शब्द का अर्थ
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भड़ :
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पुं० [अनु०] भड़ शब्द जो प्रायः किसी चीज के गिरने से होता है। पुं० =भट (योद्धा)। |
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समानार्थी शब्द-
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भड़आई :
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स्त्री०=भड़आपन। |
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भड़क :
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स्त्री० [अनु०] भड़कने की अवस्था या भाव। स्त्री० [?] तीव्र चमक-दमक। |
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भड़कना :
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अ० [अनु० भड़क+ना (प्रत्यय)] १. कोयले, गोहरे आदि का आग से स्पर्श होने पर सहसा जोरो से जल उठना। २. किसी प्रकार के मनोभाव का सहसा तीव्र या प्रबल होना। जैसे—क्रोध भड़कना। ३. पशुओं का भयभीत होकर या सहमकर अपनी सामान्य गति या स्तान छोड़कर उछलने-कूदने या इधर-उधर भागने लगना। ४. व्यक्ति का प्रायः दूसरों की बातों में आकर आवेश या क्रोध से युक्त होना और कुछ का कुछ करने लगना। ५. किसी के पास या समीप जाने में हिचकना और सशंकित रहकर उससे दूर या परे रहना। जैसे—मुझे देखकर वह भड़कता है। |
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भड़कवदार :
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वि० [हिं० भड़क+फा० दार] भड़कीला। |
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भड़काना :
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स० [हिं० भड़कना का स० रूप] १. अग्नि प्रज्वलित करना। ज्वाला बढ़ाना। २. उत्तेजित या क्रुद्ध करना। ३. तीव्र या प्रबल करना। ४. ऐसा काम करना जिससे कोई या कुछ भड़के। ५. किसी को इस प्रकार भ्रम में डालना या भयभीत करना कि वह कोई काम करने के लिए तैयार न हो। जैसे—किसी का ग्राहक भड़काना। संयो० क्रि०—देना। |
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भड़कीला :
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वि० [हिं० भड़क+ईला (प्रत्यय)] [भाव० भड़कीलापन] जिसमें खूब चमक-दमक हो। भड़कदार। वि० [हिं० भडकना] जल्दी भड़कनेवाला। |
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भड़कीलापन :
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पुं० [हिं० भड़कीला+पन (प्रत्यय)] १. भड़कीले होने की अवस्था या भाव। २. चमक-दमक। |
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भड़कैल :
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वि० [हिं० भड़कना] जल्दी, चौंकने बिदकने या भड़कनेवाला। |
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भडंग :
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पुं० [अनु०] [भाव० भंडगी] १. दिखाने की झूठी बात। आंडबर। उदाहरण—धरि शखौ ज्ञान गुन गौरव गुमान गोइ गोपनि कौ आवतन भावत भडंग है।—रत्नाकर। २. भाँडपन। |
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भडंगी :
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स्त्री०=भडंक वि० दिखावा करनेवाला। आंडबर रचनेवाला। |
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भडंबा :
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पुं० [सं० विडंबा] १. दिखावटी ठाठ-बाट। आंडबर। २. व्यर्थ का बहुत बड़ा जंजाल या बखेड़ा। |
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भड़भड़ :
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स्त्री० [अनु] १. भड़भड़ शब्द जो प्रायः एक चीज पर दूसरी चीज जोर-जोर से पटकने अथवा बड़े-बड़े ढोल आदि बजाने से उत्पन्न होता है। आघातों का शब्द। २. व्यर्थ की बातें और हो-हल्ला। ३. दे० ‘भीड़-भाड़’। |
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भड़भड़ाना :
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स० [अनु०] भड़-भड़ शब्द उत्पन्न करना। अ० किसी चीज में से भड़-भड़ शब्द उत्पन्न होना। |
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भड़भड़िया :
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वि० [हिं० भड़-भड़+इया (प्रत्यय)] १. भड भड़ अर्थात् व्यर्थ बहुत अधिक बातें करनेवाला। २. मन में छिपाकर बात न रख सकनेवाला। भेद की बातें दूसरों पर प्रकट कर देनेवाला। ३. जो डींग तो बहुत हाँकता हो पर काम कुछ भी न करता हो। |
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भड़भाँड़ :
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पुं० [सं० भांड़ार] एक कँटीला पौदा जिसके बीजों का तैल जहरीला होता है। सत्यानासी। मोय। |
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भड़भूँजा :
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पुं० [हिं० भाड़+भूँजना] हिन्दुओं में एक जाति जो भाड़ में अन्न भूनने का काम करती है। भुजवा। भुरजी। |
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भड़री :
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स्त्री० [देश०] १. अनाज की मँड़ाई हो जाने पर भी पौधों में बचा हुआ अन्न। गँठा। |
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भड़वा :
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पुं० =भड़ुआ। |
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भड़वाई :
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स्त्री०=भड़आई। |
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भड़साई :
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स्त्री० [हिं० भाड़] भड़भूँजे का भाड़ या भट्ठी जिसमें वह अनाज के दाने भूनता है। मुहावरा—भड़साई दहकना या धिकना=किसी काम या बात की बहुत उन्नति या प्रबलता होना। (व्यंग्य)। |
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भड़सार :
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स्त्री० [हिं० भाड़+शाला] वह भँडरिया जिसमें पकाया हुआ भोजन रखा जाता है। |
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भड़हर :
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स्त्री०=भँडेहर। |
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भड़ार :
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पुं० =भंडार। |
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भड़ाल :
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पुं० [सं० भट] योद्धा। वीर। |
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भड़ास :
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स्त्री० [हिं० भड़ से अनु०] १. वह गरमी जो तपी हुई जमीन पर पानी गिरने या छिड़कने से उत्पन्न होती है। २. आवेश में आकर तथा कड़े शब्दों में किसी पर प्रकट किया जानेवाला मानसिक असंतोष। क्रि० प्र०—निकालना। |
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भड़िक :
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अव्य० [अनु०] १. अचनाक। सहसा। २. चट-पट। तुरन्त। ३. बिना सोचे-समझे और एकदम से। |
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भड़िहा :
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पुं० [सं० भांडहर] [भाव० भड़िहाई] चोर। तस्कर। (बुदेल।) |
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भड़िहाई :
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क्रि० वि० [हिं० भड़िहा] चोरों की तरह। लुक-छिप या दबकर। स्त्री०=चोरी। |
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भड़ी :
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स्त्री० [हिं० भड़काना] भड़काने की क्रिया या भाव। विशेषतः किसी को मूर्ख बनाने अथवा किसी का अहित चाहने के उद्देश्य से उसे कोई गलत काम करने के लिए दिया जानेवाला बढ़ावा। क्रि० प्र०—देना।—में आना। |
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भड़ुआ :
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पुं० [हिं० भाँड़] १. वेश्याओं के साथ तबला या सारंगी बजानेवाला। सरपदाई। २. वेश्याओं का दलाल। |
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भड़ुआपन :
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पुं० [हिं० भड़ुआ+पन (प्रत्यय)] भड़ुआ होने की अवस्था काम या भाव। |
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भड़ैत :
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पुं० [हिं० भाड़ा] [भाव० भड़ैती] १. वह जिसने किसी की दुकान या मकान भाड़े या किराये पर लिया हो। किरायेदार। २. भाड़े पर दूसरों का काम करनेवाला व्यक्ति। |
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भड़ोलना :
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स० [देश] रहस्य प्रकट कर देना। गुप्त बात खोल देना। भेद बताना। जैसे—तेरी सब बातें भड़ोलकर रख दूँगी। (स्त्रियाँ) |
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