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घट  : पुं० [सं०√घट् (शब्द करना+अच्] १. जल भरकर रखने का बड़ा बरतन विशेषतः मिट्टी का बरतन। कलश। घड़ा। पद-मंगल घट=मांगलिक अवसर पर जल से भरकर रखा जानेवाला कलश या घड़ा। २. देह। शरीर। ३. अन्तःकरण। मन। मुहावरा–घट में बसना या बैठना=(क) हृदय में स्थापित होना। मन में बसना। (ख) ध्यान पर चढ़ा रहना। ४. कुंभ राशि। ५. हाथी का कुंभ। ६. २॰ द्रोण की तौल। ७. किनारा। वि० [हिं० घटना] किसी की तुलना में कुछ घटा हुआ,कम थोड़ा या हलका। उदाहरण–को घट वे वृषभानुजा ये हलधर के बीर।–बिहारी।
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घट-कंचुकी  : स्त्री० [मध्य० स०] तांत्रिकों की एक रीति जिसमें पूजा करने वाली सब स्त्रियों की कंचुकियाँ या चोलियाँ एक घड़े में भर देते है, और तब जिस पुरुष के हाथ में जिस स्त्री की कंचुकी या चोली आ जाती है, वह उसी स्त्री के साथ संभोग करता है।
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घट-कर्कट  : पुं० [सं० ?] संगीत में एक प्रकार का ताल।
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घट-कर्पर  : पुं० [ष० त०] १. कालिदास के सम-कालीन कवि जिनकी गिनती विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में होती थी। २. घड़े आदि का टूटा हुआ अंश। ठीकरा।
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घट-कार  : पुं० [सं० घट√कृ (करना)+अण्, उप० स०] घट अर्थात् घड़े बनानेवाला कुम्हार।
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घट-घाट  : वि० [हि० घटना] किसी की अपेक्षा थोड़ा कम या हलका। घटकर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घट-दासी  : स्त्री० [सं०√घट्+णिच्-अन्-टाप्,घटा-दासी, कर्म० स०] १. नायक और नायिका को एक दूसरे के सन्देश पहुँचाने वाली दूती। २. कुटनी।
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घट-पल्लव  : पुं० [द्व० सं० घटपल्लव+अच् ?] वास्तु शास्त्र में, वह खंभा जिसका सिरा घड़े और पल्लव के आकार का बना हो।
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घट-बढ़  : स्त्री० [हिं० घटना+बढ़ना] १. घटने-बढ़ने अर्थात् कम या अधिक होने की अवस्था या भाव। कमी-बेशी। न्यूनाधिक्य। २. उतार-चढ़ाव। परिवर्तन। ३. नृत्य,संगीत आदि में आवश्यकतानुसार लट घटाने और बढ़ाने की क्रिया या भाव। वि० कभी अथवा कहीं कुछ कम और कभी अथवा कहीं कुछ अधिक।
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घट-बादन  : पुं० [ष० त०] संगीत में मिट्टी का घड़ा औंधा करके उसे तबले की तरह बजाने की क्रिया अथवा विद्या।
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घट-योनि  : पुं० [ब० स०] अगस्त्य मुनि।
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घट-राशि  : पुं० [मध्य० स०] एक द्रोण की नाप जो लगभग सोलह सेर की होती है।
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घट-संभव  : पुं० [ब० स०] अगस्त्य मुनि।
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घटक  : वि० [सं०√घट्+णिच्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० घटिका] १. कोई चीज घटित करने, बनाने या रचनेवाला (अंश या तत्त्व) २. कोई घटना या बात घटित या प्रस्तुत करनेवाला। (पदार्थ या व्यक्ति) ३. चतुर। चालाक। पुं० १. विवाह-संबंध स्थिर करानेवाला ब्राह्मण या कोई और व्यक्ति। बरेखिया। २. दलाल। ३. मध्यस्थ। ४. बीच में पड़कर काम पूरा करानेवाला चतुर व्यक्ति। ५. घड़ा। ६. बंगाल और मिथिला में एक प्रकार के ब्राह्मण जो सब गोत्रों और परिवारों का लेखा रखते और यह बतलाते हैं कि अमुक-अमुक पक्षों में विवाह संबंध हो सकता है या नहीं। ७. वह चीज या बात जो कोई दूसरी चीज या बात घटित करने या बनाने में मुख्य रूप से अथवा साधन की भाँति सहायक होती है। घटित करनेवाला अंश या तत्त्व। (फैक्टर)
