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रास  : स्त्री० [सं०√रास् (शब्द)+अञ्] १. कोलाहल। शोरगुल। हो-हल्ला। २. जोर की ध्वनि या शब्द। ३. वाणी। ४. प्राचीन भारत में गोपों की वह क्रीड़ा जिसमें वे घेरा बाँधकर गाते और नाचते थे। ५. उक्त का वह विकसित रूप जो अब तक ब्रज में प्रचलित है और जिसमें श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का अभिनय सम्मिलित हो गया है। पद—रास-धारी। रास-मंडली। ६. मध्ययुग में एक प्रकार का गेय पद जो गुजरात और राजस्थान में प्रचलित थे और जो बाद में ‘रास’ (देखें) के रूप में विकसित हुए। ७. आनन्दमय क्रीड़ा। विलास। ८. एक प्रकार का चलता गाना। ९. लास्य नामक नृत्य। १॰. नाचने-गानेवालों की मंडली या समाज। ११. जंजीर। श्रृंखला। १२. संगीत में तेरह मात्राओं का एक ताल। स्त्री० [सं० राशि=ढेर] १. किसी चीज का ढेर या समूह। जैसे—खलिहान में पड़ी हुई गेहूँ चने या जौ की रास। २. उत्तराधिकार के विचार से धन, संपत्ति या प्राप्त होनेवाला उसका स्वामित्व। ३. गोंद लिया हुआ लड़का। दत्तक पुत्र। मुहावरा—(किसी का) किसी को रास बैठना=दत्तक बनकर या और किसी प्रकार उत्तराधिकारी होना। जैसे—अब तो आप उनकी रास बैठेगें (विशेषतः परिहास में)। ४. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में ८+८+६ के विराम से २२ मात्राएँ और अंत में सगण होता है। ५. संख्याओं आदि का जोड़। योग। ६. ब्याज। सूद। ७. एक प्रकार का धान जो अगहन में तैयार होता है। इसका चावल सैकड़ों वर्षों तक रखा जा सकता है। स्त्री० [सं० राशि=राशि-चक्र में तारा समूह] प्रवृत्ति, रुचि, स्वभाव आदि की अनुकूलता। जैसे—उनसे किसी की रास नहीं बैठती। क्रि० प्र०—बैठना।—बैठाना। वि० १. उक्त अर्थ के विचार से, अनुकूल, लाभदायक शुभ अथवा हितकर। जैसे—यह मकान उन्हें खूब रास आया है (अर्थात् इसे पाकर वे अच्छे सम्पन्न या सुखी हुए हैं)। २. उचित। ठीक। मुनासिब। वाजिब। स्त्री० [फा० मिलाओ, सं० रश्मि, प्रा०रस्मि] १. घोड़े बैल आदि पशुओं को चलाने की रस्सी। जैसे—घोडे़ की बागडोर या बैल की रास। मुहावरा—रास कड़ी करना= (क) घोड़े की लगाम अपनी ओर खींचे रहना। (ख) लाक्षणिक रूप में किसी पर कड़ा या पूरा नियंत्रण रखना। रास में लाना=अपने अधिकार या वश में करना। २. रस्सा या रस्सी। उदाहरण—राणों षिमै न रास प्रद्यत्नो साँड़ प्रताप सी।—प्रिथीराज। स्त्री० [इब, राश=सिर] १. चौपायों की गिनती के समय संख्या-सूचक इकाइयों के साथ लगनेवाली संज्ञा। (हेड आँफ कैटल) जैसे—चार रास घोड़े पाँच रास बैल। २. चौपायों या पशुओं का झुंड।
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रास-चक्र  : पुं० राशि-चक्र। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रास-धारी (रिन्)  : पुं० [सं० रास+धृ (धारण)+णिनि] १. वह जो रासलीला का व्यवस्थापक हो। २. रासलीला की मण्डली का प्रधान। ३. वह जो रास-लीला में सम्मिलित होकर अभिनय, नृत्य आदि करता हो। स्त्री० राजस्थानी नृत्य नाट्य की एक विशिष्ट शैली जो ब्रज की रासलीला की तरह होती और जिसमें धार्मिक लोक-नायकों के चरित्र का अभिनय होता है।
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रास-नशीन  : वि० [सं० राशि+फा० नशीन] १. जो किसी का रास अर्थात् सम्पत्ति का उत्तराधिकारी हुआ हो। २. गोद बैठाया हुआ। दत्तक। मुतबन्ना (लड़का)।
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रास-नृत्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] गति के अनुसार नृत्य का एक भेद।
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रास-पूर्णिमा  : स्त्री० [सं० ष० त०] मार्गशीर्ष पूर्णिमा। श्रीकृष्ण ने रास-क्रीड़ा इसी तिथि को आरम्भ की थी।
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रास-बिहारी (रिन्)  : पुं० [सं० रास-वि√ह्र+णिनि, उप० स०] श्रीकृष्णचंद्र।
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रास-मंडल  : पुं० [सं० ष० त०] १. श्रीकृष्ण के रास-क्रीड़ा करने का स्थान। २. रास-क्रीड़ा या रास-लीला करनेवालों की मण्डली। ३. उक्त मण्डली का अभिनय।
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रास-मंडली  : स्त्री० [सं० ष० त०] रासधारियों का समाज या टोली।
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रास-यात्रा  : स्त्री० [सं० ष० त०] शरत् पूर्णिमा के दिन मनाया जानेवाला एक प्राचीन उत्सव (पुराण) २. तांत्रिकों का एक उत्सव जिसे वे चैत्र पूर्णिमा को मानते हैं।
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रास-लीला  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. वे नृत्यात्मक क्रीड़ाएँ जो श्रीकृष्ण अपनी सखियों के साथ करते थे। २. वह नाटक या अभिनय जिसमें कृष्ण और गोपियों की प्रेम-संबंधी क्रीड़ाएँ दिखाई जाती है।
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रास-विलास  : पुं० [सं० ष० त०] रास-क्रीड़ा।
