शब्द का अर्थ
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पण :
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पुं० [सं०√पण (व्यवहार)+अप्] १. वह केल जो पासों से खेला जाता है। २. वह खेल जिसकी हार-जीत में दाँव पर कुछ धन लगाया जाता हो। जूआ। द्यूत। ३. किसी काम या बात के लिए लगाई जानेवाली बाजी। शर्त। ४. वह धन जो जूए के दाँव अथवा बाजी या शर्त बदने के समय लगाया जाता हो। ५. दो व्यक्तियों में पारस्पिरक होनेवाला निश्चय या प्रतिज्ञा। कौल। करार। ६. वह धन जो उक्त प्रकार के निश्चय,प्रतिज्ञा आदि के फलस्वरूप दिया या लिया जाता हो। जैसे—पारिश्रमिक, भाडा, सूद आदि। ७. किसी चीज का दाम। कीमत। मूल्य। ८. फीस। शुल्क। ९. धन-दौलत। सम्पत्ति। १॰. वह चीज जो खरीदी और बेची जाती हो। माल। सौदा। ११. रोजगार। व्यापार। १२. प्रशंसा। स्तुति। १३. प्राचीन काल की एक नाप जो एक मुट्ठी अनाज के बराबर होती थी। १४. किसी के मत से ११ और किसी के मत से २॰ माशे के बराबरा ताँबे का टुकड़ा जिसका व्यवहार सिक्के की भाँति होता था। |
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पण-क्रिया :
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स्त्री० [ष० त०] दांव, बाजी या शर्त लगाने का काम। |
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पण-ग्रंथि :
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स्त्री० [ब० स०] बाजार। हाट। |
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पण-दंड :
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पुं० [ष० त०] अर्थ-दंड। |
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पण-धर :
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वि० [ष० त०] प्रण रखनेवाला। उदा०—कोड़ी दै नहं काढ़, पणधर राण प्रताप सी।—दुरसाजी। |
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पण-बंध :
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पुं० [ष० त०] बाजी बदना। शर्त लगाना। |
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पण-सुन्दरी :
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स्त्री० [मध्य० स०] वेश्या। रंडी। |
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पण-स्त्री :
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स्त्री० [मध्य० स०] रंडी। वेश्या। |
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पणता :
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स्त्री०, पुं० [सं० पण+कल्—टाप् पण+त्वल्] मूल्य। |
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पणत्व :
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पुं० [सं० पण+त्व]=पणता। |
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पणन :
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पुं० [सं०√पण+ल्युट्—अन] १. खरीदने की क्रिया या भाव। क्रय करना। मोल लेना। २. बेचने की क्रिया या भाव। विक्रय। ३. बाजी या शर्त लगाने की क्रिया या भाव। ४. व्यवहार, व्यापार आदि करने की क्रिया या भाव। |
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पणनीय :
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वि० [सं०√पण+अनीयर्] १. जो खरीदा या बेचा जा सके। पणन के योग्य। २. जिससे धन के लोभ से कोई काम कराया जा सके। भाड़े का टट्ट। |
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पणव :
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पुं० [सं० पण√वा(गति)+क] १. छोटा ढोल या नगाड़ा। २. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः एक मगण,एक नगण,एक भगण, और अन्त में एक गुरु होता है। |
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पणवा :
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स्त्री०=पणव। |
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पणवानक :
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पुं० [पणव-आनक,कर्म० स०] नगाड़ा। |
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पणवी (विन्) :
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पुं० [सं० पणव+इनि] शिव। |
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पणस :
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पुं० [सं०√पण्+असच्] वस्तु, विशेषतः बेची जानेवाली वस्तु। |
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पणांगना :
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स्त्री० [पण-अंगना, मध्य० स०]रंडी। वेश्या। |
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पणाया :
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स्त्री० [सं०√पण+आय+अ—टाप् ] १. व्यापारियों का एक माल किसी को देकर उसके बदले में दूसरा माल लेना। विनिमय। २. चीजें ले या देकर उनका दाम चुकाना या वसूल करना। आर्थिक क्षेत्र में लेन-देन आदि करना। (टैन्जै़क्शन) ३. रोजगार। व्यापार। ४. रोजगार या व्यापार में होनेवाला लाभ। ५. बाजार। ६. जूआ। ७. स्तुति। |
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पणायित :
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भू० कृ० [सं०√पण्+आय+क्त] १. (पदार्थ) जो खरीदा या बेचा जा चुका हो। २. जिसकी स्तुति की गई हो। |
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पणार्पण :
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पुं० [पण-अर्पण,ष० त०] क्रय-विक्रय के लिए दो पक्षों में होनेवाला निश्चय या पक्की बात। |
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पणाशी :
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वि०=प्रनाशी (नाश करनेवाला)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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पणास्थि :
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स्त्री० [पण-अस्थि,ष० त०] कौड़ी। कपर्दक। |
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पणि :
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स्त्री० [सं०√पण्+इन्] बाजार। हाट। पुं० १. पणन अर्थात् क्रय-विक्रय करनेवाला व्यक्ति। २. कंजूस। ३. पापी। |
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पणित :
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भू० कृ० [सं०√पण्+क्त] १. (पदार्थ) जिसका पणन अर्थात् क्रय-विक्रय हो चुका हो। २. जिसके संबंध में बाजी लगाई गई हो। ३. जिसके संबंध में कोई प्रतिबंध या शर्त लगा हो। (कन्डिशन्ड) ४. प्रशंसित। स्तुत। पुं० १. बाजी। शर्त। २. जूआ। ३. जुआरी। ४. अग्रिम या पेशगी दिया जानेवाला धन। बयाना। |
