शब्द का अर्थ
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अड़ :
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स्त्री० [हिं० अड़ना] १. अड़ने की क्रिया या भाव। रुकना। २. जिद। हठ। मुहावरा—अड़ पकड़ना=जिद या हठ करना। ३. अड़ या रुककर बैठने की जगह। मुहावरा—(किसी की) अड़ पकड़ना=किसी के आश्रय का शरण में जाकर रहना। |
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अड़काना :
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स० १. दे० 'अड़ाना'। २. दे० ‘अटकाना'।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अड़खीसा :
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स्त्री० [ हिं० अड़=हठ+खीस ?] वैर। शत्रुता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अडंग :
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वि० दे० ‘अडिग’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अडंग-बडंग :
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वि० [अनु०] १. क्रम रहित और बेढंगा। अंड-बंड। २. अनावश्यक तथा अनुचित। व्यर्थ। |
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अड़गड़ा :
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पुं० [हिं० अड़ना+गड़ना ?] १. बैल-गाड़ियों आदि के ठहरने का स्थान। २. घोड़ों बैलों आदि की बिक्री का स्थान। |
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अड़ंगा :
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पुं० [सं० अ=नहीं+सं० टिक्=चलना या डग] १. किसी को चलने से रोकने या गिराने के लिए उसकी टाँगों में फँसायी जाने वाली अपनी टाँग। २. उक्त क्रिया करके प्रतिद्वन्द्वी को गिराने के लिए कुश्ती का एक दाँव या पेंच। ३. लाक्षणिक अर्थ में बाधा या रुकावट। मुहावरा—अड़ंगा डालना या लगाना=कार्य में अड़चन डालना। अड़ंगे पर चढ़ाना=चाल या दाँव से अपने अधिकार में करना। ४. छत, खपरैल आदि को गिरने से रोकने के लिए उसके नीचे लगाई जाने वाली लकड़ी। |
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अड़ंगेबाज :
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पुं० [हिं० अड़ंगा+फा० बाज] वह जो दूसरों के कामों में अड़ंगा लगाया करता हो। |
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अड़ंगेबाजी :
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स्त्री० [हिं० अड़ंगा+फा० बाजी] दूसरों के कार्यों में अड़ंगे लगाने की क्रिया या भाव। |
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अड़गोड़ा :
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पुं० [हिं० अड़=रोक√गोड़=पाँव] पशुओं आदि को भागने से रोकने के लिए उनके पैर या गले में बाँधी जानेवाली भारी लकड़ी। |
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अड़चन :
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स्त्री० [हिं० अड़ना+चलना, पुं० हिं० अड़चल] ऐसी छोटी मोटी कठिनाई या बाधा जो मार्ग में आकर विघ्न डालती हो। (हिन्डरेन्स) |
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अड़चल :
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स्त्री०=अड़चन। |
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अड़ंड :
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वि० [सं० अ-दंडञ] १. जिसे दंड न दिया जा सकता हो। २. जिसे दंड देना उचित न हो। ३. जिसे दंड का भय न हो। फलतः निर्भीक या स्वच्छन्द। |
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अड़ड़ पोपो :
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पुं० [अनु०] १. सामुद्रिक विद्या का ज्ञाता। सामुद्रिक शास्त्री०। २. पाखण्डी। आडंबरी। ३. बकवादी। |
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अड़तल :
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स्त्री० [हिं० आड़+तल (प्रत्यय)] १. आड़। ओट। २. बहाना। ३. शरण। मुहावरा—(किसी को) अड़तल पकडना=किसी की शरण में जाकर रहना। ४. दे० अड़चन। स्त्री०=अड़ (हठ)। |
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अड़तालिस :
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वि० दे० अड़तालीस। |
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अड़तालिसवाँ :
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वि० [हिं० अड़तालीस] सैतालीसवें के उपरान्त पड़ने वाला या होने वाला। |
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अड़तालीस :
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वि० [सं० अष्टचत्वारिशत्, पा० अटृच-तालीसें, अटृतालीस] जो गिनती में चालीस और आठ हो। पुं० उक्त का सूचक अंक या संख्या।-४८ |
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अड़तीस :
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वि० [हिं० अष्टत्रिशंत० प्रा० अट्ठातीस] जो गिनती में तीस और आठ हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या।-३८ |
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अड़तीसवाँ :
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वि० [हिं० अड़तीस] क्रम या संख्या में जिसका स्थान ३८. वाले अंक पर पड़े। |
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अड़दार :
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वि० [हिं० अड़+फा० दार (प्रत्यय)] १. बीच में चलते चलते रुक जाने वाला। अड़ियल। जैसे—अड़दार घोड़ा। २. हठी। ३. अभिमानी। घमंडी। |
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अड़न :
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स्त्री० [हिं० अड़ना] १. अड़ने की क्रिया या भाव। २. जिद। हठ। ३.खड़े होने बैठने आदि की स्थिति। ठवन। मुद्रा। |
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अड़ना :
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अ० [सं० अलं=वारण करना या हिं० हठ ?] १. चलते-चलते किसी कारण से बीच में रुक जाना और आगे न बढ़ना। २. बीच में पड़कर रुकना या फँसना। ३. किसी बात के लिए जिद या हठ करना। |