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रासक  : पुं० [सं० रास+कन्] एक तरह का हास्य-रस-प्रधान उपरूपक जिसमें पाँच अभिनेता होते हैं। इसका नायक मूर्ख और नायिका चतुर होती है।
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रासन  : वि० [सं० रसना+अण्] स्वादिष्ट। जायकेदार। पुं०=राशन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रासना  : स्त्री०=रास्ना।
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रासा  : पुं० [हिं० रासा=एक प्रकार का गेय पद] १. वह काव्य जिसमें किसी के वीरतापूर्ण कृत्यों या युद्धों का सविस्तर वर्णन हो। २. किसी प्रकार का कथा-काव्य (राज०) ३. बाइस मात्राओं का एक छंद जिसके अंत में सगण होता है। ४. गहरी तकरार या हुज्जत। लड़ाई-झगड़ा।
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रासायन  : वि० [सं० रसायन+अण्] १. रसायन संबंधी। २. रसायन के रूप में होनेवाला।
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रासायनिक  : वि० [सं० रसायन√ठक्—इक] रसायन-शास्त्र-संबंधी। रसायन का। पुं० वह जो रसायन-शास्त्र का ज्ञाता हो।
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रासि  : स्त्री०=राशि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रासिख  : वि० [अ० रासिख] १. पक्का। मजबूत। अटल। स्थिर।
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रासी  : स्त्री० [देश] १. तीसरी बार खींची हुई शराब जो सबसे निकृष्ट समझी जाती है। २. सज्जी। वि० १. खराब, झूठा या नकली। २. जिसमें खोट या मिलावट हो। जैसे—सोने का रासी तार। स्त्री०=राशि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रासु  : वि० [फा० रास्त] १. सीधा। सरल। २. उचित। ठीक। वाजिब। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रासेरस  : पुं० [सं० अलुक० स०] १. गोष्ठी। २. रास-बिहार। रासक्रीड़ा। ३. श्रृंगार। सजावट। ४. उत्सव। ५. परिहास। हँसी-ठठ्ठा।
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रासेश्वरी  : स्त्री० [सं० रास-ईश्वरी, ष० त०] राधा।
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रासो  : पुं० [सं० रहस्य] किसी राजा का पद्यमय जीवन-चरित्र। जैसे—पृथ्वीराज रासो।
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रास्त  : वि० [फा०] १. दाहिने ओर पड़ने या होनेवाला। दाहिना। २. सीधा। सरल। ३. ठीक। दुरुस्त। ४. उचित। वास्तविक। वाजिब। ५. अनुकूल। मुआफिक। क्रि० प्र०—आना।—पड़ना।—होना।
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रास्तगो  : वि० [फा०] [भाव० रास्तगोई] सब बोलनेवाला सत्यवक्ता।
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रास्तगोई  : स्त्री० [फा०] १. सत्य बोलना। २. सत्य-कथन।
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रास्तबाज  : वि० [फा० रास्तबाज़] [भाव० रास्तबाजी] ईमानदार और सच्चा। विशेषतः लेन-देन में साफ २. नेकचलन। सदाचारी।
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रास्तबाजी  : स्त्री० [फा० रास्तबाज़ी] १. ईमानदारी। सच्चाई। २. सदाचार।
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रास्ता  : पुं० [फा० रास्तः] १. वह कच्ची या पक्की जमीन जिस पर लोग सामान्यतया चलते-फिरते या आते-जाते रहते हैं। मुहावरा—रास्ता कटना=चलने से रास्ता पार या पूरा होना। जैसे—बात-चीत में ही आधा रास्ता कट गया। (किसी का) रास्ता काटना=किसी के चलने के समय उसके सामने से होकर किसी का निकल जाना। जैसे—बिल्ली रास्ता काट गई। रास्ता देखना या पकड़ना= (क)मार्ग का अवलंबन करना। रास्ते पर चलना। (ख) कहीं से हटकर चले जाना। जैसे—अच्छा, अब तुम अपना रास्ता देखो। (या पकड़)। (किसी का) रास्ता देखना=प्रतीक्षा करना। हटाना। (ख) इधर-उधर की बातें करके टालना। रास्ते पर लाना=सुमार्ग पर चलाना। अच्छे या ठीक रास्ते पर लगाना। रास्ते लगना= (क) चल पड़ना। (ख) ऐसे मार्ग पर चलना जिससे उद्देश्य सिद्ध हो। २. प्रथा। रीति। चाल। जैसे—अब तो आपने यह नया रास्ता चला ही दिया है। ३. उपाय। तरकीब। युक्ति। जैसे—अभी तो इस संकट से निकलने का रास्ता सोचना है। मुहावरा—(किसी को) रास्ता बताना= (क) उपाय, तरकीब या युक्ति बताना। (ख) कोई काम करने का ढंग बताना या सिखाना।
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रास्ना  : स्त्री० [सं०√रस् (आस्वादन)+न, दीर्घ, +टाप्] १. गंधना हुली नामक कंद जो आसाम, लंका, जावा आदि में अधिकता से होता है। २. गंधनाकुली। ३. रुद्र की प्रधान पत्नी।
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रास्निका  : स्त्री० [सं० रास्ना+कन्+टाप्, ह्रस्व, इत्व] रास्ना।
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रास्य  : पुं० [सं० रास्+यत्] श्रीकृष्ण।
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