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अब  : अव्य-[सं० अद्य, अथ, प्रा० अदो, इब्ता, इन्जा, वि० अद्, भोज० और मार०अबर, मग० अबरी, इबरी] १. प्रस्तुत या वर्तमान क्षण में। इस समय। जैसे—(क) अब तैयार हो जाओ। (ख) अब ऐसा नहीं हो सकता। मुहावरा—अब-तब करना=कोई काम करने के संबंध में यह कहते चलना कि अब कर दिया जायेगा। टाट-मटोल करना। जैसे—अब-तक वह करते-करते महीनों से टाल रहा है पर रुपये नहीं देता। ऐसा जान पड़ता है कि यह अब मर जायेगा या थोड़ी देर से अधिक न बचेगा। २. इस अवसर पर या इस स्थिति में। जैसे—अब यह काम पूरा हुआ है। पद—अबका=वर्तमान काल का। आज-कल का। आधुनिक। जैसे—अबके लड़के किसी की बात नहीं सुनते। अब की या अब के=(क) इस बार। जैसे—अब की (या अबके) तुम्हें दिल्ली जाना पड़ेगा। (ख) आगे चलकर। भविष्य में। जैसे—अबकी (या अबके) फसल अच्छी होगी। अब जाकर-इतने दिनों या समय के बाद। अब। जैसे—अब जाकर वह ठीक रास्ते पर आया। अब से-आगे से। भविष्य में। जैसे—अब से कभी ऐसा मत करना। ३. किसी निर्दिष्ट या विशिष्ट समय में। जैसे—अब युद्ध पूर्णयता बंद हो चुका था। ४. इस समय के उपरांत। फिर कभी या भविष्य में। जैसे—अब ऐसा न करूँगा। ५. निर्दिष्ट तथ्यों या बातों का ध्यान रखते हुए। जैसे—मुझे जो कुछ कहना था वह कह दिया, अब आप निर्णय कर सकते है।
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अबका  : पुं० [सं० अबका=सेवार] एक प्रकार का पौधा जिसकी छाल या रेशों से रस्सियाँ बनती हैं।
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अबखरा  : पुं० [अब्खरः] भाप। वाष्प। पुं० दे० ‘आबखोरा’।
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अबखोरा  : पुं० =आबखोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अबगत  : स्त्री० =अवगति। वि० १. अविगत। २. अवगत। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबझ  : वि० [हिं० अ+बूझना] १. जिसे जाना, बूझा या समझा न जा सके। अज्ञेय। २. जिसे बुद्धि या बोध न हो। अबोध। ना-समझ। उदाहरण—अजहुँ न बूझ अबूझ।—तुलसी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबट  : वि० [?] १. अभेद्य। २. अगम। उदाहरण—मन जेथ निमाण निलजी नारी, अकबर गाहक बट अबट।—पृथीराज।
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अबटन  : पुं०=उबटन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अबड़-घबड़  : वि० [अनु] १. बेजोड़ या बेमेल। असंगत। २. भद्दा। भोड़ा। ३. जल्दी समझ में न आनेवाला।
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अबतर  : वि० [अ० अब्तर] १. गिरने, बिगड़ने आदि के कारण जिसकी दशा बुरी हो गयी हो। खराब। निकृष्ट। २. जिसका क्रम या व्यवस्था बिगड़ गई हो। अस्त-व्यस्त। जैसे—दफ्तर की हालत बहुत अबतर हो गयी है। ३. चौपट। विनष्ट। जैसे—यह बाजी तो अबतर हो गई।
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अबतरी  : स्त्री० [अ० अब्तरी] १. अवसर होने की अवस्था या भाव। २. अधःपतन। अवनति। ३. अव्यवस्था। गड़बड़ी।
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अबद्ध  : वि० [सं० न० त०] १. जो बँधा न हो अथवा बाँधा न गया हो। बंधन-रहित। २. जिसका क्रम या व्यवस्था ठीक न हो। ३. मन माना आचरण करनेवाला। निरंकुश। ४. दे० ‘असबद्ध’।
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अबद्ध-मुख  : वि० [ब० स०] बिना सोचे-समझे बकनेवाला। बढ़-बुढ़िया।
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अबद्ध-मूल  : वि० [ब० स०] जिसका मूल या जड़ मजबूत न हो।
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अबंध  : वि० [सं० न० ब०] १. जो बँधा न हो। बंधन-रहित। खुला हुआ। २. जो किसी के अधिकार या शासन में न हो। स्वच्छंद। ३. मनमाना आचरण करनेवाला। निरकुंश।
