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शब्द का अर्थ
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प्रमथ :
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वि० [सं० प्र√मथ् (मथना)+अच्] १. मंथन करनेवाला। २. कष्ट देने या पीड़ित करनेवाला। पुं० १. शिव के एक प्रकार के गण या परिषद् जिनकी संख्या ३६ करोड़ कही गई है। २. घोड़ा। ३. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। |
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प्रमथ-नाथ :
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पुं० [ष० त०] महादेव। शिव। |
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प्रमथ-पति :
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पुं० [ष० त०] महादेव। शिव। |
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प्रमथन :
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पुं० [सं० प्र√मथ्+ल्युट्—अन] १. अच्छी तरह मथना। २. कष्ट देना। पीड़ित करना। ३. वध करना। मार डालना। ४. चौपट, नष्ट या बरबाद करना। |
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प्रमथा :
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स्त्री० [सं० प्रमथ+टाप्] १. हरीतकी। हर्रे। २. पीड़ा। |
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प्रमथाधिप :
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पुं० [सं० प्रमथ-अधिप, ष० त०] शिव। |
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प्रमथालय :
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पुं० [सं० प्रमथ-आलय, ष० त०] दुःख या यंत्रणा का स्थान, नरक। |
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प्रमथित :
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भू० कृ० [सं० प्रा० स०] १. अच्छी तरह मथा हुआ। २. सताया हुआ। पुं० दही मथने पर निकला हुआ शुद्ध मठा जिसमें पानी न मिलाया गया हो। |
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