शब्द का अर्थ
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ऋत :
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पुं० [सं०√ऋ (गति आदि)+क्त] १. उंछवृत्ति। २. मुक्ति। मोक्ष। ३. यज्ञ। ४. कर्मों का फल। ५. सत्य। ६. जल। पानी। वि० १. उज्जवल या दीप्त। २. पूजित। ३. ठीक और सच्चा। |
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ऋत-धामा (मन्) :
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वि० [ब० स०] सत्य में निवास करनेवाला। पुं० विष्णु। |
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ऋत-ध्वज :
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पुं० [ब० स०] शिव। |
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ऋत-व्रत :
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वि० [ब० स०] सत्य बोलना जिसका व्रत हो। सत्यवादी। पुं० सत्य बोलने का व्रत। |
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ऋतंभर :
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वि० [सं० ऋत√भृ (भरण करना)+खच्, मुम्] सत्य का धारण और पालन करनेवाला।। पुं० परमेश्वर। |
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ऋतंभरा :
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स्त्री० [सं० ऋतंभर+टाप्] सदा एकरस रहनेवाली सात्त्विक बुद्धि। |
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ऋतवादी (दिन्) :
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वि० [सं० ऋत√वद् (बोलना)+णिनि] =सत्यवादी। |
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ऋतव्य :
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वि० [सं० ऋतु+यत्] ऋतु-संबंधी। मौसमी। |
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ऋति :
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स्त्री० [सं०√ऋ(गति)+क्तिन्] १. गति। २. मार्ग। रास्ता। ३. कल्याण। मंगल। ४. अपवाद। निंदा। ५. स्पर्धा। |
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ऋतु :
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पुं० [सं०√ऋ+तु] १. प्राचीन भारत में, वैदिक कृत्य करने के लिए उपयुक्त और शुभ समय। २. गरमी, सरदी, वर्षा आदि के विचार से किसी देश या भूभाग की समय-समय पर बदलती रहनेवाली वातावरणिक स्थिति और उस स्थिति के अनुसार होनेवाला काल-विभाग। विशेष—प्राचीन भारत में, पहले तीन और फिर आगे चलकर पाँच, छः, बारह और चौबीस तक ऋतुएँ मानी जाती थीं। फिर बाद में दो-दो महीनों की छः ऋतुएँ स्थिर हुई थीं जो अब तक कुछ क्षेत्रों में मानी जाती है। यथा-वसंत, ग्रीष्म, बरसात और जाड़ा यही तीन ऋतुएं मानी जाती है। ३. किसी पेड़ या पौधे के फलने-फूलने के विचार से उसका उपयुक्त और निश्चित समय। जैसे—अब तो आम की ऋतु जाने को है। ४. रजोदर्शन के उपरांत का वह समय जिसमें स्त्रियाँ गर्भधारण के योग्य होती हैं। ५. स्त्रियों के मासिक धर्म या रजः स्राव के चार दिन। पद-ऋतुमती (देखें)। |
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ऋतु-कर :
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पुं० [ष० त०] शिव। |
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ऋतु-काल :
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पुं० [ष० त०] स्त्रियों में, रजोदर्शन के उपरांत १६ दिनों का वह समय जिसमें वे गर्भधारण के योग्य मानी गई हैं। |
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ऋतु-गमन :
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पुं० [स० त०] [वि० ऋतुगामी] ऋतुगामी स्त्री के साथ किया जानेवाला संभोग। |
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ऋतु-चर्या :
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स्त्री० [ष० त०] भिन्न-भिन्न वस्तुओं में उनके अनुसार और उपयुक्त आहार-विहार की व्यवस्था। |
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ऋतु-दान :
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पुं० [स० त०] १. ऋतु-काल बीतने पर संतान की इच्छा से किया जानेवाला संभोग। २. गर्भाधान। |
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ऋतु-नाथ :
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पुं० [ष० त०] वसंत। |
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ऋतु-पति :
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पुं० [ष० त०] वसंत। |
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ऋतु-प्राप्त :
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वि० [ब० त०] १. (स्त्री) जिसे रजो दर्शन हो चुका हो। २. (वृक्ष) जो फल देने के योग्य हो गया हो। |
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ऋतु-प्राप्ति :
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स्त्री० [ष० त०] स्त्री का रजोदर्शन। |
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ऋतु-फल :
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पुं० [ष० त०] विशिष्ट ऋतु में होनेवाले फल। जैसे—आम और खरबूजे जेठ-असाढ़ के ऋतु-फल हैं। |
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ऋतु-भाग :
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पुं० [कर्म० स०] किसी पदार्थ का छठा भाग या हिस्सा (ऋतुओं के छः विभागों के आधार पर)। |
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ऋतु-मुख :
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पुं० [ष० त०] किसी ऋतु के आरंभ होने का पहला दिन। |
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ऋतु-राज :
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पुं० [ष० त०] ऋतुओं में सब से अधिक आनंददायक ऋतु। बसंत-ऋतु। |
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ऋतु-विज्ञान :
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पुं० [ष० त०] वह विज्ञान, जिसमें वायुमंडल में होनेवाले परिवर्तनों के आधार पर आँधी, वर्षा आदि के संबंध में भविष्यवाणी की जाती है। |
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ऋतु-विपर्यय :
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पुं० [ष० त०] एक ऋतु में उसके अनुकूल बातें न होकर अन्य ऋतु की बातें या लक्षण दिखाई देना। जैसे—गरमी के दिनों में सरदी या सरदी के दिनों में गरमी पड़ना। |
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ऋतु-वेला :
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स्त्री० [ष० त०] रजोदर्शन अथवा उसके बाद १६ दिनों तक गर्भाधान के लिए उपयुक्त समय। |
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ऋतु-समय :
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पुं० [ष० त०] =ऋतु-वेला। |
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ऋतु-स्नाता :
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वि० [स० त०] (स्त्री) जो रजोदर्शन के चौथे दिन स्नान करके शुद्ध हुई हो। |
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ऋतु-स्नान :
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पुं० [स० त०] ऋतुमती स्त्रियों में, रज-स्राव की समाप्ति पर अर्थात् चौथे दिन किया जानेवाला स्नान। |
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ऋतुमती :
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स्त्री० [सं० ऋतु+मतुप्-ङीष्] १. स्त्री, जिसे मासिक धर्म हुआ हो। रजस्वला। २. वह स्त्री जिसके रजोदर्शन के उपरांत १६ दिन न बीतें हों और फलतः गर्भ-धारण के योग्य हो। |
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ऋतुवती :
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स्त्री०=ऋतुमती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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ऋत्विज् :
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पुं० [सं०√ऋतुयज् (देव-पूजन करना)+क्विन्] [स्त्री० आत्विर्वजी] वह जिसका यज्ञ-कार्य के लिए वरण किया जाय। इनकी संख्या १६ होती है, जिनमें अध्वर्य्यु उद्गाता ब्रह्मा आदि मुख्य हैं। |
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