शब्द का अर्थ
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चंद :
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पुं० [सं०√चंद् (आह्रादित करना)+णिच्+अच्] १. चंद्रमा। २. कपूर। ३. पिंगल में रगण का दसवाँ भेद जिसमें दो लघु, एक दीर्घ और तब फिर दो लघु वर्ण होते हैं। (।।ऽ।।)। जैसे–पुतली घर। ४. लाहौर के रहनेवाले हिंदी के एक प्राचीन कवि जो दिल्ली के हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सभा में थे। उनका बनाया हुआ पृथ्वी राज रासो बहुत प्रसिद्ध महाकाव्य है। चंदवरदाई। वि० [फा०] १. गिनती में थोड़ा। कुछ। २. कई। जैसे–चंद आदमी आने को हैं। |
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चंद-घर :
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पुं० [सं० ष० त०] ध्रुपद राग का एक भेद। |
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चंदक :
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पुं०[सं०√चंद्+णिच्+ण्वुल्-अक] १.चंद्रमा। २. चाँदनी। ज्योत्स्ना। ३. चाँद या चाँदा नाम की छोटी मछली। ४. सिर पर पहना जानेवाला एक अर्द्धचंद्राकार गहना। ५. उक्त गहने के आकार की कोई रचना जो मालाओं आदि के नीचे शोभा के लिए लगाई जाती है। ६. एक प्रकार की मछली। |
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चंदक-पुष्प :
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पुं० [मध्य० स०] १. लौंग। लवंग। २. [ष० त० ] चंद्रकला। |
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चंदण :
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पुं० =चंदन। |
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चंदन :
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पुं० [सं०√चंद्+णिच्+ल्युट-अन] १. दक्षिण भारत में उगनेवाला एक प्रसिद्ध पेड़ जिसके हीर की लकड़ी बहुत सुगंधित होती है। गंधसार। मलयज। श्रीखंड। २. उक्त वृक्ष की लकडी। ३. उक्त लकड़ी को जल में घिस या रगड़कर बनाया हुआ गाढ़ा घोल या लेप जिसका टीका आदि लगाय़ा जाता है। मुहावरा–चंदन उतारना=पानी के साथ चंदन की लकड़ी को घिसना जिसमें उसका अंश पानी में घुल जाय। चंदन चढ़ाना-किसी चीज पर घिसे हुए चंदन का लेप करना। ४. गंध-प्रसारिणी लता। ५. छप्पय छंद के तेरहवें भेद का नाम। ६. एक प्रकार का बड़ा तोता जो उत्तरीय भारत, मध्य० भारत, हिमालय की तराई, काँगड़ा आदि में होता है। वि० १. बहुत ही शीतल और सुगंधित। २. उत्कृष्ट। उदाहरण–बंदन तेज त्यौं चंदन की रति।।-भूषण। |
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चंदन-गिरि :
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पुं० [ष० त०] मलय पर्वत। |
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चंदन-गोह :
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स्त्री० [हिं० चंदन+गोह] १. चंदन के पेड़ पर रहनेवाली एक प्रकार की गोह। २. छोटी गोह। |
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चंदन-धेनु :
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स्त्री० [मध्य० स०] चंदन से लेपी हुई वह गौ जो सौभाग्यवती स्वर्गीया माता के उद्देश्य से (वृषोत्सर्ग की तरह) खुली छोड़ दी जाती है। |
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चंदन-पुष्प :
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पुं० [ष० त०] १. चंदन का फूल। २. [ब० स०] लौंग। लवंग। |
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चंदन-यात्रा :
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स्त्री० [ब० स०] वैशाख सुदी तीज। अक्षय तृतीया। |
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चंदन-सार :
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पुं० [ष० त०] १. पानी के साथ घिसकर तैयार किया हुआ चंदन। २. [ब० स०] वज्रक्षार। ३. नौसादार। |
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चंदनवती :
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वि० स्त्री० [सं० चंदन+मतुप्, वत्व, ङीष्] केरल देश की भूमि जहाँ चंदन के वृक्ष अधिकता से होते हैं। |
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चंदनहार :
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पुं०=चंद्रहार। |
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चंदना :
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स्त्री० [सं० चंदन+अच्-टाप्]=चंदन-शारिवा। स० [सं० चंदन] शरीर में चंदन पोतना या लगाना। पुं०=चंद्रमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चंदनादि :
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पुं० [चंदन-आदि, ब० स०] वैद्यक में चंदन,खस,कपूर,बकुची इलायची आदि पित्तशामक दवाओं का एक वर्ग। |
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चंदनादि-तैल :
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पुं० [ष० त०] वैद्यक में लाल-चंदन के योग से बननेवाला एक प्रसिद्ध तैल जो अनेक रोगों में शरीर पर मला जाता है। |
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चंदनी :
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वि० [हिं० चंदन+ई (प्रत्यय)] १. चंदन संबंधी। चंदन का। २. जिसमें चंदन की सुगंध हो। ३. चंदन की लकड़ी के रंग का। कुछ लाली लिये हुए भूरा। स्त्री०[सं०चंदन+ङीष्] रामायण के अनुसार एक प्राचीन नदी। पुं.शिव। स्त्री०-चाँदनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चंदनीया :