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अबध  : वि० [सं० अबाध्य] १. जो बँधा न हो। अबद्ध। २. जो रोका न जा सके। अबाध्य। ३. स्वतंत्र रूप से चलनेवाला। उदाहरण—भरे भाग अनुराग लोग करै काम अबध चितवनि चितई है।—तुलसी।
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अबंधु  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसका कोई बंधु या इष्ट-मित्र न हो। २. अकेला।
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अबधू  : वि० [सं० अबोध, पुं० हिं० अबोधु] अज्ञानी। मूर्ख। पुं०=अवधूत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबधूत  : पुं०=अबधूत।
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अबंध्य  : वि० [सं० न० त०] [स्त्री० अबंध्या] १. जो बाँधा न जा सके अथवा जो बँधने योग्य न हो। २. निश्चित रूप से फल देनेवाला। अव्यर्थ।
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अबध्य  : वि० [सं० न० त०] [स्त्री० अबध्या, भाव अबध्यता] १. जिसका वध या हत्या न की जा सकती हो। जो मारा न जा सके। २. जिसका वध करना या मार डालना अनुचित हो। जैसे—शास्त्रों में बालक, ब्राह्मण, स्त्रियाँ आदि अबध्य कही गई है।
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अबर  : वि० [अ० अबल] [भाव० अबराई] १. निर्बल। शक्ति-हीन। २. दुर्बल। कमजोर। वि० -अपर (दूसरा)। क्रि० वि० इस बार। पुं० [फा० अब्र] बादल। मेघ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबरक  : पुं० [सं० अभ्रक] पत्तरों या वरकों के रूप में पाई जानेवाली एक प्रसिद्ध चमकीली, भुरभुरी सफेद धातु। भोडल। (माइका)
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अबरख  : पुं०=अबरक।
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अबरखी  : वि० [हिं० अबरक] १. अबरख के रंग का। २. अबरख का बना हुआ। स्त्री० अबरक का वह चूर्ण जो चित्रकार चित्रों पर चांदी का रंग दिखाने के लिए छिड़कते हैं।
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अबरन  : वि० [सं० अ+वर्ण] १. जिसका कोई वर्ण या रूप न हो। वर्ण-रहित। २. जो आस-पास के रंगों से भिन्न रंग या प्रकार का हो। पुं० १. दे० आभरण। २. दे० ‘आवरण’। वि० [सं० अवर्ण्य] जिसका वर्णन न हो सके।
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अबरबान  : वि० [सं० अपर+हिं० बानि] १. आवारा। २. मूर्ख।
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अबरस  : पुं० [फा०] १. घोड़े का एक रंग जो सब्ज से कुछ खुलता हुआ और अधिक सफेद रंग का होता है। २. इस रंग का घोड़ा।
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अबरा  : वि०=अबर। वि० [हिं० अ+बराना-बचाना] १. जो बचाया न जा सके। २. जिसे बचा या छोड़ न सके।—अडुर। पुं० [फा०] १. ओढ़ने या उदाहरण—हारे अबरे का एतबार। पहनने के दोहरे कपड़ों में, ऊपर का कपड़ा या पल्ला। उपल्ला। २. विकट समस्या। उलझन।
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अबरी  : वि० [फा० अब्र=बादल मि० सं० अभ्र] १. जिसमें बादल की तरह कई रंगों की धारियाँ हों। स्त्री० १. एक प्रकार का कागज जिस पर उक्त प्रकार की धारियाँ होती हैं। २. कपड़ों की एक प्रकार की रँगाई जिसमें उक्त ढंग की धारियाँ होती है। ३. पीले रंग का एक पत्थर जो पच्चीकारी के काम आता है। स्त्री० [सं० अ+वारि] जलाशय का किनारा। क्रि० वि० [हिं० अब] इस बार। अब की दफा। उदाहरण—अबरी क कहलिया मोर एतना कर लीहिन।—लोकगीत।
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अबरू  : स्त्री० [फा० अब्रू मि० सं० भ्रू] भौंह।
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अबर्त  : पुं०=आवर्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबर्न्य  : वि० [सं० अ+वर्ण्य] जिसका वर्णन न हो सके। अवर्णनीय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबल  : वि० [सं० न० ब०] [स्त्री० अबला] १. जिसमें बल न हो। अशक्त। बलहीन। २. कमजोर। दुर्बल। ३. नपुंसक। पुंस्त्वहीन। स्त्री० [सं० अवलि] पंक्ति। कतार। उदाहरण—अंतर नीलंबर अबल आभरण।—प्रिथीराज।
