| शब्द का अर्थ | 
					
				| लत					 : | स्त्री० [अ० इल्लत] बुरी टेक। क्रि० प्र०—पडना।—लगना। स्त्री० [हिं० लात०] ‘लात’ का वह संक्षिप्त रूप जो उसे यौ० के आरम्भ में लगने से प्राप्त होता है। जैसे—लतखोर, लत-मर्दन। स्त्री० =लता। | 
			
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				| लत-खोर					 : | वि० [हिं० लात+फा० खोर खानेवाला] (व्यक्ति) जो प्रायः लात खाता अर्थात् घुड़की-झिड़की आदि सुनते रहने का अभ्यस्त हो गया हो। जो निर्लज्ज बना रहकर बुरी आदतें न छोड़ता हो या ठीक तरह से काम न करता हो। पुं० =लत-खोरा। | 
			
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				| लत-खोरा					 : | पुं० [हिं० लत+फा० ख़ोर=खानेवाला] [स्त्री० लतखोरिन] दरवाजे पर खड़ा हुआ पैर पोंछने का कपड़ा या पायदाज। पावदान। वि० =लतखोर। | 
			
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				| लत-मर्दन					 : | स्त्री० [हिं० लात+सं० मर्दन] १. पैरों से कुचलने या रौंदने की क्रिया या भाव। २. लातों से किसी को मारने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| लतड़ी					 : | स्त्री० =लतरी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लतपत					 : | वि० =लथपथ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लतर					 : | स्त्री० [सं० लत] १. लता। बेल। २. चित्रकला में लता की आकृति या अंकन। | 
			
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				| लतरा					 : | पुं० [देश] एक प्रकार का मोटा अन्न। बरबरा। रेवँछ। | 
			
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				| लतरी					 : | स्त्री० [हिं० लतर] एक प्रकार की घास या पौधा जो खेतों में मटर के साथ बोया जाता है। इसी के बीज खेसारी कहलाते हैं, जो गरीब लोग खाते हैं। स्त्री० [हिं० लात] १. पुरानी चाल की एक तरह की हलकी जूती। २. फटा-पुराना जूता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लतहा					 : | वि० [हिं० लात+हा (प्रत्यय)] [स्त्री० लतही] (पशु) जो लात मारता हो। जैसे—लतहा घोड़ा। | 
			
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				| लता					 : | स्त्री० [सं०√लत् (लपेटना)+अच्+टाप्] १. ऐसे विशिष्ट प्रकार के पौधे की संज्ञा जिनके कांड और शाखाएं पतली नरम तथा लचीली होती हैं तथा जो किसी आधार के सहारे खड़ी होती हैं, और आधार के अभाव में जमीन पर फैल जाती हैं। जैसे—अंगूर की लता। २. कोमल कांड या शाखा। जैसे—पद्यलता। ३. सुंदरी स्त्री। | 
			
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				| लता-कर					 : | पुं० [मध्य० स०] नाचने में हाथ हिलाने का एक प्रकार। | 
			
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				| लता-करंज					 : | पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का करंज या कंजा। कंट-करेज। | 
			
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				| लता-कस्तूरी					 : | स्त्री० [मध्य० स०] दक्षिण भारत में होनेवाला एक प्रकार का पौधा जिसके अंगों का उपयोग वैद्यक में होता है। | 
			
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				| लता-कुँज					 : | पुं० [ष० त०] लताओं से छाया हुआ स्थान। | 
			
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				| लता-गृह					 : | पुं० [मध्य० स०] लता-कुंज। (दे०) | 
			
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				| लता-जाल					 : | पुं० [ष० त०] बहुत-सी लताओं के योग से बना हुआ जाल या उसके नीचे का छायादार स्थान। | 
			
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				| लता-जिह्न					 : | पुं० [ब० स०] सर्प। साँप। | 
			
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				| लता-तरु					 : | पुं० [उपमित स०] १. नारंगी का पेड़। २. ताड़ का पेड़। ३. शाल वृक्ष। साखू। | 
			
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				| लता-पता					 : | पुं० [सं० लतापत्र] १. लता और पत्ते। पेड़-पत्ते। पेड़ों और पौधों का समूह। २. पौधों, वनस्पतियों आदि की हरियाली। ३. जड़ी-बूटी। ४. निकम्मी और रद्दी चीजें। | 
			
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				| लता-पनस					 : | पुं० [ब० स०] तरबूज। | 
			
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				| लता-पाश					 : | पुं० =लता-जाल। | 
			
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				| लता-फल					 : | पुं० [सं० ब० स०] पटोल। परवल। | 
			
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				| लता-बंध					 : | पुं० [ब० स०] कामशास्त्र में संयोग का एक आसन। बंध या मुद्रा। | 
			
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				| लता-भवन					 : | पुं० =लता-कुंज। | 
			
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				| लता-मंडप					 : | पुं० [मध्य० स०] छाई हुई लताओं से बना हुआ मंडप या छायादार स्थान। | 
			
