| शब्द का अर्थ | 
					
				| लुक					 : | पुं० [सं० लोक=चमकना] १. वह लेप जिसे फेरने से वस्तुओं पर चमक आ जाती है। चमकदार रोगन। वार्निश। क्रि० वि०—फेरना। २. आग की लपक। ज्वाला। लौ। | 
			
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				| लुकंजन					 : | पुं० =लोपांजन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लुकंदर					 : | वि० [हिं० लुकना] १. (वह) जो लुक-छिप जाता हो। २. फलतः सामना या मुकाबला न करनेवाला। भग्गू। | 
			
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				| लुकना					 : | अ० [सं० लुक=लोप] ऐसी जगह जाकर रहना, जहाँ कोई देख न सके। आड़ में होना। छिपना। संयो० क्रि०—जाना।—रहना। पद—लुक-छिपकर-ऐसे प्रकार से या रूप में जिसमें लोग देख न सकें। चोरी से। | 
			
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				| लुकमा					 : | पुं० [अ० लुकमा] भोजन का उतना अंश जितना एक बार मुँह में डाला या लिया जाय। कौर। ग्रास। निवाला। | 
			
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				| लुक़मान					 : | पुं० [अ०] कुरान में वर्णित एक हकीम जो अपनी बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध है। | 
			
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				| लुकरी					 : | स्त्री० =लुकारी। | 
			
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				| लुकसाज़					 : | पुं० [हिं० लुक=चमकीला+फा० साज़] १. वह जो लुक अर्थात् चमकदार लेप बनाता या लगाता हो। २. एक प्रकार का चमड़ा जो सिझाया और चमकीला किया हुआ होता है। | 
			
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				| लुका-छिपी					 : | स्त्री० [हिं० लुकना+छिपना] १. लुकने-छिपने की क्रिया या भाव। २. लुकने-छिपने का बच्चों का एक खेल। | 
			
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				| लुकाठ					 : | पुं० [चीनी लु+क्यू से सं० लकुट] १. एक प्रकार का पेड़ जिसके फल आमड़े के बराबर और खाने में खट्टे-मीठे होते हैं। २. उक्त फल। | 
			
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				| लुकाना					 : | स० [हिं० लुकना] [भाव० लुकाना] लुकने में प्रवृत्त करना। छिपाना। अ०=लुकना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लुकारी					 : | स्त्री० [हिं० लुक] १. फूस का पूला या लकड़ी जिसका एक छोर जलता हो। मशाल की तरह जलती हुई लकड़ी। २. अग्नि। आग। | 
			
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				| लुकाव					 : | पुं० [हिं० लुकाना] लुकाने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| लुकेठा					 : | पुं० =लुआठा। | 
			
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				| लुकोना					 : | स०=लुकाना। | 
			
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				| लुक्क					 : | पुं० =लुक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| लुक्का					 : | पुं० [हिं० लुकना] लुक छिपकर दुष्कर्म करनेवाला या दुष्ट व्यक्ति। उदाहरण—हमने न मालूम तुम सरीखे कितने लुक्कों को तो चुटकी से ही मसल दिया है।—वृन्दावनलाल वर्मा। | 
			
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