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पणितव्य :
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वि० [सं०√पण्+तव्यत्] १. जिसका क्रय-विक्रय हो सके। २. जिसका लेन-देन या व्यवहार हो सके। ३. जिसके साथ लेन-देन या व्यवहार किया जा सके। ४. जिसकी प्रशंसा या स्तुति की जा सके। |
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पणिता (तृ) :
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पुं० [सं०√पण्+तृच्] पणन अर्थात् क्रय-विक्रय करनेवाला व्यक्ति। |
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पणिहारा :
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पुं० [स्त्री० पणिहारी]=पनिहारा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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पणी (णिन्) :
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पुं० [सं० पण+इनि] क्रय-विक्रय करनेवाला रोजगारी। |
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पण्य :
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वि० [सं० पण्+यत्]=पणितव्य। पुं० १. वह चीज जो खरीदी और बेची जाती हो। माल। सौदा। २. रोजगार। व्यापार। ३. बाजार। हाट। ४. दूकान। |
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पण्य-क्षेत्र :
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पुं० [ष० त०]=पण्य-भूमि। |
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पण्य-चरित्र :
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पुं० [ष० त०] किसी मंडी या हाट के बँधे हुए नियम या प्रथाएँ। |
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पण्य-चिन्ह :
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पुं० [ष० त०] दे० ‘वाणिज्य चिन्ह’। |
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पण्य-दास :
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पुं० [कर्म० स०] [स्त्री० पण्यदासी] वह दास जो धन लेकर उसके बदले में दास्यवृत्ति करता हो। |
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पण्य-निचय :
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पुं० [ष० त०] बेचने के लिए माल इकट्ठा करके रखना। |
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पण्य-निर्वाहण :
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पुं० [ष० त०] चुंगी या महसूल दिये बिना ही चोरी से माल निकाल ले जाना। (कौ०) |
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पण्य-पति :
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पुं० [ष० त०] १. बहुत बड़ा रोजगारी या व्यापारी। २. बहुत बड़ा साहूकार। नगर-सेठ। |
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पण्य-पत्तन :
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पुं० [ष० त०] १. वह नगर जिसमें अनेक मंडियाँ हों। २. मंडी। ३. बाजार। हाट। |
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पण्य-परिणीता :
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स्त्री० [कर्म० स०] रखेली स्त्री। |
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पण्य-फल :
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पुं० [ष० त०] व्यापार करने से प्राप्त होने वाली आय या लाभ। |
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पण्य-भूमि :
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स्त्री० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ वस्तुओं का व्यापार होता हो। २. मंडी। हाट। ३. गोदाम। |
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पण्य-योषित :
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स्त्री० [मध्य० स०] रंडी। वेश्या। |
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पण्य-वस्तु :
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स्त्री० [कर्म० स०] वे पदार्थ या वस्तुएँ जो बाजारों में बेंचने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं। खरीद और बिक्री का माल। पण्य-द्रव्य। (कमोडिटी,मर्चेन्डाइज) जैसे—कपड़ा, कागज, गेहूँ, जौ आदि। |
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पण्य-विलासिनी :
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स्त्री० [कर्म० स०] वेश्या। |
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पण्य-वीथि (का) :
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स्त्री० [ष० त०] १. बाजार। २. छोटी दुकान। |
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पण्य-शाला :
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स्त्री० [ष० त०]=पण्य-वीथि (का)। |
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पण्य-समवाय :
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पुं० [ष० त०] व्यापारिक वस्तुओं का संग्रह। |
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पण्य-स्त्री :
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स्त्री० [कर्म० स०] वेश्या। |
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पण्यजीवक :
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पुं० [सं० पण्याजीव+कन्] १.=पण्याजीव। २. [पण्यजीव√कै ( चमकना)+क] बाजार। |
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पण्या :
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स्त्री० [सं० पण्य+टाप्] मालकंगनी। |
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पण्यांगना :
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स्त्री० [पण्य-अंगना कर्म० स०] वेश्या। |
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पण्याजीव :
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पुं०[सं० पण्य-आ√जीव् (जीना)+क] १. ऐसा व्यक्ति जिसकी जीविका पण्य अर्थात् रोजगार से चलती हो। रोजगारी। व्यापारी। |
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पण्यांधा :
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स्त्री० [सं० पण्य√अंध् (अंधा करना)+अच्—टाप्] कँगनी नाम का कदन्न। |
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पण्यावर्त्त :
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पुं० [सं०] क्रय-विक्रय लेन-देन आदि का व्यवहार। (ट्रैन्जैक्शन)। |
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