शब्द का अर्थ
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अनंग :
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वि० [सं० न-अंग, न० ब०] जिसका अंग या शरीर न हो। अशरीरी। देह-रहित। पुं० १. कामदेव। २. आकाश। ३. मन। वि० अनंग। |
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समानार्थी शब्द-
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अनंग-क्रीड़ा :
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स्त्री० [सं० न० त०] १. काम-क्रीड़ा। रति। २. छंद शास्त्र में, मुक्तक नामक विषय वृत्त के दो भेदों में से एक। |
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अनंग-शत्रु :
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पुं० [ष० त०] कामदेव के शत्रु, शिव। |
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अनंग-शेखर :
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पुं० [ब० स०] दंडक नामक वर्ण-वृत्त का एक भेद जिसमें ३२ वर्ण होते हैं। |
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अनंगद :
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वि० [सं० अनंग√दा (देना) +क] काम-वासना उत्पन्न करनेवाला। |
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अनंगना :
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अ० [सं० अनंग=शरीर रहित] शरीर की सुधि छोड़ना। सुध-बुध भूलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अनंगवती :
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स्त्री० [सं० अनंग√मतुप् ,वत्व, डीष्] काम-वासना से युक्त स्त्री०। कामवती। कामिनी। |
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अनंगारि :
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पुं० [सं० अनंग-अरि, ष० त०] कामदेव के शत्रु, शिव। |
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अनंगी (गिन्) :
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वि० [सं० अनंग√इनि] [स्त्री० अनंगिनी] बिना अंग, देह, शरीर का। अंग-रहित। पुं० १. ईश्वर। २. कामदेव। ३. कामुक व्यक्ति। उदाहरण—सूरदास यह विरद स्रवन सुनि, गरजत अधम अनंगी।—सूर। |
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अनंगीकरण :
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पुं० [सं० न०-अंगीकरण, न० त०] [भू० कृ० अनंगीकृत] १. अंग-रहित या अनंगी करने की क्रिया या भाव। २. अंगीकार न करने की क्रिया या भाव। ३. उत्तरदायित्व न लेते हुए अग्राह्वा करना। (रिप्यूडिएशन) |
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अनंगुरि :
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वि० =अनंगुलि। |
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अनंगुलि :
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वि० [सं० न-अंगुलि, न० ब०] जिसे उँगलियाँ न हों। |
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