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शब्द का अर्थ
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इतरेतर :
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अव्य० [इतर-इतर, द्व० स०] एक दूसरे के प्रति। आपस में। परस्पर। वि० आपस का। पारस्परिक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
इतरेतर-योग :
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पुं० [ष० त०] १. पारस्परिक संबंध। २. संस्कृत व्याकरण में, द्वंद समास का एक भेद जिसमें समस्त पद के दोनों पक्षों या पदों का अलग-अलग विचार होता है। ‘समाहार द्वंद’ का विपर्याय। |
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इतरेतराभाव :
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पुं० [इतरेतर-अभाव, ष० त०] न्याय में, वह स्थिति जब हर एक (वस्तु या व्यक्ति) के गुणों में दूसरे का अभाव होता है। अन्योन्याभाव। जैसे—गौ और घोड़े में इतरेतरा भाव है, क्योकिं इनमें से हर एक के गुण और धर्म दूसरे में नहीं हैं। |
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इतरेतराश्रय :
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पुं० [इतरेतर-आश्रय, ष० त०] न्याय में, वह स्थिति जब ऐसी दो बातें कही जाती हैं जो आपस में एक दूसरी पर आश्रित होती है और इसी लिए दोनों में से कोई ठीक तरह से सिद्ध नहीं हो सकती। (यह तर्क का एक दोष माना गया है)। |
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