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अड़पना :
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स०=डपटना (डाँटना)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अड़पायल :
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वि० [?] बलवान। बलिष्ठ। (डिं०)। |
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अड़बंग :
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वि० [हिं० अड़+सं० वक्र] १. उल्टा-सीधा या टेड़ा-मेड़ा। २. विचित्र। विलक्षण। ३. कठिन। विकट |
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अड़बंगा :
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पुं० [हिं० अड़बंग] बाधा। विघ्न। वि० =अड़बंग। |
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अड़व :
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पुं०=ओड़व (संगीत) |
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अड़सठ :
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वि० [सं० अष्टशषष्टि, प्रा० अटृषट्ठि] जो गिनती में साठ और आठ हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या।-६८ |
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अड़सठवाँ :
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वि० [हिं० अड़सठ] जो क्रम में सड़सठवें के उपरान्त हो। |
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अड़हुल :
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पुं० [सं० ओण+पुल्ल, हिं० ओणहुल्ल] एक प्रकार का छोटा वृक्ष जिसमें लाल फूल लगते हैं। देवी पुष्प। जवा कुसुम। |
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अड़ा :
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पुं० [हिं० अड़ा] ठहरने, बैठने या रुकने का स्थान। उदाहरण—निचिंत बैठे तेहि अड़ा।—जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अड़ा-अड़ी :
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स्त्री० [हिं० अड़ना] आपस में एक दूसरों से बढ़ने का प्रयत्न। होड़। |
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अड़ाड़ :
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पुं०=अराड़। |
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अड़ान :
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पुं० [सं० अडृ=समाधान] १. अड़ने की अवस्था या भाव। २. अड़ने, ठहरने या रुकने का स्थान। पड़ाव। |
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अड़ाना :
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स० [हिं० आड़] १. बीच में कोई चीज इस प्रकार फँसाना या लगाना कि किसी की गति या मार्ग रुक जाय। फँसाने या रोकने के लिए बीच में कुछ लगाना। २. बाधा या विघ्न उपस्थित करना। ३. उलझाना। ४. गिरती हुई चीज रोकने के लिए उसके नीचे टेक लगाना। पुं० वह लकड़ी जो गिरती हुई छत या दीवार आदि को गिराने से बचाने के लिए उसके नीचे लगाई जाती है। चाँड। टेक। पुं० [?] सम्पूर्ण जाति का एक राग जो आधी रात के समय गाया जाता है। |
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अड़ानी :
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स्त्री० [हिं० अड़ाना=अटकाना] १. वह चीज जो किसी क्रिया को रोकने के लिए उसके मार्ग में रखी या लगाई जाए। २. लकड़ी की वह गुल्ली जो खिड़कियों, दरवाजों आदि को बन्द होने से रोकने के लिए चौखट और पल्ले के बीच में लगाई जाती है। ३. कुश्ती का अडंगा नामक दाँव या पेच। |
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अड़ायता :
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वि० [हिं० अड़ाना या आड़] १. आड़ या ओट करनेवाला। २. शरण देनेवाला रक्षक। |
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अड़ार :
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वि० [सं० अराल] तिरछा। टेढ़ा। पुं० [सं० अट्ठाल=बुर्ज, ऊँचा स्थान] १. समूह। ढेर। २. बिक्री के लिए रखा हुआ ईधन का ढेर। ३.लकड़ी या ईधन की दुकान। |
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अड़ारना :
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स०=डालना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अड़ाल :
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पुं० [सं० ] एक प्रकार का नाच, जिसे मयूर नृत्य भी कहते हैं। |
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अड़ियल :
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वि० [हिं० अड़ना=रुकना] १. चलते समय बीच-बीच में रह-रह कर अड़ने या रुकनेवाला। जैसे—अड़ियल घोड़ा। पद—अड़ियल टट्टू=ऐसा व्यक्ति जो काम करते समय बीच-बीच में रुक जाए और बिना प्रेरणा के आगे न बढ़े। २. निकम्मा और सुस्त। वि० (हिं० अड़=हठ) दुराग्रही। हठी। |
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अड़िया :
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स्त्री० [हिं० अड़ना या आड़] १. साधुओं में टेककर बैठने का लकड़ी का चौखट। आधारी। २. वह बरतन जिसमें गारा चूना आदि ढोकर राज-मजदूरों या मिस्तरियों तक पहुँचाया जाता है। अढ़िया। ३. वह रस्सी जिसमें जहाज का लंगर बँधा रहता है। |
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अड़िल्ल :
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पुं०=अरिल्ल। |
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अड़ी :
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स्त्री० [हिं० अड़ या अड़ना] १. ऐसी स्थिति जिसमें आगे बढ़ना कठिन हो। पद—अड़ी-घड़ी=कठिन, चिन्ताजनक या संकट की स्थिति। २. बाधा। रुकावट। ३. जिद। हठ। |
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अड़ी-खंभ :
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वि० [हिं० अड़ी+खंभ] बलवान्। (डिं०) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अड़ोस-पड़ोस :
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पुं० [सं० पार्श्व=पड़ोस] आस पास के घर, स्थान आदि। |
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