| शब्द का अर्थ | 
					
				| लस					 : | पुं० [सं०√लस् (सटना)+क] १. चिपकने या चिपकाने का गुण। श्लेषण। चिपचिपाहट। २. लासा। ३. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में रक्त का वह अंश या तत्त्व जिसके फलस्वरूप कुछ जीव-जन्तु कई विशिष्ट लोगों से बचे रहते हैं। सौम्य (सीरम) वि० दे० ‘सौम्य विज्ञान’। ४. दे० ‘लसी’। | 
			
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				| लसक					 : | पुं० [सं० लासक] नाचनेवाला। नर्तक। | 
			
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				| लसकर					 : | पुं० =लश्कर। | 
			
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				| लसदार					 : | वि० [सं० लस+फा० दार (प्रत्यय)] जिसमें लस हो। लसनेवाला। लसीला। | 
			
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				| लसन (नि)					 : | स्त्री० [हिं० लसना] १. लसने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. छटा। शोभा। ३. चमक। दीप्ति। | 
			
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				| लसना					 : | स० [सं० लसन] कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु के साथ इस प्रकार सटाना कि वह अलग न हो। चिपकाना। लेसना। जैसे—लिफाफे पर टिकट लसना। संयो० क्रि०—देना। अ० १. चिपकना। २. शोभित होना। फबना। ३. विराजमान होना। ४. प्रकाशमान होना। चमकना। | 
			
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				| लसम					 : | वि० [देश] जिसमें खोट या मेल हो। खोटा या दूषित। | 
			
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				| लसरका					 : | पुं० [हिं० लस] बहुत ही साधारण या जैसे-तैसे चलता रहनेवाला संपर्क या संबंध। क्रि० प्र०—लगाना।—लगा रहना। | 
			
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				| लसलसा					 : | वि० [हिं० लस] [स्त्री० लसलसी] गोंद की तरह चिपकनेवाला। चिपचिपा। लसीला। | 
			
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				| लसलसाना					 : | अ० [हिं० लस] लस से युक्त होने के कारण चिपकना। | 
			
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				| लसलसाहट					 : | स्त्री० [हिं० लसलसा] लसदार होने की अवस्था या भाव। चिपचिपाहट। | 
			
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				| लसिका					 : | स्त्री० [सं० लस+कन्+टाप्, इत्व] १. लाला। २. थूक। २. पेशी। | 
			
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				| लसित					 : | भू० कृ० [सं०√लस् (चमकना, क्रीड़ा)+क्त] १. शोभित। २. प्रकट। ३. क्रीड़ाशील। | 
			
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				| लसी					 : | स्त्री० [हि० लस] १. चिपचिपाहट। चेप। लस। २. ऐसी अवस्था जिसमें किसी प्रकार के आकर्षण, लाभ आदि के कारण साथ लगे रहने की इच्छा या प्रवृत्ति हो। जैसे—कुछ न कुछ लसी है, तभी तो तुम उसके साथ लगे रहते हों। ३. साधारण मेल-जोल या संपर्क। क्रि० प्र०—लगना।—लगाना। स्त्री०=लस्सी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लसीका					 : | स्त्री० =लसिका। | 
			
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				| लसीला					 : | वि० [हिं० लस+ईला (प्रत्यय)] [स्त्री० लसीली] लसदार। जिसमें लस हो। चिपचिपा। वि० [हिं० लसना] जो लस रहा हो, अर्थात् शोभायुक्त। सुन्दर। | 
			
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				| लसुन					 : | पुं० =लहसुन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लसुनिया					 : | पुं० =लहसुनिया। | 
			
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				| लसोड़ा					 : | पुं० [हिं० लस=चिपचिपाहट] १. एक प्रकार का छोटा पेड़। २. उक्त पेड़ के फल जो बेर के-से होते हैं। इनमें लसदार गूदा होता है, और ओषधि में इनका प्रयोग होता है। ३. लाक्षणिक अर्थ में किसी के साथ लगा रहनेवाला व्यक्ति। | 
			
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				| लसौटा					 : | पुं० [हिं० लासा+औटा (प्रत्यय)] चिड़ियाँ फंसाने की वह लग्गी जिस पर लासा लगा होता है। | 
			
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				| लस्टम-पस्टम					 : | अव्य० [अनु] १. बहुत ही मंद गति तथा साधारण रूप से। जैसे—तैसे। जैसे—अब-तक लस्टम-पस्टम थोड़ा बहुत काम हो ही रहा है। | 
			
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				| लस्त					 : | वि० [सं०√लस् (क्रीड़ा)+क्त] १. क्रीड़ित। २. शोभायुक्त। सुन्दर। ३. फबता या भला लगता हुआ। वि० [सं० श्लथ] १. थका हुआ। शिथिल। श्रम या थकावट से ढीला। जैसे—चलते-चलते शरीर लस्त हो गया। २. जिसमें कुछ करने की शक्ति न रह गई हो। अशक्त। | 
			
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				| लस्तक					 : | पुं० [सं० लस्त+कन्] धनुष का मध्य भाग। | 
			
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				| लस्तकी (किन्)					 : | पुं० [सं० लस्तक+इनि] धनुष। | 
			
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				| लस्तगा					 : | पुं० [हिं० लस+लगाव] १. बहुत थोड़ा सम्पर्क या संबंध। २. क्रम। सिलसिला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लस्सान					 : | वि० [अ] [भाव० लस्सानी] १. अधिक बोलनेवाला। वाचाल। २. लच्छेदार बातें कहनेवाला। | 
			
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				| लस्सी					 : | स्त्री० [सं० लप्सिका] दही का घोल विशेषतः वह घोल जिसे मथकर मक्खन निकाल लिया गया हो। वि० लाक्षणिक अर्थ में, तरल। पतला। स्त्री० =लसी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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