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स्त्री० [सं०√चंद्+अनीयर+टाप्] गोरोचन। |
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चँदनौटा :
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पुं० [हिं० चंदन+औटा (प्रत्यय)] १. वह चकला जिस पर चंदन घिसा जाता है। २. एक प्रकार का लंहगा। उदाहरण–चंदननौटा खोरोदक फारी।-जायसी। |
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चँदनौता :
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पुं०=चँदनौटा। |
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चंदबान :
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पुं० [सं० चंद्रबाण] एक प्रकार का बाण जिसके सिरे पर अर्द्धचंद्राकार लोहे की गाँसी वा फल लगा रहता था और जिससे शत्रुओं का सिर काटा जाता था। |
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चँदराना :
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अ० [सं० चंद्रमा] १. पागल या विक्षिप्त होना जो चंद्रमा का प्रभाव माना जाता है। २. जान-बूझकर अनजान बनना। स० १.(किसी को) झूठा, पागल मूर्ख बनाना। २. चकमा या धोखा देना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चँदला :
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वि० [हिं० चाँद=खोपड़ी] जिसकी चाँद के बाल उड़ या झड़ गये हों। खल्वाट। गंजा। |
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चँदवा :
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पुं० [सं० चन्द्रकः] १. एक प्रकार का छोटा मंडप जो राजाओं के सिहासन या गद्दी के ऊपर चाँदी, सोने आदि की चार चोबों के सहारे ताना जाता है। चँदोवा। वितान। चदरछत। २. छाया आदि के लिए ताना जानेवाला लंबा-चौड़ा कपड़ा। ३. किसी चीज के ऊपरी भाग में लगाया जानेवाला कोई गोल या चौकोर टुकड़ा। ४. मोर की पूँछ पर की चंद्रिका। ५. एक प्रकार की मछली। चाँदा। ६. तालाब में का वह गहरा गड्ढा जिसमें मछलियाँ फँसाकर पकड़ी जाती हैं। |
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चंदसिरी :
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स्त्री० [सं० चंद-श्री] एक प्रकार का बड़ा गहना जो हाथी के मस्तक पर बाँधा या पहनाया जाता है। |
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चंदा :
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पुं० [सं० चंद्र] १. किसी परोपकारी अथवा सार्वजनिक कार्य के लिए दी या माँगी जानेवाली व्यक्तिगत आर्थिक सहायता। जैसे–मंत्री जी ने अनाथालय के निर्माण के लिए सभी भाइयों से चंदा देने की अपील की है। २. वह नियत धन जो किसी अवधि के लिए किसी संस्था को उसके सदस्य आदि बने रहने अथवा किसी पत्र-पत्रिका के ग्राहक बने रहने के लिए देना पड़ता है। जैसे–इस पत्रिका का वार्षिक चंदा ५) है। (सब्सक्रिप्शन उक्त दोनों अर्थों में) ३. किसी प्रकार का बीमा कराने पर उसके लिए समय-समय पर दिया जानेवाला धन। (प्रीमियम)। |
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चंदाममा :
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पुं० [हिं०चंदा=चाँद+मामा] बच्चों को बहलाने का एक प्रिय पद जो उनके लिए चंद्रमा का वाचक होता है। |
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चंदावत :
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पुं० [सं० चन्द्र] क्षत्रियों की एक जाति। |
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चंदावती :
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स्त्री० [सं० चंद्रवती] संगीत में एक रागिनी जो श्रीराग की सहचरी कही गई है। |
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चंदावल :
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पुं० [फा०] वे सैनिक जो सेना के पीछे रक्षा के लिए चलते हैं। चंडावल। हरावल का विपर्याय। |
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चंदिका :
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स्त्री०=चंद्रिका। |
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चंदिनि, चंदनी :
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स्त्री० [सं० चंद्रिका] १. चाँदनी। चंद्रिका। २. बिछाने की चाँदनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चँदिया :
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स्त्री० [हिं० चाँद का अल्पा] १.सिर का मध्यभाग। खोपड़ी चाँद। मुहावरा–चँदिया पर बाल तक न छोड़ना=(क) सिर पर जूते, थप्पड़ आदि मार-मारकर सिर गंजा कर देना। (ख) सर्वस्व छीन या लूट-लेना। चँदिया मूड़ना=चँदिया पर बाल तक न छोड़ना। २. वह छोटी रोटी जो सब के अंत में बचे हुए आटे और पलेथन से बनाई जाती है। ३. तालाब के नीचे का गहरा गड्ढा। ४. चाँदी की छोटी टिकिया। |
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चंदिर :
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पुं० [सं०√चंद्+किरच्] १.चंद्रमा। २. हाथी। ३. पूरक। |
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चंदिरा :
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स्त्री० [सं० चंद्रिका] चंद्रमा का प्रकाश। ज्योत्स्ना। चाँदनी। उदाहरण–शरद चंदिरा उतर रही धीरे धरती पर।-पंत। |
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चंदे :
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अ० य० [फा ०] १.थोड़े से। कुछ। २. थोड़ी देर तक। |