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अबलक  : वि० [अ० अब्लक] १. जिसमें दो रंग एक साथ दिखाई दें। जैसे—काला और लाल, या लाल और सफेद। २. कई रंगों से युक्त। चितकबरा। पुं० ऐसा घोड़ा जिसके शरीर का कुछ अंश काला और सफेद हो। वि० [सं० अवलक्ष] अद्भुत। विलक्षण। जैसे—वाही कन्हैया जाके अबलक बाल।—गीत।
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अबलका  : स्त्री० [हिं० अबलक] मैना की तरह की एक काले रंग की चिड़िया जिसकी छाती सफेद रंग की होती है।
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अबलख  : वि०=अबलक।
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अबलखा  : स्त्री० दे० ‘अबलका’ (पक्षी)।
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अबला  : वि० स्त्री० [सं० अवल+टाप्] [भाव० अबलात्व] जिसमें कुछ भी बल या शक्ति न हो। स्त्री० औरत। स्त्री। (जो अबला या अशक्त मानी जाती है)।
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अबल्य  : पुं० [सं० बल+यत्, न० त०] १. अबलता। कमजोरी। निर्बलता। २. अस्वस्थता।
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अबवाब  : पुं० [फा० बाब का बहु०] कुछ विशिष्ट प्रकार के कर जो किसानों आदि पर लगाये जाते है। (सेस)
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अबस  : वि० [अ०] निरर्थक। बे-फायदा। क्रि० वि० नाहक। व्यर्थ। वि० =अवश।
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अबा  : पुं० [अ०] एक प्रकार का मुसलमानी पहिनावा जो अंगे से कुछ अधिक लंबा होता है।
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अबाट  : पुं० [हिं० अ+वाट=मार्ग] कुपथ। कुमार्ग।
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अबाती  : वि० पुं० [सं० अ=नहीं+बात=वायु] १. जिसमें वायु का अभाव हो। २. जिसमें वायु का प्रवेश या संचार न हो सके। ३. जो वायु से काँप रहा हो। स्थिर। वि० [सं० अ+बाती-बत्ती] (दीपक) जिसमें बत्ती न हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबाद  : वि० [सं० अबाद] जो वाद शून्य हो। निर्विवाद। वि०=आबाद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अबादान  : वि० [अ० आबाद] [भाव० अबादानी] १. बसा हुआ। आबाद। (स्थान) २. भरा हुआ। पूर्ण। ३. समृद्ध। संपन्न।
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अबादानी  : स्त्री० [हिं० अबादान] अबाद (बसे भरे हुए या संपन्न) होने की अवस्था या भाव।
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अबाध  : वि० [सं० न-बाधा, न० ब०] १. जिसके लिए या जिसमें कोई बाधा, विघ्न या रोक-टोक न हो। बेरोक। निर्विघ्न। २. मनमाना। स्वच्छंद। ३. अपार। असीम० ४. पूर्ण। परम। (एब्सोल्यूट)
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अबाध-व्यापार  : पुं० [कर्म० स०] दे० ‘मुफ्त व्यापार’।
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अबाधा  : वि० दे० ‘अबाध’। स्त्री० [सं० न० त०] बाधा का अभाव।
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अबाधित  : वि० [सं० न० त०] १. जिसके करने में कोई बाधा अथवा रोक-टोक न हो। बाध-रहित। २. मनमाना। स्वच्छंद। निरंकुश।
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अबाध्य  : वि० [सं० न० त०] [भाव० अबाध्यता] १. जो रोका न जा सके। बे-रोक। २. जिसपर किसी का अधिकार या नियंत्रण न हो। ३. अनिवार्य।
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अबान  : वि० [अ=नहीं+हिं० बान-वाण] जिसेक हाथ में बाण (या अस्त्र-शस्त्र) न हो। निहत्था।
