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साधना
साधना
प्रकाशक :
राजपाल एंड सन्स |
प्रकाशित वर्ष : 2014 |
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 9661
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आईएसबीएन :9788170287681 |
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9 पाठकों को प्रिय
180 पाठक हैं
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
रवीन्द्रनाथ टैगोर एशिया के पहले भारतीय व्यक्ति थे, जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्यधर्मी तथा चितेरा होने के अतिरिक्त वे एक महान दार्शनिक तथा चिंतक भी थे। प्रस्तुत पुस्तक उनके उन दार्शनिक वक्तव्यों का मूल्यवान संकलन है, जिनमें उनके साहित्यकार मन और कलाविद् को भी देखा जा सकता है।
गुरुदेव के ये वक्तव्य मनुष्य के विश्व से संबंध की भी व्याख्या करते हैं और उसके भीतर झांक कर उसका संबंध उसकी आत्मा, उसकी निजता से भी पहचान कर उजागर करते हैं।
इस पुस्तक में महान दार्शनिक ने व्यक्तित्व की सार्थकता जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों का बेहद सरल और बोधगम्य समाधान दिया है। एक कवि के दार्शनिक ने रूप को देख पाने का अनूठा रस इस पुस्तक में मिलता है।
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