कहानी संग्रह >> स्याही में सुर्खाब के पंख (अजिल्द) स्याही में सुर्खाब के पंख (अजिल्द)अल्पना मिश्र
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अल्पना मिश्र की कथा-क्षमता विवरण-बहुलता में वास्तविकता के और-और करीब जाने की कोशिश में दिखाई देती है, जिसमें वे एक कुशल शिल्पी की तरह सफल होती हैं। उनकी कहानियों में कहीं भी शाब्दिक चमत्कार से कथ्य अथवा दृष्टि के अभाव को पूरा करने की न मजबूरी दिखाई देती है, न चालू मुहावरे का कोई ऐसा दबाव कि वे जीवन-स्थितियों के सच से अपनी पकड़ को जरा भी ढीली करें।
नब्बे के दशक में सामने आए कथाकारों में उन्होंने अपनी एक विशिष्ट जगह बनाई है और लगातार चर्चा में रही हैं। अपने इर्द-गिर्द के संसार में पूरे भरोसे और स्पष्ट आलोचनात्मकता के साथ उतरकर गझिन और कथा-तत्व से भरपूर कहानियाँ बुनना उन्होंने जिस तरह सिद्ध किया है, वह भाषा को एक भरोसा देता है। इस संग्रह में शामिल ‘स्याही में सुर्खाब के पंख’, ‘कत्थई नीली धारियों वाली कमीज’, ‘चीन्हा-अनचीन्हा’, ‘सुनयना ! तेरे नैन बड़े बेचैन’, ‘राग-विराग’, ‘इन दिनों’ और ‘नीड़’ कहानियाँ यहाँ पुनः उनके सामर्थ्य की साक्षी के रूप में मौजूद हैं।
इन कहानियों को पढ़ते हुए पाठक को वापस यह विश्वास होगा कि बिना किसी आलंकारिकता के जीवन-यथार्थ को विश्वसनीय ढंग से पकडना आज के उथले समय में भी संभव है।
नब्बे के दशक में सामने आए कथाकारों में उन्होंने अपनी एक विशिष्ट जगह बनाई है और लगातार चर्चा में रही हैं। अपने इर्द-गिर्द के संसार में पूरे भरोसे और स्पष्ट आलोचनात्मकता के साथ उतरकर गझिन और कथा-तत्व से भरपूर कहानियाँ बुनना उन्होंने जिस तरह सिद्ध किया है, वह भाषा को एक भरोसा देता है। इस संग्रह में शामिल ‘स्याही में सुर्खाब के पंख’, ‘कत्थई नीली धारियों वाली कमीज’, ‘चीन्हा-अनचीन्हा’, ‘सुनयना ! तेरे नैन बड़े बेचैन’, ‘राग-विराग’, ‘इन दिनों’ और ‘नीड़’ कहानियाँ यहाँ पुनः उनके सामर्थ्य की साक्षी के रूप में मौजूद हैं।
इन कहानियों को पढ़ते हुए पाठक को वापस यह विश्वास होगा कि बिना किसी आलंकारिकता के जीवन-यथार्थ को विश्वसनीय ढंग से पकडना आज के उथले समय में भी संभव है।
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