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अबाबील  : स्त्री० [फा०] काले रंग की एक प्रकार की चिड़िया।
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अबार  : स्त्री० [सं० अ=बुरा+बेला-हिं० बेर=समय] अधिक या बहुत देर। विलंब।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबाल  : वि० [सं० न० त०] १. जो बालक न हो। जवान। २. पूरा। पूर्ण। पुं० [देश०] चरखे की पखुँडियों में बाँधकर तानी जानेवाली रस्सी।
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अबाली  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का पक्षी। बेंगनकुटी।
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अबास  : पुं० दे० ‘आवास’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अबाँह  : वि० [हिं० अ+बाँह] १. जिसे बाँह या हाथ न हो। २. जिसका कोई सहारा, सहायक या रक्षक न हो। असहाय। उदाहरण—चाह अलबाल औ अबाँह के कलपतरू, कीरति-मयंक प्रेम सागर अपार है।—आनंदघन। ३. अकेला। (क्व०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबाह  : वि० [सं० अवध्य] १. जो मारा न जा सके। २. जिसे मारना उचित या संगत न हो।
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अबिचार  : पुं०=अविचार।
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अबिचारी  : वि०=अविचारी।
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अबिछीन  : वि०=अविच्छिन्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबिद्ध  : वि०=अविद्ध।
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अबिध  : वि० [सं० अ-नहीं+विध्=नियम] १. जो नियम या विधि से न हो। अव्यवस्थित। २. नियम-विरुद्ध। क्रि० वि० नियम या विधि का ठीक तरह से बिना पालन किए। अनियमित रूप से।
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अबिंधन  : पुं० [सं० अप्-इन्धन, ब० स०] १. बड़वानल। २. समुद्र।
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अबिनासी  : वि० -अविनाशी (अविनश्वर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबिरथा  : क्रि० वि० [सं० वृक्ष] =वृथा या व्यर्थ। (पुं० हिं०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबिरल  : वि०=अविरल।
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अबिहड़  : वि० [सं० अविरल] १. जो कटा या टूटा न हो। अखंड। साबूत। उदाहरण—अबिहड़ अजर-अमर पद गहौ।—गोरखनाथ। २. मिला या सटा हुआ। ३. जो परमात्मा में लीन हो चुका हो। (रहस्य-संप्रदाय)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अबीज  : वि० [सं० न० ब०] १. बीज-रहित। २. नपुंसक।
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अबीर  : पुं० [अ०] [वि० अबीरी] १. अबरक का चूरा जो कई रंगों का मुख्यतः गुलाबी रंग का होता है। बुक्का। २. अबरक या चूरा या रंगीन बुकनी जिसे लोग होली में इष्ट-मित्रों पर डालते है।
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अबीरी  : वि० [हिं० अबीर] अबीर के रंग का गुलाबी। कुछ काला पन लिए लाल। पुं० उक्त प्रकार का रंग।
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अबीह  : वि० [सं० अभय] निडर। निर्भय। उदाहरण—हाथल रा बल सूं हुवौ औ मृगराज अबीह।—बाँकीदास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबुझ  : वि०=अबूझ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबुद्ध  : वि० [सं० न० त०]=अबुध।
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अबुद्धि  : वि० [न० ब०] जिसे बुद्धि न हो। बुद्धि-हीन। मूर्ख। स्त्री० [सं० न० त०] बुद्धि का अभाव। नासमझी।
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अबुध  : वि० [सं० न० त०] १. जिसे बुद्धि या बोध न हो। मूर्ख। २. जिसे किसी बात का ज्ञान या परिचय न हो। अनभिज्ञ।
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अबुहाना  : अ०=अभुआना।
