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पिरामिड एवं मंदिर वास्तु

भोजराज द्विवेदी

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9940
आईएसबीएन :9788171826292

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पिरामिड क्याn है ? इसके रचनाकार कौन है ? ये क्यों बनाए गये ? पिरामिड से क्याप लाभ है ? इसकी गणितीय संरचना क्याा हैं ? इसमें त्रिकोणों का ज्या मितीयकरण रेखाशास्त्र का महत्वा क्या है ? क्याै इसका कोई ज्योनतिषीय महत्वत भी है ? क्या् ये ज्यो तिषीय वेधधालाएं हैं ? क्याै पिरामिड का भारतीय वास्तुजशास्त्री या फेंग शुई से कोई संबंध है। इनका ऐतिहासिक महत्वइ क्यां है ? एवं मानव के व्यधवहारिक जीवन में पिरामिड की उपयोगिता क्या है ? ऐसे बहुत से प्रश्नक है जो घुमड़-घुमड़ कर प्रत्येवक बु‍द्धिजीवी प्राणी के मन-मस्तिष्का को तीव्रता से प्रभावित कर रहे हैं। पर हैरानी की बात यह है कि इन सब पर समग्र रूप से कोई पुस्तधक नहीं है।

हिंदी में तो पिरामिड के बारे में कुछ भी नहीं लिखा गया। हिंदी जगत की यह पहली लेखनी है जिसमें विद्वान लेखक ने इस चुनौती को स्वीाकार कर, वास्तुद जगत व ज्योेतिष जगत को एक नई रोशनी प्रदान की है। पिरामिडों का सूक्ष्म अध्य्यन करने हेतु वे स्वायं मिस्र, इजिप्टह, गिजा, लक्सकर, सिंगापुर, हांगहांग अफ्रीका इत्यातदि अनेक राष्ट्रों में गये। पिरामिडों की नगरी में रहकर पिरामिडों की नगरी में रहकर पिरामिड पर गहन-अध्य,यन व शोध किया। फलस्वचरूप यह पुस्तडक आपके हाथ में है।

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