शब्द का अर्थ
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अंतः :
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अव्य=अंतर्। |
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समानार्थी शब्द-
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अंतःकरण :
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पुं० [ष० त०] १. अन्दर की इन्द्रिय। २. मन की वह आन्तरिक वृत्ति या शक्ति जिसके द्वारा हम भले बुरे, सत्य-मिथ्या, सार असार की पहचान करते हैं। विवेक (कान्शेस)। हमारे यहाँ मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार चारों इसी के अंग माने गये हैं। ३. हृदय, जो इस शक्ति के रहने का स्थान माना गया है। |
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अंतःकलह :
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पुं० [ष० त०]=गृह-कलह। |
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अंतःकालीन :
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वि० [सं० अंचकाल, मध्य सं० +ख-ईन] दो कालों या घटनाओं के बीच का और फलता अस्थाई समय। (इन्टेरिम)। |
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अंतःकुटिल :
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वि० [सं० त०] जिसके मन में कपट हो। कपटी छली। |
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अंतःकोण :
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पुं० [ष० त०] अन्दर की ओर का कोना। |
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अंतःक्रिया :
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स्त्री० [ष० त०] १. अन्दर ही अन्दर होने वाली क्रिया या व्यापार। २. मन को शुद्ध करने वाला शुभ कर्म। |
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अंतःपटी :
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स्त्री० [ष० त०] १. चित्रपट पर बना हुआ प्राकृतिक दृश्य। २. रंगमंच पर परदा। |
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अंतःपुर :
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पुं० [ष० त०] घर या महल का वह भीतरी भाग जिसमें स्त्रियाँ रहती हैं। रनिवास जनानखाना। |
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अंतःपुरिक :
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पुं० [सं० अंतःपुर+ठक-इक] अंतःपुर का रक्षक। कंचुकी। |
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अंतःपुष्प :
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पुं० [मध्य० स०] स्त्रियों का रज। |
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अंतःप्रकृति :
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स्त्री० [मध्य० स०] १. मूल स्वभाव। २. हृदय। ३. प्राचीन भारत में राजा का मंत्रिमंडल। |
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अंतःप्रज्ञ :
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पुं० [ब० स०] आत्मज्ञानी। |
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अंतःप्रवाह :
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पुं० [मध्य सं०] अन्दर की अन्दर बहने वाली धारा। भीतरी प्रवाह। |
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अंतःप्रांतीय :
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वि० [सं० अंतःप्रात,मध्य स०√छ-ईय] किसी प्रांत के भीतरी भाग या बातों से सम्बन्ध रखने वाला। वि० दे० अंतर-प्रांतीय। |
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अंतःप्रादेशिक :
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वि० [सं० अंतः प्रदेश, मध्य स०+ठञ्-इक]=अंतःप्रांतीय। वि० दे० अंतर-प्रांदेशिक। |
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अंतःप्रेरणा :
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स्त्री० [ष० त०] मन में आपसे आप उत्पन्न होने वाली सहज प्रेरणा। |
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अंतःराष्ट्रीय :
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वि० [स० अंतः राष्ट्र मध्य स०+छ-ईय] किसी राष्ट्र के भीतरी भाग से सम्बन्ध रखने या उसमें होनेवाला। वि० दे० ‘अंतर-राष्ट्रीय’। |
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अंतःशरीर :
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पुं० मध्या स०]=लिंग शरीर। |
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अंतःशुद्धि :
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स्त्री० [ष० त०] चित्त या अतःकरण की पवित्रता और शुद्धि। मन को विकारों से दूर या अलग रखना। |
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अंतःसंज्ञ :
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पुं० [ब० स०] वह जो अपने मन के दुखः सुख के अनुभव मन में ही रखें दूसरों पर प्रकट न कर सके। जैसे—वृक्ष। |
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अंतःसत्त्व :
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वि० [ब० स०] जिसके अन्दर शक्ति या सत्त्व हो। पुं० भिलावाँ (वृक्ष और फल)। |
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अंतःसत्त्वा :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] गर्भवती। |
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अंतःसर (स्) :
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पुं० [कर्म स०] १. हृदय रूपी सरोवर। उदाहरण—बढ़ी सभ्यता बहुत किन्तु अंतःसर अभी तक सूखा है—दिनकर। २. अंतःकरण में रहने वाले दया, प्रेम आदि मानवोचित्त भाव। |
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अंतःसलिल :
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स्त्री० [ब० स०] जिसकी धारा अन्दर ही अन्दर बहती हो, ऊपर दिखाई देती हो। |
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अंतःसलिला :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] १. सरस्वती नदी। २. फल्गुनदी। |
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अंतःसार :
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पुं० [ष० त०] [वि० अंतः सारवान्] १. भीतरी तत्त्व। २. मन बुद्धि और अहंकार का योग। ३. अंतरात्मा। वि० [ब० स०] १. जिसमें तत्त्व या सार हो। २. पक्का, पुष्ट। ३. दृढ़, बलवान्। |
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अंतःस्थ :
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वि० [स०अंतस्√स्था (ठहरना)+क] भीतर या बीच में स्थित। दे० अंतःस्थित। पुं० स्पर्श और ऊष्मा वर्णों के बीच में पड़नेवाले य, र, ल, व-ये चार वर्ण। |
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अंतःस्थराज्य :
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पुं० [कर्म स०] दो बड़े राज्यों के बीच में या उनकी सीमाओं पर स्थित होने वाला वह छोटा राज्य जो उन दोनों राज्यों के बीच में संघर्ष न आने देता हो। (बफर-स्टेट) |
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अंतःस्थित :
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वि० [स० त०] १. अंतःकरण में स्थित मन या हृदय में होने वाला। २. अन्दर का। भीतरी। |
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अंतःस्वेद :
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वि० [ब० स०] जिसके अन्दर स्वेद हो। पुं० हाथी। |
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