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तिरप  : स्त्री० [सं० त्रिसम] नृत्य में एक प्रकार का ताल जिसे त्रिसम या तिहाई कहते हैं। क्रि० प्र०–लेना।
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तिरपट  : वि० [देश०] १. (लकड़ी की धरन, पल्ले आदि के संबंध में) जो सूखकर ऐंठ गया हो। २. टेढ़ा-मेढ़ा। तिड़बिड़गा। ३. कठिन। मुश्किल।
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तिरपटा  : वि० [हिं० तिरपट] (व्यक्ति या पशु) जिसकी सामने की ओर ताकते समय पुतलियाँ कोनों में चली जाती हों ऐंचा-ताना। भेंगा।
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तिरपन  : वि० [सं० त्रिपंचाशत्, प्रा० तिपण्ण] जो गिनती में पचास से तीन अधिक हो। पचास से तीन ऊपर। पुं० उक्त के सूचक अंक या संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है-५३।
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तिरपाई  : स्त्री०=तिपाई।
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तिरपाल  : पुं० [सं० तृण+हिं० पालना-बिछाना] फूस,सरकंडे आदि के लंबे पूले जो खपड़ों आदि के नीचे बिछाये जाते हैं। गुट्ठा। पुं० [अ० टारपालिन] एक प्रकार का मोटा कपड़ा जिस पर राल या रोगन चढ़ाया गया हो। इसको जल नहीं भेदता।
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तिरपित  : वि०=तृप्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तिरपौलिया  : वि० [सं० त्रि+हिं० पोल-फाटक] (वह बाजार, मकान आदि) जिसमे जाने के तीन बड़े द्वार या रास्ते हों।
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