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श्रवण  : पुं० [सं०√श्रु+ल्युट-अन] [वि० श्रवणीय] १. सुनने की क्रिया या भाव। सुनना। २. देवताओं के चरित्र, कथाएँ आदि सुनना। जो कि नवधा भक्ति में से एक प्रकार की भक्ति है। ३. सुनने की इंद्रिय। कान। ४. उक्त इन्द्रिय के द्वारा प्राप्त होनेवाला ज्ञान। ५. ज्योतिष में अश्विनी आदि २७ नक्षत्रों में से बाइसवाँ नक्षत्र जिसमें तीन तारे हैं और जिसका आकार तीर की तरह माना गया है।
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श्रवण-दर्शन  : पुं० [सं० ब० स०] साहित्य में, वह अवस्था जब कोई किसी के गुण सुनकर ही उसके प्रति मन में अनुरक्त होता है।
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श्रवण-द्वादशी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की ऐसी द्वादशी जो श्रवण नक्षत्र में पड़ती हो। कहते हैं कि भगवान् का वामन अवतार ऐसी ही द्वादशी को हुआ था इसलिए यह पुण्य तिथि मानी जाती है।
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श्रवणपूर  : पुं० [सं०] कान में पहनने का ताटंक नामक गहना।
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श्रवणेंद्रिय  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] सुनने की इन्द्रिय। कान।
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