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घटकना  : स०=टकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घटका  : पुं० [सं० घटक=शरीर अथवा अनु० घर्र-घर्र] मृत्यु होने से पहले की मनुष्य की वह स्थिति जिसमें उसका साँस घर-घर शब्द करता तथा रुक-रुक जाता है। घर्रा। क्रि० प्र०–लगना।
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घटज  : पुं० [सं० घट√जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स० ] अगस्त्य मुनि, जिनके संबंध में कहा जाता है कि ये घड़े से उत्पन्न हुए थे। वि० घट से उत्पन्न।
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घटती  : स्त्री० [हिं० घटना] १. घटने अथवा कम होने की क्रिया या भाव० घटाव। बढ़ती का विपर्याय। २. उच्च स्तर से निम्न स्तर पर आने की अवस्था या स्थिति। ३. मात्रा, मान, मूल्य आदि में घटने या कम होने की अवस्था या भाव। पद-घटती से=बट्टे से। (देखें बट्टा के अंतर्गत) ४. अवनति। ह्लास। मुहावरा–घटती का पहरा=अवनति या दुर्दशा के दिन। बुरा जमाना। ५. कमी। न्यूनता। वि० जिसमें कुछ घटी, कमी या न्यूनता हो। (डेफिशिट) (विशेष दे० ‘अववर्त्त’)।
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घटन  : पुं० [सं०√घट्+ल्युट-अन] [वि० घटनीय,घटित] 1, घटित होने अर्थात् गढ़े या बनाये जाने की क्रिया या भाव। २. कोई घटना उपस्थित होने या सामने आने की क्रिया या भाव।
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घटना  : स्त्री० [सं०√घट्+णिच्+युच्,अन,टाप्] १. ऐसी बात जो घटित हुई अर्थात् अस्तित्व में आई अथवा प्रत्यक्ष हुई हो। कार्य या क्रिया के रूप में सामने आनेवाली बात। २. कोई अप्रत्याशित या विलक्षण बात जो हो जाय। वाकया। ३. कोई ऐसी अनिष्टकारक बात जो नियम, विधि, व्यवहार आदि के विरूद्ध हो। अ० [सं० घटन] १. घटित होना। अस्तित्व में आना। उदाहरण–घटई तेज बल मुख छवि सोई। तुलसी। २. कार्य के रूप में किया जाना। संपन्न होना। उदाहरण–कार्य वचन-मन सपनेहुँ कबहुँक घटत न काज पराये।–तुलसी। ३. ठीक आना, उतरना या बैठना। ४. चरितार्थ होना। सिद्ध होना। स० १. बनाना। रचना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) २. पूरा या संपन्न करना। उदाहरण–सब विधि काज घटब मैं तोरे।–तुलसी। अ० [सं० घृष्ट, प्रा० घट्ट] १. उच्च स्तर से निम्न स्तर पर आना। जैसे–(क) नदी का पानी घटना। (ख) किसी का मान या प्रतिष्ठा घटना। २. मात्रा, मान, मूल्य आदि में कम ठहरना। कम पड़ना। जैसे–(क) खाने की सामग्री घटना। (ख) पुस्तक का दाम घटना। ३. पूरा न रह जाना। ४. रोगी का अंत समय में मृत्यु के समीप पहुँचना। प्राणवायु का कम होना। ५. मृत होना। मरना। जैसे–उनका चार बरस का लड़का परसों घट गया।
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घटना-क्रम  : पुं० [ष० त०] एक के बाद एक कुछ घटनाएँ होते रहने का क्रम या भाव। घटनाओं का सिलसिला।
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घटना-चक्र  : पुं० [ष० त०] एक के बाद एक अथवा एक के साथ एक करके होनेवाली अनेक प्रकार की घटनाओं का समूह। जैसे–घटना-चक्र ने भी महायुद्ध की संभावना उत्पन्न कर दी।
