| शब्द का अर्थ | 
					
				| लाक्षा					 : | स्त्री० [सं०√लक्ष्य+अ+टाप्] लाख नामक लाल पदार्थ जो कुछ वृक्षों पर कीड़े बनाते हैं। दे० ‘लाख’। | 
			
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				| लाक्षा-गृह					 : | पुं० [सं० ष० त०] लाख का वह गृह जिसे दुर्योधन ने पाँडवों को जला देने की इच्छा से बनवाया था पर इसमें आग लगने से पहले ही सूचना पाकर पांडव लोग इसमें से निकल गये थे। | 
			
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				| लाक्षा-रस					 : | पुं० [सं० ष० त०] महावर जो पहले पानी में लाख उबाल कर बनाते थे। | 
			
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				| लाक्षा-वृक्ष					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] १. ढाक। पलास। २. कौशाम्र। कोसम। | 
			
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