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मेरु-दंड :
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पुं० [सं० उपमित स०] १. मनुष्यों और बहुत से जीव-जंतुओं में पीठ के बीचोबीच गरदन से लेकर कमर पर की त्रिकास्थि तक का पृष्ठवंश जिसमें कमेरुकाएँ (हड्डी की गुरियाँ) माला की तरह गुथी रहती है और जिनके दाहिने बाएँ शाखाओं के रूप में लम्बी-लम्बी हड्डियाँ निकली होती हैं। रीढ़ (बैकबोन) विशेष—हठयोग के अनुसार इसके मध्य सुषम्ना, बाई ओर इड़ा (चन्द्रमा) और दाहिनी ओर पिंगला (सूर्य) नाम की नाड़ियाँ होती हैं। २. लाक्षणिक रूप में, कोई ऐसी चीज या बात जिसके आधार पर कोई दूसरी चीज या बात ठीक तरह से आश्रित रहकर पूरी तरह से अपना काम करती है। जैसे—तुलसी-कृत रामायण हिन्दू संस्कृति का मेरु-दंड है। ३. भूगोल में पृथ्वी के दोनों ध्रुवों को मिलानेवाली एक कल्पित सीधी रेखा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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