शब्द का अर्थ
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अमित :
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वि० [सं० न० त०] [स्त्री० अमिता] १. जिसका मित या परिणाम न हो। असीम। बेहद। २. बहुत अधिक। ३. जो किसी निश्चित सीमाओं में न रखा गया हो। (इनआरडिनेट) पुं० साहित्य में, एक अर्थालंकार जिसमें यह कहा जाता है कि साधन से ही साधक की सिद्धि का फल भोग लिया। जैसे—दूती संदेश लेकर नायक के पास गई और वहाँ वही उसका सुख भोग आई। |
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समानार्थी शब्द-
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अमिताई :
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स्त्री० [हिं० आमित] अमित होने की अवस्था या भाव। अमितता। वि० =अमित। उदाहरण—इमि रज्जे रणरंग, सूर नूर अंग अमिताई।—चंदवरदाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अमिताभ :
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वि० [सं० अमित-आभा, ब० स०] जिसमे अत्यधिक आभा हो। पुं० १. आठवें मन्वंतर के कुठ देवताओं के नाम। २. गौतम बुद्ध का वह संभोग-कार्य जिसे वे दूसरों के कल्याण के लिए बोधिसत्त्व के रूप में तब तक धारण करते हैं, जब तक उनका निर्वाण नहीं होता। |
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अमिताशन :
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वि० [सं० अमित-अशन, ब० स०] सब प्रकार की वस्तुओं को खानेवाला। सर्वभक्षी। पुं० अग्नि। |
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अमिति :
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स्त्री० [सं० न० त०] अमित होने की अवस्था या भाव। असीमता। |
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अमितौजा (जस्) :
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वि० [सं० अमित-ओजस्, ब० स०] १. असीम शक्तिवाला। २. सर्वशक्तिमान। |
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अमित्र :
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वि० [सं० न० त०] १. जो मित्र न हो। २. बैरी। शत्रु। वि० [न० ब०] जिसका कोई मित्र न हो। मित्र-हीन। पुं० मित्र न होने का भाव। |
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अमित्रखाद :
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पुं० [सं० अमित्र√खाद् (खाना)+अण्] इंद्र। |
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अमित्रघाती (तिन्) :
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वि० [सं० अमित्र√हन्(हिंसा)+णिनि] वैरी या शत्रु का नाश करनेवाला। |
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अमित्राक्षर :
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पुं० [सं० अमित्र-अक्षर, ब० स०] ऐसा छंद जिसमें मात्राओं की गणना पर विचार न होता हो। |
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अमित्री :
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वि० [सं० अमित्र्य] १. जो मित्रों जैसा न हो। जैसे—अमित्री व्यवहार। २. शत्रुतापूर्ण। ३. विरोधी। |
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