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चँदेरी :
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स्त्री० [सं० चेदि वा० हिं०चंदेल] राजस्थान के अंतर्गत एक प्राचीन नगरी जो शिशुपाल की राजधानी थी। |
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चँदेरीपति :
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पुं० [हिं० चँदेरी+सं० पति] चँदेरी का राजा, शिशुपाल। |
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चंदेल :
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पुं० [सं० चेदि से] [स्त्री० चंदेलिन] क्षत्रियों की एक जाति या शाखा। |
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चंदेवरी :
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स्त्री०=चँदेरी। उदाहरण–प्रोहित चंदेधरी पुरी।-प्रिथीराज। |
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चँदोआ :
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पुं०=चँदवा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चँदोवा :
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पुं०=चँदवा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चंद्र :
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पुं० [सं०√चंद्र+रक्] १.चंद्रमा। २. जल। पानी। ३. कपूर। ४. सोना। स्वर्ण। ५. रोचनी नाम का पौधा। ६. पुराणानुसार १८ उपद्वीपों में से एक। ७. लाल रंग का मोती। ८. हीरा। ९. मृगशिरा नक्षत्र। १॰.नेपाल का एक पर्वत। ११. मोर की पूँछ की चंद्रिका। १२. सानुनासिक वर्ण के ऊपर लगाई जानेवाली बिंदी। १३. हठ योग में, (क) इड़ा नाड़ी। (ख) तालु-मूल में स्थित वह गाँठ जिसमें से अमृत या सोम नामक रस निकलता हैं। १४. रहस्य संप्रदाय में, ज्ञान। स्त्री० चंद्रभागा में गिरनेवाली एक नदी। वि० १. आनंददायक। २. सुंदर। ३. श्रेष्ठ। |
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चंद्र-कला :
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स्त्री० [ष० त०] १. चंद्रमा की १६ कलाएँ या भाग जिनके नाम ये हैं-पूषा, यशा, सुमनसा, रति, प्राप्ति, धृति, ऋद्धि, सौम्या, मरीचि, अंशुमालिनी, अंगिरा,शशिनी, छाया, संपूर्णमंडला, तुष्टि और अमृता। २. उक्त कलाओं में से कोई एक या प्रत्येक। ३. चंद्रमा की किरण। ४. माथे पर पहनने का एक गहना। ५. एक प्रकार का छोटा ढोल। ६. एक प्रकार की मछली। वचा। ७. एक प्रकार का सवैया छंद जिसके प्रत्येक चरण में आठ सगण और एक गुरु होता है। इसका दूसरा नाम सुन्दरी भी है। ८. संगीत में एक प्रकार का सात-ताला ताल जिसमें तीन गुरु और तीन प्लुत के बाद एक लघु होता है। ९. मोर की पूँछ पर की चंद्रिका। १॰. एक प्रकार की बंगला मिठाई। |
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चंद्र-कांत :
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पुं० [उपमि० स०] १. एक प्रकार की प्रसिद्ध कल्पित मणि जो लोक प्रवाद के अनुसार चंद्रमा की किरणें पड़ने पर पसीजने लगती है। २. चंदन। ३. कुमुद। ४. एक राग जो हिंडोल राग का पुत्र कहा गया है। ५. लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतु की राजधानी का नाम। |
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चंद्र-कान्ता :
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स्त्री० [ष० त०] १. चंद्रमा की स्त्री। २. रात्रि। रात। ३. मल्ल प्रदेश की एक प्राचीन नगरी। ४. वे वर्णवृत्त जिनमें पन्द्रह अक्षर होते हों। |
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चंद्र-काम :
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पुं० [मध्य० स०] तंत्र में वह मानसिक कष्ट या पीड़ा जो किसी पुरुष को उस समय होती है जब कोई स्त्री उसको वशीभूत करने के लिए मंत्र-तंत्र आदि का प्रयोग करती है। |
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चंद्र-कुमार :
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पुं० [ष० त०] बुध-ग्रह जो चंद्रमा का पुत्र माना जाता है। |
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चंद्र-कुल्या :
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स्त्री० [ष० त०] कश्मीर की एक प्राचीन नदी। |
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चंद्र-कूट :
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पुं० [ष० त०] कामरूप देश का एक पर्वत। |
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चंद्र-केतु :
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पुं० [ब० स०] लक्ष्मण का एक पुत्र, जिसे चंद्रकांत प्रदेश का राज्य मिला था। |
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चंद्र-क्रीड :
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पुं० [ब० स०] संगीत में एक प्रकार का ताल। |
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चंद्र-क्षय :
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पुं० [ष० त०] अमावास्या। |
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चंद्र-गिरि :
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पुं० [ष० त०] नैपाल का एक पर्वत जो काठमांडू के पास है। |
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चंद्र-गुप्त :
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पुं० [तृ० त०] १. चित्रगुप्त। २. मगध देश का प्रथम मौर्यवंशी राजा जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र में थी और जिसने यूनानी राजा सील्यूकस पर विजय प्राप्त करके उसकी कन्या ब्याही थी। समुद्रगुप्त इसी का पुत्र था। |