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घटना-स्थल  : पुं० [ष० त०] घटना घटित होने का स्थान। (प्लेस आँफ अकरेन्स)
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घटनाई  : स्त्री० दे० ‘घड़नई’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घटनावली  : स्त्री० [घटना-आवली, ष० त०] बहुत-सी घटनाओं का सिलसिला या समूह।
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घटवाई  : पुं० [हिं० घाट+वाई] घाट का कर लेनेवाला। अधिकारी स्त्री० वह कर जो घाट का अधिकारी यात्रियों आदि से घाट पर उतरने-चढ़ने के बदले वसूल करता है। स्त्री० [हिं० घटवाना] घटवाने अर्थात् कम कराने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक।
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घटवाना  : स० [हिं० घटना का प्रे०] घटाने या कम करने का काम कराना।
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घटवार  : पुं० [हिं० घाट+पाल या वाला] १. घाट का महसूल लेनेवाला। २. मल्लाह। केवट। ३. घाट का देवता। ४. दे० ‘घाटिया’।
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घटवारिया  : पुं०=घटवालिया।
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घटवाल  : पुं० घटवार।
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घटवालिया  : पुं० [हिं० घाट+वाला] १,.तीर्थ स्थानों में दान लेनेवाला पंडा। तीर्थ-पुरोहित। २. नदी आदि के घाट पर दान लेनेवाला ब्राह्मण। घाटिया।
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घटवाह  : पुं० [हिं० घाट+वाह(प्रत्यय)] घाट का ठेकेदार जो घाट पर महसूल लेता है।
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घटवाही  : स्त्री० दे० ‘घट्ट-कर’।
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घटहा  : पुं० [हिं० घाट+हा (प्रत्यय)] १. घाट का ठेकेदार। घटवाह। २. वह नाव जो घाट पर से सवारियाँ लेकर दूसरी जगह या उस पार ले जाती है। वि० [स्त्री० घटही] घाट पर का। घाटवाला।
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घटा  : स्त्री० [सं०√घट्+अङ्-टाप्] १. आकाश में उमडे़ या छाये हुए घने बादलों की राशि या समूह। मेघवाला। २. ढेर। राशि। ३. झुंड। समूह। ४. गोष्ठी। ५. एक प्रकार का ढोल।
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घटा-टोप  : पुं० [सं० घटा-आटोप,तृ० त०] १. घने बादलों की गहरी और चारों ओर छाई हुई घटा जिससे प्रायः बहुत अधेरा हो जाता है। २. चारों ओर से ढकने के लिए गाड़ी, पालकी आदि के ऊपर डाला जानेवाला ओहार। ३. चारों ओर से खूब घेरनेवाला दल या समूह। वि० चारों ओर से पूरी तरह से घिरा हुआ। उदाहरण–घटाटोप करि चहुँदिसि घेरी।–तुलसी।
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घटा-धूम  : स्त्री० [हिं० घटा+धूम] किसी काम या बात की अधिकता के कारण मचनेवाली धूम या हलचल। जैसे–सप्ताह के प्रारंभ में व्यापार कुछ ढीला था, बाद को घटा-धूम के कारण बाजार सँभल गया।
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घटाई  : स्त्री० [हिं० घटना+ई(प्रत्य०)] १. घटने या घटाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। २. घटे हुए अर्थात् हीन होने की अवस्था या भाव। हीनता। ३. अप्रतिष्ठा। बेइज्जती।
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घटाकाश  : पुं० [घट-आकाश, मध्य० स०] तर्क या न्याय में घड़े के अन्दर का अवकाश अर्थात् खाली स्थान।
