शब्द का अर्थ
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अष्टांग :
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पुं० [अष्ट-अंग, कर्म० स०] १. योग साधन के ये आठ भेद—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। २. वैद्यक में, चिकित्सा के ये आठ विभाग—शल्य, शालाक्य, कार्य-चिकित्सा, भूत विद्या, कौमार-भृत्य, अगद तंत्र, रसायन तंत्र और बाजीकरण। ३. शरीर के ये आठ अंग—जाँघ, पैर, हाथ, उर, सिर, वचन, दृष्टि और बुद्धि। ४. सूर्य को दिया जानेवाला वह अर्घ्य जिसमें जल, दूध, घी, शहद, दही, लाल चंदन, कनेर, और कुशा ये आठ पदार्थ होते हैं। वि० आठ अंगों या अवयवोंवाला। २. अठ-पहला। |
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अष्टांग-मार्ग :
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पुं० [कर्म० स०] महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित ये आठ मार्ग जो सब दुःखों का नाश करनेवाला कहे गये हैं—सम्यग्दृष्टि, सम्यक्संकल्प, सम्यग्वाक, सम्यक्कर्म, सम्यगाजीव, सम्यग्व्यायाम, सम्यक्समृति और सम्यक्समाधि। |
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अष्टांग-योग :
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पुं० |
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अष्टांगायुर्वेद :
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पुं० [अष्टांग-आयुर्वेद, कर्म० स०] दे० ‘अष्टांग’ २. । |
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अष्टांगी (गिन्) :
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वि० [सं० अष्टांग+इनि] आठ अंगोंवाला। |
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