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चंद्र-गृह :
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पुं० [ष० त०] कर्क राशि। |
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चंद्र-गोल :
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पुं० [कर्म० स०] १. चंद्र-मंडल। २. चंद्रलोक। |
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चंद्र-ग्रह :
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पुं०=चंद्रग्रहण। |
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चंद्र-ग्रहण :
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पुं० [ष० त० ] १. चंद्रमा की वह स्थिति जिसमें उसका कुछ या सारा बिंब पृथ्वी की छाया पड़ने के कारण दिखाई नहीं देता। २. हठयोग की परिभाषा में वह अवस्था जब प्राण इड़ा नाड़ी के द्वारा कुंडलिनी में पहुँचते हैं। |
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चंद्र-चंचल :
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पुं० [उपमि० स०] खरसा या चंद्रक नाम की मछली। |
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चंद्र-चित्र :
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पुं० [ष० त०] वाल्मीकी रामायण में उल्लिखित एक देश। |
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चंद्र-चूड़ :
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पुं०[ब० स०] (मस्तक पर चंद्रमा धारण करनेवाले) शिव। महादेव। |
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चंद्र-चूड़ामणि :
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पुं०[ब० स०] १. फलित ज्योतिष में ग्रहों का एक योग। जब नवम स्थान का स्वामी केन्द्रस्थ हो तब यह योग होता है। २. महादेव। |
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चंद्र-ताल :
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पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का बारहताला ताल जिसे परम भी कहते हैं। (संगीत)। |
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चंद्र-दारा :
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स्त्री० [ष० त०] चंद्रमा की पत्नियाँ। विशेष–आकाशस्थ २७ नक्षत्र ही जो दक्ष की कन्याएँ कही जाती हैं, चंद्रमा की पत्नियाँ मानी गई हैं। |
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चंद्र-द्युति :
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स्त्री० [ष० त०] १. चंद्रमा का प्रकाश या किरण। चाँदनी। २. चंदन वृक्ष की लकड़ी। |
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चंद्र-धनु(म्) :
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पुं० [मध्य० स०] रात के समय चंद्रमा के प्रकाश में दिखाई देनेवाला इंद्रधनुष। |
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चंद्र-धर :
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वि० [ष० त०] चंद्रमा को धारण करनेवाला। पुं० महादेव। |
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चंद्र-पंचांग :
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पुं० [मध्य० स०] वह पंचांग जिसमें महीनों की तिथियों का आरंभ चान्द्रमास के अनुसार अर्थात् प्रतिपदा से होता है। |
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चंद्र-पर्णी :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] प्रसारिणी लता। |
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चंद्र-पाद :
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पुं० [ष० त०] चंद्रमा की किरणें। |
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चंद्र-पाषाण :
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पुं० [मध्य० स०] चंद्रकांत मणि। |
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चंद्र-पुत्र :
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पुं० [ष० त०] बुध ग्रह, जो पुराणानुसार चंद्रमा का पुत्र माना गया है। |
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चंद्र-पुरी :
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स्त्री० [सं० चंद्र+देश० पूर] गरी के योग से बननेवाली एक प्रकार की बंगला मिठाई। |
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चंद्र-पुष्पा :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] १. चाँदनी। २. सफेद भटकटैया। ३. बकुची। |
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चंद्र-प्रभ :
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वि० [ब० स०] जिसमें चंद्रमा की-सी प्रभा या ज्योति हो। पुं० १. जैनों के आठवें तीर्थकर जो महासेन के पुत्र थे। २. तक्षशिला के एक प्राचीन राजा। |
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चंद्र-प्रभा :
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स्त्री० [ष० त०] १. चंद्रमा की प्रभा। चाँदनी। २. [ब० स०] बकुची नामक औषधि। ३. वैद्यक की एक प्रसिद्ध गुटिका जो अर्श, भगंदर आदि के रोगियों को दी जाती है। |
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चंद्र-प्रासाद :
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पुं० [मध्य० स०] छत के ऊपर का वह कमरा जिसमें बैठकर लोग चाँदनी का आनंद लेते हों। |
