लोगों की राय
उपन्यास >>
पाहीघर
पाहीघर
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2024 |
पृष्ठ :334
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
|
पुस्तक क्रमांक : 9856
|
आईएसबीएन :9788171784011 |
 |
|
0
|
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पाहीघर अवध के एक गाँव, खासकर एक परिवार के इर्द-गिर्द बुनी गई कथा के साथ-साथ सन 1857 के उस तूफ़ान की इतिहास-कथा भी है जिसके थपेड़ो से अवध का मध्ययुगीन ढाँचा पूरी तरह चरमरा उठा। एक ओर इसमें तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था का विवरण है तो दूसरी ओर अंग्रेजों के भारत में पैर जमाने के पीछे के कारणों पर लेखक की वस्तुपरक दृष्टि और पैनी सोच की भी झलक है।
यह उपन्यास तत्कालीन समाज की विसंगतियों और अंतर्द्वद का भी दर्पण है, जिसके कारण कल और आज में कोई तात्विक फर्क नहीं दिखता। सांप्रदायिक और जातीय तनाव पैदा कर राजनीति करने वाले तब भी थे और आज भी है, बस फर्क यह है कि उनके मुखौटे बदल गए हैं। उस वक्त यह काम विदेशी करवाते थे और अब यही काम देशी चत्रित करा रहे हैं। वस्तुतः पाहीघर की कथा एक बहुआयामी अनुभव की धरोहर का दस्तावेज है, जो अपनी अंतर्धारा के व्यापक फैलाव के चलते किसी स्थान या काल विशेष की परिधि में बंधना अस्वीकार कर जाती है।
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai