नई पुस्तकें >> Gora Goraरबीन्द्रनाथ टैगोर
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
रवीन्द्रनाथ टैगोर का यह उपन्यास बीसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों के बंगाल पर केन्द्रित है और उस समय के समाज, रीजनीति और धर्म की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत करता है। जहाँ एक तरफ राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हो रही थी वहीं प्राचीन आध्यात्मिक मूल्यों का पुनरुत्थान हो रहा था। एक तरफ प्रगतिवादी राष्ट्रवादी थे जिनका सपना था कि देश की प्रगति में सभी का समावेश हो वहीं कट्टरपंथी सत्ता के पुराने ढाँचे को कायम रखना चाहते थे। इन दोनों पक्षों को उपन्यास के नायक गोरा और उसके दोस्त के माध्यम से बड़ी कुशलता से प्रस्तुत किया गया है। इन दोनों से जुड़े अलग-अलग पात्रों के माध्यम से और भी कई कहानियाँ, मुख्य कहानी के साथ, बुनी गई हैं और उनके ज़रिये उस समय के अनेक प्रासंगिक विषयों पर रोशनी डालने का प्रयास है जिसमें शामिल है समाज से औरतों का बहिष्कार, विभिन्न जातियों का आपसी टकराव-इन सब मुद्दों के भंवर से गुज़रते उपन्यास के पात्र स्वयं को ढूंढने का प्रयास करते हैं।
उपन्यास, कहानी, गीत, नृत्य-नाटिका, निबंध, यात्रा-वृत्तांत - सभी विधाओं को उन्होंने अपनी लेखनी से समृद्ध किया। 1913 में उन्हें उनकी कृति गीतांजलि के लिए साहित्य के नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। बहुआयामी व्यक्तित्व वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर साहित्यकार, चिन्तक और दार्शनिक तो थे ही, इसके अतिरिक्त वे उच्चकोटि के चित्रकार भी थे। इस पुस्तक के आवरण पर प्रयोग किया गया चित्र उन्हीं का बनाया हुआ है।
उपन्यास, कहानी, गीत, नृत्य-नाटिका, निबंध, यात्रा-वृत्तांत - सभी विधाओं को उन्होंने अपनी लेखनी से समृद्ध किया। 1913 में उन्हें उनकी कृति गीतांजलि के लिए साहित्य के नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। बहुआयामी व्यक्तित्व वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर साहित्यकार, चिन्तक और दार्शनिक तो थे ही, इसके अतिरिक्त वे उच्चकोटि के चित्रकार भी थे। इस पुस्तक के आवरण पर प्रयोग किया गया चित्र उन्हीं का बनाया हुआ है।
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