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चंद्र-बदन :
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वि० [ब० स०] [स्त्री० चंद्रवदनी] चंद्रमा के समान सुन्दर मुखवाला। परम सुन्दर। |
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चंद्र-बंधु :
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पुं० [ष० त०] १. चंद्रमा का भाई शंख (क्योकिं चंद्रमा के साथ वह भी समुद्र से निकला था) २. [ब० स०] कुमुद, जो चंद्रमा के निकलने पर खिलता है। |
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चंद्र-बधूटी :
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स्त्री०=चंद्रवधू। |
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चंद्र-बाण :
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पुं० [मध्य० स०] पुरानी चाल का एक बाण जिसका फल अर्द्धचंद्राकार होता था। |
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चंद्र-बाला :
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स्त्री० [ष० त०] १. चंद्रमा की पत्नी। २. चंद्रमा की किरण। ३. बड़ी इलायची। |
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चंद्र-बिन्दु :
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पुं० [मध्य० स०] लिखने में अर्द्धचंद्राकार युक्त वह बिन्दु जो सानुनासिक वर्ण के ऊपर लगता है। जैसे–‘साँस’ में के ऊपर का। |
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चंद्र-बिंब :
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पुं० [ष० त०] दिन के पहले पहर में गाया जानेवाला संपूर्ण जाति का एक राग जो हिंडोल का पुत्र कहा गया है। |
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चंद्र-भवन :
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पुं० [ष० त०] संगीत में एक प्रकार का राग। |
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समानार्थी शब्द-
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चंद्र-भस्म :
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पुं० [उपमि० स०] कपूर। |
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चंद्र-भा :
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स्त्री० [ष० त०] १. चंद्रमा का प्रकाश। २. [ब० स०] सफेद भटकटैया। |
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चंद्र-भाग :
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पुं० [ष० त०] १. चंद्रमा की कला। २. चंद्रमा के सोलह कलाओं के आधार पर सोलह की संख्या। ३. [ब० स०] हिमालय पर्वत का वह भाग जिसमें से चन्द्रभागा या चनाब नदी निकलती है। |
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चंद्र-भागा :
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स्त्री० [सं० चन्द्रभाग+अच्-टाप्] पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में बहनेवाली प्रसिद्ध चनाब नदी का पुराना नाम जो उसके चंन्द्रभाग नामक हिमालय के एक शिखर से निकलने के कारण पड़ा था। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चंद्र-भाट :
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पुं० [सं० चंद्र+हिं० भाट] शिव और काली के उपासकों का एक संप्रदाय। |
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समानार्थी शब्द-
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चंद्र-भाल :
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पुं० [ब० स०] वह जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो, अर्थात् महादेव। |
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चंद्र-भास :
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पुं० [ब० स०] तलवार। |
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समानार्थी शब्द-
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चंद्र-भूति :
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स्त्री० [ब० स०] चाँदी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चंद्र-भूषण :
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पुं० [ब० स०] वह जिसका भूषण चंद्रमा हो,अर्थात् महादेव। |
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समानार्थी शब्द-
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चंद्र-मंडल :
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पुं० [ष० त०] चंद्रमा का पूरा बिंब या मंडल। |
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समानार्थी शब्द-
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चंद्र-मणि :
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पुं० [मध्य० स०] १. चंद्रकांत मणि। २. उल्लाला छंद का दूसरा नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चंद्र-मल्लिका :
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स्त्री० [मध्य० स०] एक प्रकार की चमेली। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चंद्र-मात्रा :
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स्त्री० [ष० त०] तालों के १४ भेदों में से एक। (संगीत)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चंद्र-माला :
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स्त्री० [ष० त० ] १. २८ मात्राओं का एक छंद। २. चंद्रहार. |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चंद्र-मुकुट :