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घटाग्र  : पुं० [घट-अग्र,ष० त०] वास्तु शास्त्र में खंभे के नौ विभागों में से आठवाँ विभाग।
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घटाना  : स० [हिं० घटना (प्रा०घट्ट] १. हिन्दी ‘घटना’ क्रिया का स० रूप। २. उच्च स्तर से निम्न स्तर पर लाना। जैसे–मान घटाना। ३. मात्रा, मान, मूल्य आदि में कमी करना। कम करना। कम करना। जैसे–दाम घटाना। ४. गणित में, किसी बड़ी राशि में से छोटी राशि निकालना। स० [हिं० घटना(सं० घटन)] १. घटित करना। २. किसी एक बात के तथ्य या तथ्यों का दूसरी बात पर पूरा उतारना या आरोपित करना।
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घटाव  : पुं० [हिं० घटना] १. घटने अर्थात् कम होने की अवस्था या भाव। कमी। २. मात्रा, मान, आदि घटने अर्थात् उतरने या कम होने की अवस्था या भाव। ‘चढ़ाव’ या ‘बढ़ाव’ का विपर्याय। उतार। ३. अवनति। पद-घटाव-चढ़ाव=कभी घटने और कभी बढ़ने की अवस्था, क्रिया या भाव। ४. दे० ‘घटती’।
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घटावना  : स०=घटाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घटि  : वि० [हिं० घटना] किसी की तुलना में घटिया या कम। क्रि० वि०=घटकर। स्त्री०=घटी(कमी)
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घटिक  : पुं० [सं० घट+ठन्-इक] वह व्यक्ति जो विशिष्ट समयों पर लोगों को जानकारी के लिए घंटे बजाता हो।
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घटिका  : स्त्री० [सं०√घट्+णिच्+ण्वुल्-अक, टाप्, इत्व] समय का मान बतलानेवाला कोई छोटा यंत्र। घड़ी। २. समय का एक मान जो आज-कल के २४ मिनटों के बराबर होता है। ३. [घट्+ङीपकन्-टाप्,ह्रस्व] छोटा घड़ा। गगरी।
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घटिका-यंत्र  : पुं० [ष० त०]=घटी यंत्र।
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घटिकावधान  : पुं० [घटिका-अवधान, ब० स०] घड़ी भर में ही बहुत से काम एक साथ कर डालने की कला, विद्या अथवा शक्ति।
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घटिकाशतक  : पुं० [ब० स०] १. वह व्यक्ति जो घड़ी भर में सौ अर्थात् बहुत से काम कर सकता हो। २. वह जो घड़ी भर में सौ श्लोक या पद्य बना सकता हो।
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घटित  : भू० कृ० [सं०√घट्+णिच्+क्त] १. जो घटना के रूप में उपस्थित या वर्तमान हुआ हो। २. अर्थ आदि के विचार से ठीक या पूरा उतरा हुआ। घटा हुआ। ३. जो गढ़कर अथवा और किसी रूप में बनाया गया हो अथवा किसी रूप में बना हो। निर्मित। रचित।
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घटिताई  : स्त्री० [हिं० घटित] घटित होने की अवस्था या भाव। स्त्री० [हिं० घटना=कम होना] १. कमी। न्यूनता। उदाहरण–इनहूँ में घटिताई कीन्हीं।–सूर। २. त्रुटि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घटिया  : वि० [हिं० घट+इया(प्र्तयय)] १. जो औरों की तुलना में घटकर अर्थात् खराब या हीन हो। २. जो गुण, धर्म आदि की दृष्टि से प्रसम या मानक स्तर से घटकर हो। जैसे–घटिया कपड़ा, घटिया पुस्तक। ‘बढ़िया’ का विपर्याय। ३. अधम। नीच।
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घटियारी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास जिसे खवी भी कहते हैं। इसमें अदरक की-सी महक होती है।
