छोड़ देंगे, कोई तुम्हारा नहीं रहेगा तो फिर पहले से ही
छोड़ दे।
साधु विचार कर भली समझ्या, दिवी जगत को पूठ।
पीछे देखी बिगड़ती, पहले बैठा रूठ।।
पीछे देखी बिगड़ती, पहले बैठा रूठ।।
पीछे तो सब बिगड़ेगी ही, फिर अपना काम बिगाड़कर बात बिगड़े तो क्या लाभ ?
अपने तो अभी-अभी भगवान् के हो जाओ। तुम तुम्हारे, हम हमारे। हमारा कोई
नहीं, हम किसी के नहीं, केवल भगवान् हमारे हैं, हम भगवान् के हैं। भगवान्
के चरणों की शरण होकर मस्त हो जाओ। कौन राजी है, कौन नाराज; कौन मेरा है,
कौन पराया, इसकी परवाह मत करो। वे निन्दा करें या प्रशंसा करें; तिरस्कार
करें या सत्कार करें, उनकी मरजी। हमें निन्दा-प्रशंसा, तिरस्कार-सत्कार से
कोई मतलब नहीं। सब राजी हो जायँ तो हमें क्या मतलब और सब नाराज हो जायँ तो
हमें क्या मतलब ?
केवल एक भगवान् मेरे हैं—इससे बढ़कर न यज्ञ है, न तप है, न दान है, न तीर्थ है, न विद्या है, न कोई बढ़िया बात है। इसलिये भगवान् को अपना मानते हुए हरदम प्रसन्न रहो। न जीनेकी इच्छा हो, न मरने की इच्छा हो। न जाने की इच्छा हो, न रहने की इच्छा हो। एक भगवान् से मतलब हो।,/div>
केवल एक भगवान् मेरे हैं—इससे बढ़कर न यज्ञ है, न तप है, न दान है, न तीर्थ है, न विद्या है, न कोई बढ़िया बात है। इसलिये भगवान् को अपना मानते हुए हरदम प्रसन्न रहो। न जीनेकी इच्छा हो, न मरने की इच्छा हो। न जाने की इच्छा हो, न रहने की इच्छा हो। एक भगवान् से मतलब हो।,/div>
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