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पुं० [ब० स०] शिव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चंद्र-मुख :
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वि०[ब० स०] [स्त्री० चंद्रमुखी] चंद्रमा के समान सुन्दर मुखवाला। |
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चंद्र-मौलि :
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पुं०[ब० स०] शिव। महादेव। |
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चंद्र-रत्न :
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पुं० [मध्य० स०] मोती। |
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चंद्र-रेख :
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स्त्री०[ष० त०] १.चंद्रमा की कला। २. चंद्रमा की किरण। ३. द्वितीया का चंद्रमा। ४. बकुची। कठरी। ५. एक प्रकार का गहना। ६. एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः यगण, रगण, भगण और दो यगण होते हैं। |
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चंद्र-ललाम :
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पुं० [ब० स०] महादेव। शिव। |
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चंद्र-लेखा :
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स्त्री०=चंद्र-रेख। |
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चंद्र-लोक :
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पुं० [ष० त०] १. आकाश-मंडल का वह क्षेत्र जिसमें चंद्रमा रहता है। चंद्रमा का लोक। २. चंद्रमा में स्थित जगत तथा संसार। |
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चंद्र-वधू :
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स्त्री० [ष० त०] बीरबहूटी। |
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चंद्र-वर्त्म(न्) :
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पुं० [ष० त०] एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में रगण, नगण, भगण और सगण (ऽ।ऽ ।।। ऽ॥ ॥ऽ) होते हैं। |
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चंद्र-वल्लरी :
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स्त्री० [ष० त०] सोमलता। |
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चंद्र-वल्ली :
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स्त्री० [ष० त०] १. सोम लता। २. माधवी लता। ३. प्रसारिणी नाम की लता। |
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चंद्र-वश :
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पुं० [ष० त०] क्षत्रियों का एक प्राचीन वंश जिसके आदि पुरुष राजा पुरूरपवा थे। |
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चंद्र-वेध :
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पुं० [ब० स०] शिव। महादेव। |
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चंद्र-व्रत :
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पुं० [ष० त०] =चांद्रायण (व्रत)। |
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चंद्र-शेखर :
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पुं० [ब० स०] १. महादेव जिनके मस्तक पर चंद्रमा है। २. एक पर्वत का नाम जो अराकान में है। ३. एक प्राचीन नगर। ४. संगीत में, एक प्रकार का सात-ताला ताल। |
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चंद्र-श्रृंग :
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पुं० [ष० त०] द्वितीया के चंद्रमा के दोनों नुकीले छोर या भाग। |
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चंद्र-सुत :
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पुं० [ष० त०] बुध(ग्रह)। |
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चंद्र-हार :
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पुं०[मध्य० स०] एक प्रकार का गले का हार जिसमें अर्द्धचंद्राकार धातु के कई टुकड़े लगे रहते हैं और बीच में पूर्णचन्द्र के आकार का गोल टिकड़ा बना होता है। |
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चंद्र-हास :
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पुं० [ब० स०] १. खङ्। तलवार। २. रावण की तलवार का नाम। ३. [ष० त०] चंद्रमा का प्रकाश। चाँदनी। |
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चंद्रक :
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पुं० [सं० चंद्र+कन्] १. चंद्रमा। २. चंद्रमा की तरह घेरा या मंडल। ३. चंद्रिका। चाँदनी। ४. मोर की पूँछ पर की चंद्रिका। ५. नाखून। नख। ६. कपूर। ७. सफेद मिर्च। ८. सहिजन। ९. जल। पानी। १॰. एक प्रकार की मछली। ११. एक राग जो मालकोश का पुत्र कहा गया है। |
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चंद्रकर :
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पुं० [ष० त०] १. चंद्रमा की किरण। २. चाँदनी। चंद्रिका। |
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चंद्रकला-धर :
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पुं० [ष० त०] महादेव। शिव। |
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चंद्रकी(किन्) :
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वि० [सं० चंद्रक+इनि] चंद्रक से युक्त। पुं० मयूर। मोर। |
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चंद्रज :