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घटिहा  : वि० [हिं० घात+हा (प्रत्यय)] १. घात या धोखे-बाजी करनेवाला। २. घात पाकर अपना स्वार्थ साधनेवाला। ३. चालाक। धूर्त। ४. दुष्ट और लंपट या व्यभिचारी। ५. नीच। वाहियात।
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घटी  : स्त्री० [सं० घट+अच्-ङीष्] १. २४ मिनट का समय। घड़ी। २. छोटा घड़ा। गगरी। ३. प्राचीन काल का वह छोटा घड़ा जिसमें जल भरकर और उसमें छेददार कटोरा रखकर उसमें भरनेवाले पानी के हिसाब से समय का मान स्थिर करते थे। ४. आज-कल समय बतलाने-वाला किसी प्रकार का यंत्र। घड़ी। ५. रहट में बाँधी जानेवाली छोटी गगरी या हँड़िया। पुं० [सं० घट+इनि=घटिन्] १. कुंभ राशि। २. शिव। स्त्री,. [हिं० घटना] १. घटने अर्थात् कम होने की क्रिया या भाव। कमी। न्यूनता। २. घाटा। टोटा। ३. क्षति। नुकसान। हानि। ४. मूल्य, महत्व आदि में होनेवाली कमी। विशेष दे० ‘छीज’।
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घटी-यंत्र  : पुं० [ष० त०] १. प्राचीन काल का समय सूचक यंत्र जो छोटे घड़े की तरह होता था और जिसमें भरे हुए जल में डूबनेवाले कटोरे की सहायता से समय का स्थिर करते थे। २. रहट। ३. संग्रहणी नामक रोग का एक प्रकार या भेद।
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घटूका  : पुं०=घटोत्कच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घटोत्कच  : पुं० [घट-उत्कच, ब० स०] हिंडिंबा के गर्भ से उत्पन्न भीम सेन का पुत्र जिसे महाभारत के युद्ध में कर्ण ने मारा था।
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घटोद्भव  : पुं० [घट-उद्बव, ब० स०] अगस्त्य मुनि।
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घटोर  : पुं० [सं० घटोदर] मेढ़ा। मेष। (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घट्ट  : पुं० [सं०√घट्ट (चलाना)+घञ्] १. घाट। २. वह स्थान जहाँ चुंगी या महसूल लिया जाता था। *पुं०=घट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घट्ट-कर  : पुं० [मध्य० स०] वह कर जो किसी घाट पर नदी पार करने वालों से लिया जाता है। (फेरी टोल)
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घट्टन  : पुं० [सं० घट्ट-ल्युट-अन] १. चलाना या हिलाना-डुलाना। २. घोटना। ३. संघटन।
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घट्टना  : स्त्री० [सं०√घट्ट+युच्-अन,टाप्] १. हिलाना-डुलाना। २. रगड़ना। ३. पेशा। वृत्ति।
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घट्टा  : पुं० १. दे० ‘घाटा’। २. दे० ‘घट्ठा’।
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घट्टित  : पुं० [सं०√घट्ट+क्त] नृत्य में पैर चलाने का एक प्रकार जिसमें एड़ी को जमीन पर दबाकर पंजा नीचे-ऊपर हिलाते हैं।
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घट्टी  : स्त्री०=घटिका।
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घट्ठ  : पुं० [सं० गोष्ठ] परामर्श आदि के लिए होनेवाला जमावड़ा। (राज०)
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घट्ठा  : पुं० [सं० घट्ट] चोट, रगड़ आदि के कारण शरीर के किसी अंग में होनेवाली कड़ी उभारदार गाँठ जैसे–बरतन माँजने से हाथ में या लाठी की चोट लगने से सिर पर घट्ठा पड़ गया। मुहावरा–(किसी काम या बात का) घट्ठा पड़ना=पूरा पूरा अनुभव और ज्ञान होना।
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