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अबूत  : वि० [हिं० अबुध] अबोध। अज्ञानी। क्रि० वि० व्यर्थ। वृथा। उदाहरण—नाम सुमिरि निर्भय भया जरू सब गया अबूत।—कबीर। वि०=अपूत (निस्संतान)।
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अबे  : अव्य० [सं० अयि] अरे। हे। (बहुत छोटे या हीन व्यक्ति के लिए तिरस्कारसूचक संबोधन) मुहावरा—अबे-तबे करना=निरादरसूचक बातें करना।
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अबेध  : वि० [सं० अविद्ध] जो बेधा न गया हो अथवा बेधा न जा सकता हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबेर  : स्त्री० [सं० अबेला] विलंब। देर। क्रि० वि० [हिं० अ+बेर-देर] बिना देर लगाए। जल्दी। शीघ्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबेस  : वि० [फा० वेश-अधिक] अधिक। बहुत। वि० [हिं० अ+फा०वेश] १. थोड़ा। कम। २. मंद। धीमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबै  : वि० [सं० अ+व्यय] जो या जिसमें से व्यय न हुआ हो। क्रि० वि० [हिं० अब] इसी समय। अभी। (ब्रज) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबैन  : वि० [हिं० अ+बैन=वचन] जो बोल न रहा हो। चुप। मौन। पुं० अनुचित या न कहने योग्य बात। अवाच्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबोध  : पुं० [सं० न० ब०] १. जिसे बोध या ज्ञान न हुआ हो। ना-समझ। मूर्ख। २. छोटी अवस्था के कारण जिसे सांसारिक बातों का ज्ञान न हुआ हो।
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अबोध्य  : वि० [सं० न० त०] [भाव० अबोध्यता] १. (रूप, विषय व्यक्ति आदि) जो बोध्य या समझ में आने के योग्य न हो। २. जिसे समझा न जा सके। (इन्कॉम्प्रिहेन्सिबुल्)
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अबोल  : वि० [हिं० अ+बोलना] १. चुप। मौन। २. जिसके विषय में कुछ बोल या कह न सकें। अनिर्वचनीय़। पुं० १. न बोलने या चुप रहने की अवस्था या भाव। चुप्पी। २. अनुचित या न कहने योग्य बात। ३. अनुचित वचन। गाली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अबोला  : वि० [हिं० अ+चोला] १. जो बोला या कहा न गया हो। २. न बोलनेवाला। पुं० किसी के खिन्न या दुःखी होने के कारण उससे न बोलना। रूठने का कारण होनेवाला मौन।
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अब्ज  : पुं० [सं० अप्√जन् (उत्पत्ति)+ड] १. जल से उत्पन्न वस्तु। २. कमल। ३. शंख। ४. चंद्रमा। ५. धन्यंतरि। ६. कपूर। ७. सौ करोड़ या एक अरब की संख्या।
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अब्ज-बांधव  : पुं० [ष० त०]=सूर्य।
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अब्ज-भव  : पुं० [ब० सं० ] ब्रह्मा।
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अब्ज-योनि  : पुं० [ब० स०] ब्रह्मा।
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अब्ज-वाहन  : पुं० [ब० स०] शिव।
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अब्ज-वाहना  : स्त्री० [ब० स०] लक्ष्मी।
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अब्ज-हस्त  : पुं० [ब० स०] सूर्य।
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अब्जज  : पुं० [सं० अब्ज√जन्-ड] १. ब्रह्मा। २. यात्रा के विचार से एक योग। (ज्यो०) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अब्जद  : पुं० [अ०] १. अरबी-फारसी आदि की वर्ण-माला जो पहले अलिफ, बे, जीम और दाल से आरंभ होती थी। २. किसी विषय का आरंभिक ज्ञान। ३. अरबी-फारसी आदि के साहित्य में वर्ण-माला के अक्षरों से कुछ निश्चित अंक या संख्याएँ सूचित करने की एक प्रणाली।
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अब्जा  : स्त्री० [सं० अब्ज+टाप्] लक्ष्मी।
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अब्जाद  : पुं० [सं० अब्ज√अद् (खाना)+अण्] हंस।