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पुं०[सं०चंद्र√जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] बुध ग्रह, जो चंद्रमा का पुत्र माना जाता है। |
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चंद्रजोत :
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स्त्री० [सं० चंद्रज्योति] १.ज्योत्स्ना। चाँदनी। २. एक प्रकार की आतिशबाजी। |
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चंद्रबोड़ा :
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पुं० [सं० चंद्र-बोड्र] एक प्रकार का अजगर। |
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चंद्रभानु :
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पुं० [सं०] श्रीकृष्ण की पटरानी सत्यभामा के १॰. पुत्रों में से सातवें पुत्र का नाम। |
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चंद्रमस् :
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पुं० [सं० चंद्र=आह्याद√मि (मापना)+असुन्, म आदेश] चंद्रमा। |
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चंद्रमा :
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पुं० [सं० चंद्रमस्] पृथ्वी का एक प्रसिद्ध उपग्रह जो पृथ्वी से २५३॰॰॰ मील दूर है और जिसका व्यास २१6॰ मील है तथा जिसके कारण रात के समय पृथ्वी पर चाँदनी या प्रकाश होता है और जो एक चंद्रमास में पृथ्वी की एक परिक्रमा करता है। चाँद। विधु। शशि। |
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चंद्रमा-ललाट :
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पुं० [हिं० चंद्रमा+ललाट] शिव, जिनके ललाट पर चंद्रमा है। |
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चंद्रमा-ललाम :
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पुं० [हिं० चंद्रमा+ललाम=तिलक] महादेव। |
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चंद्रमास :
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पुं०=चांद्रमास। |
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चंद्रवंशी(शिन्) :
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वि० [सं०चंद्रवंश+इनि] १. चंद्रवंश संबंधी। २. क्षत्रियों के चंद्रवंश में जन्म लेनेवाला। |
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चंद्रवा :
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पुं०=चँदवा। |
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चंद्रवार :
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पुं० [ष० त०] सोमवार। |
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चंद्रशाला :
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स्त्री० [सं० चंद्र√शाल् (शोभित होना)+अच्-टाप्,उप.स०] १. चाँदनी। चंद्रिका। २. छत के ऊपर का कमरा जिसमें बैठकर लोग चाँदनी रात का आनंद लेते हों। |
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चंद्रशालिका :
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स्त्री० [सं० चंद्रशाला+कन्-टाप्, ह्रस्व,इत्व] =चंद्रशाला। |
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चंद्रशिला :
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स्त्री० [मध्य० स०] चंद्रकांत मणि। |
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चंद्रशूर :
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पुं० [स० त०] हालों या हालम नाम का पौधा। चसुर। |
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चंद्रस :
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पुं० [देश०] गंधा बिरोजा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चंद्रहासा :
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स्त्री० [सं० चंद्रहास+टाप्] सोमलता। |
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चंद्रा :
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स्त्री० [सं० चंद्र+टाप्] १. छोटी इलायची। २. चँदोआ। ३. गुडूची। गुरुच। स्त्री० [सं० चंद्र] मरने के समय से कुछ पहले की वह अवस्था जिसमें आँखों की टकटकी बँध जाती है, गला कफ से रूँद जाता है और बोला नहीं जाता। |
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चंद्रांकित :
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पुं० [चंद्रअंकित, तृ० त०] महादेव। शिव। वि० चंद्रमा की आकृति से अंकित या युक्त। |
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चंद्रातप :
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पुं० [चंद्र-आतप, ष० त० ] १. चाँदनी। चंद्रिका। २. [चंद्रआ√तप्+अच्] चँदवा। |
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चंद्रात्मज :
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पुं० [चंद्र-आत्मज, ष० त०] बुध ग्रह। |
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चंद्रानन :
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वि०[चंद्र-आनन, ब० स०] [स्त्री० चंद्रानना]=चंद्रवदन। पुं०=कार्तिकेय। |
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चंद्रापीड़ :
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पुं[चंद्र-आपीड़ ,ब० स०] १.शिव। महादेव। २. कश्मीर का एक प्रसिद्ध धर्मात्मा राजा जो प्रतापादित्य का बड़ा पुत्र था और जो शकाब्द ६॰४ में सिहांसन पर बैठा था। |
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चंद्रायण :
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पुं०=चांद्रायण। |