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				| लता-मणि					 : | पुं० [उपमित स०] प्रवाल। मूँगा। | 
			
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				| लता-यष्टि					 : | स्त्री० [उपमित स०] मंजिष्ठा। मंजीठ। | 
			
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				| लता-वृक्ष					 : | पुं० [उपमित स०] सलई का पेड़। शल्लकी। | 
			
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				| लता-वेष्ट					 : | पुं० [लता-आवेष्ट, ब० स०] १. काम शास्त्र में एक प्रकार का रति-बंध या आसन। २. पुराणानुसार द्वारकापुरी के पास का एक पर्वत। वि० लताओं से घिरा हुआ। | 
			
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				| लता-साधन					 : | पुं० [तृ० त०] तंत्र या वाम मार्ग में एक प्रकार की साधना जिसमें प्रधान अधिकरण लता अर्थात् स्त्री होती है। | 
			
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				| लतांगी					 : | स्त्री० [सं० ब० स०] १. कर्कटश्रृंगी। काकड़ासींगी। २. संगीत में कर्णाटकी पद्धति की एक रागिनी। | 
			
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				| लताड़					 : | स्त्री० [हिं० लताड़ना] १. लताड़ने की क्रिया या भाव। २. कठिनता। दिक्कत। ३. परेशानी। हैरानी। ४. दे० ‘लाथड़’। | 
			
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				| लताड़ना					 : | स० [हिं० लात] १. लातों या पैरों से कुचलना। रौंदना। २. लातों से मारना। ३. किसी लेटे हुए व्यक्ति के विशिष्ट अंगों पर खड़े होकर धीरे-धीरे इस प्रकार चलना कि उसकी पीड़ा या थकावट दूर हो जाय और उसे आराम मिले। ४. तंग या परेशान करना। | 
			
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				| लतापर्णी					 : | स्त्री० [ब० स०+ङीष्] १. तालमूल। २. मधूरिका। मेवड़ी। | 
			
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				| लताफ़त					 : | स्त्री० [अ०] १. लतीफ होने की अवस्था या भाव। सूक्ष्मता। २. कोमलता। ३. उत्तमता। ४. स्वादिष्टता। | 
			
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				| लतार्क					 : | पुं० [लता-अर्क, ब० स०] प्याज का पौधा। | 
			
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				| लतिका					 : | स्त्री० [सं० लता+कन्+टाप्, इत्व] छोटी लता। बेल। | 
			
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				| लतियर					 : | वि० =लतियल (लतखोर)। | 
			
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				| लतियल					 : | वि० [हिं० लात+इयल (प्रत्यय)] १. जो लतियाया जाता हो अथवा जो बिना लतियाये जाने से सीधे रास्ते पर न चलता हो। २. जिसे लात खाने अर्थात् घुड़की झिड़की सुनने और मार खाने की आदत पड़ गई हो। | 
			
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				| लतियाना					 : | स० [हिं० लात+आना (प्रत्यय)] १. पैरों से दबाना या रौंदना। २. लातों से मारना। स० [हिं० लत्ती] लत्ती या डोरी से लट्टू को लपेटना। उदाहरण—लतियावहु जे तौ लट्टन लौं तेतहिं गाजै।—रत्न०। | 
			
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				| लतिहर (हल)					 : | वि० =लतियल। | 
			
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				| लतीफ़					 : | वि० [अ०]१. जायकेदार। स्वादिष्ट। २. मजेदार। रसमय। ३. कोमल। मुलायम। ४. सुपाच्य (भोजन) ५. उत्तम। बढ़िया। | 
			
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				| लतीफ़ा					 : | पुं० [अ० लतीफः] १. हास्यपूर्ण छोटी कहानी। चुटकुला। २. हंसी की अनोखी या विलक्षण बात। | 
			
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				| लत्त					 : | स्त्री० =लता। | 
			
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				| लत्ता					 : | पुं० [सं० लत्तक] १. फटा-पुराना कपड़ा। चीथड़ा। २. कपड़े का टुकड़ा। पद—कपड़ा-लत्ता। मुहावरा—लत्ता (या लत्ते) लेना=किसी की हँसी उड़ाते हुए उसे बहुत ही उपेक्ष्य सिद्ध करना। स्त्री० =लता। | 
			
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				| लत्तिका					 : | स्त्री० [सं०√लत् (आघात)+क्विन्+कन्+टाप्] गोधा। गोह (जन्तु)। | 
			
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				| लत्ती					 : | स्त्री० [हिं० लात] पशुओं द्वारा लात से किया जानेवाला आघात। स्त्री० [हिं० लत्ता] १. कपड़े की लम्बी धज्जी। २. गुड्डी या पतंग के नीचेवाले कोने में बाँधी जानेवाली कपड़े की धज्जी। ३. सूत की वह डोरी जो लट्टू नचाने के लिए उस पर लपेटी जाती है। ४. बांस में बँधी हुई कपड़े की धज्जी जिसे ऊँचा करके कबूतर उड़ाते हैं। | 
			
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