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अब्जासन  : पुं० [अब्ज-आसन, ब० स०] ब्रह्मा।
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अब्जिनी  : स्त्री० [सं० अब्ज+इनि-ङीष्] १. कमलवन। २. कमलों का समूह। ३. कमल का पौधा।
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अब्जिनी पति  : पुं० [ष० त०] सूर्य।
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अब्द  : पुं० [सं० √आप्(पाना)+दन्, ह्रस्व] वर्ष। साल। [अप√दा(देना)+क] १. बादल। मेघ। २. नागर-मोथा। ३. कपूर। ४. आकाश। पुं० [अ०] १. गुलाम। दास। जैसे—अब्दुल्ला-ईश्वर का दास। २. अनुचर। सेवक।
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अब्द-कोश  : पुं० दे० ‘वर्ष-बोध’।
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अब्द-वाहन  : पुं० [ब० स०] इंद्र।
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अब्द-सार  : पुं० [ष० त०] कपूर।
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अब्दुर्ग  : पुं० [सं० मध्य० स०] वह किला या गढ़ जो खाई या झील से घिरा हो।
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अब्धि  : पुं० [सं० अप्√धा (धारण)+कि] १. तालाब। सरोवर। २. झील। ३. समुद्र। ४. सात की संख्या।
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अब्धि-शयन  : पुं० [ब० स०] विष्णु।
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अब्धि-सार  : पुं० [ष० त०] रत्न।
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अब्धिज  : पुं० [सं० अब्धि√जन्(उत्पत्ति)+ड] १. समुद्र से उत्पन्न वस्तु। २. शंख। ३. चंद्रमा। ४. अश्विनीकुमार।
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अब्धिजा  : स्त्री० [सं० अब्धिज+टाप्] १. लक्ष्मी। २. वारुणी।
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अब्ध्यग्नि  : स्त्री० [सं० अब्धि-अग्नि, ष० त०] बड़वानल।
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अब्बर  : वि० [सं० अबल] जिसमें बल न हो। कमजोर या दुर्बल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अब्बा  : पुं० [फा०बाबा का अनु०] पिता या दादा का वाचक शब्द। (मुसलमान) पद—अब्बाजान=पिता या दादा के लिए आदर सूचक संबोधन।
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अब्बास  : पुं० [अ०] १. शेर। सिंह। २. एक प्रकार का पौधा जो दो-तीन फुट ऊँचा होता है। ३. उक्त पौधे के फूल। वि० रूखे स्वभाववाला।
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अब्बासी  : वि० [अ०] धुएँ की तरह का नीले काले रंग का। (स्मोक ब्ल्यू) पुं० धुएं की तरह का नीला काला रंग। (स्मोक ब्ल्यू) स्त्री० [अ०] एक प्रकार का बढ़िया कपास।
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अब्बू  : पुं०=आबू।
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अब्र  : पुं० [फा० मि० सं० अभ्र] बादल। मेघ।
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अब्रह्माण्य  : वि० [सं० ब्रह्मन्+यत्, न० त०] १. (कार्य) जो ब्राह्मणों के करने योग्य न हो। जैसे—चोरी हिंसा आदि। २. इतना अनुचित और निंदनीय कि शिष्ट समाज के लिए परम अनुपयुक्त हो। ३. ब्राह्मणों, वेदों आदि पर विश्वास या श्रद्धा रखनेवाला। पुं० चोरी, मिथ्या, भाषण, हिंसा आदि निंदनीय कर्म जो ब्राह्मणों (अर्थात् सभ्यों) के लिए अशोभन है।
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अब्राह्मण  : वि० [सं० न० त०] जो ब्राह्मण न हो। पुं० [न० त०] ब्राह्मण से भिन्न जाति का व्यक्ति।
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अब्राह्मण्य  : पुं० [सं० ब्राह्मण+ष्यञ० न० त०] ब्राह्मण के कर्त्तव्यों का उल्लंघन।
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