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चंद्रायतन :
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पुं० [ष० त० ] चंद्रशाला। |
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चंद्रार्क :
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पुं० [चंद्र-अर्क,द्व० स०] १. चंद्रमा और सूर्य। २. चाँदी, ताँबे आदि के योग से बनी हुई एक मिश्र धातु। |
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चंद्रार्द्ध :
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पुं० [चंद्र-अर्द्ध,ष० त०] चंद्रमा का आधा भाग जो प्रायः द्वितीया के दिन दिखाई देनेवाले रूप का होता है। अर्धचंद्र। |
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चंद्रार्द्ध-चूड़ामणि :
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पुं० [ब० स०] महादेव। शिव। |
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चंद्रालोक :
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पुं० [चंद्र-आलोक, ष० त०] १. चंद्रमा का प्रकाश। चाँदनी। चंद्रिका। २. कविवर जयदेव कृत संस्कृत का एक प्रसिद्ध अलंकार-ग्रंथ। |
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चंद्रावती :
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स्त्री० [चंद्र-आवर्त, ब० स० टाप्] एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक पद में ४ नगण पर एक सगण होता है और ८,७ पर विराम। विराम न होने पर “शशिकला” (मणिगुणशरभ) वृत्त होता है। इसका दूसरा नाम ‘मणिगुणनिकर’ है। |
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चंद्रावली :
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स्त्री० [चंद्र-आवली, ष० त०] कृष्ण की सखी एक गोपी जो चंद्रभानु की कन्या थी। |
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चंद्राशु :
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पुं० [चंद्र-अंशु,ष० त० ] १. चंद्रमा की किरण। २. [ब० स०] विष्णु। |
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चंद्रिका :
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स्त्री० [सं० चंद्र+ठन्-इक, टाप्] १. चंद्रमा का प्रकाश। चांदनी। २. मोर की पूँछ पर का वह अर्द्धचंद्राकार चिन्ह्र जो सुनहले मंडल से घिरा होता है। ३. इलायची। ४. चाँदा नाम की मछली। ५.चंद्रभागा नदी। ६. कनफोड़ा नाम की घास। ७. चमेली। ८. सफेद भटकटैया। ९. मेथी। १॰. चंसुर या हालम पौधा। ११. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में न, न, त, त, ग (॥। ।॥ ऽऽ। ऽऽ। ऽ) और ७-६ पर यति होती है। १२. एक देवी का नाम। १३. माथे पर पहनने का टीका या बेंदी। १४. स्त्रियों के पहनने का एक प्रकार का मुकुट या शिरोभूषण जिसे चंद्रकला भी कहते थे। |
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चंद्रिका-द्राव :
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पुं० [ब० स०] चंद्रकांत मणि। |
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चंद्रिकातप :
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पुं० [चंद्रिका-आतप, मयू० स०] चांदनी। ज्योत्स्ना। |
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चंद्रिकापायी(यिन्) :
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पुं० [सं० चंद्रिका√पा (पीना)+णिनि युक् उप० स०] चकोर पक्षी जो चंद्रमा से निकलनेवाले अमृत या रस का पीनेवाला कहा गया है। |
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चंद्रिकामिसारिका :
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स्त्री० [चंद्रिका-अभिसारिका, मध्य० स०]=शुक्लाभिसारिका (नायिका)। |
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चंद्रिकोत्सव :
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पुं० [चंद्रिका-उत्सव, मध्य० स०] शरत् पूर्णिमा के दिन होनेवाला एक प्राचीन उत्सव। |
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चंद्रिमा :
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स्त्री०=चंद्रिका। |
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चंद्रिल :
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पुं० [सं० चंद्र+इलच्] १. शिव। महादेव। २. नाई। हज्जाम। ३. बथुवा नाम का साग। |
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चंद्रेष्टा :
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स्त्री० [चंद्र-इष्टा, ब०स०] कुमुदिनी। |
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चंद्रोदय :
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पुं० [चंद्र-उदय, ष० त०] १. चंद्रमा के उदित होने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. चँदोआ। ३. वैद्यक में एक रस। |
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चंद्रोपराग :
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पुं० [सं० चंद्र-उपराग,ष० त०] चंद्रमा को लगनेवाला ग्रहण। चंद्र-ग्रहण। |
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चंद्रोपल :
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पुं० [चंद्र-उपल, मध्य० स०] चंद्रकांत मणि। |
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चंद्रौल :
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पुं० [सं० चंद्र] राजपूतों की एक जाति। |
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