शब्द का अर्थ
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अंतस् :
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पुं०=अंतःकरण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंतस्तल :
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पुं० [ष० त०] १. हृदय या मन। २. अचेतन या सुप्त मन। |
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अंतस्ताप :
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पुं० [मध्य स०] मन में होने वाला दुख, व्यथा आदि। मनस्ताप। |
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अंतस्थ :
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वि० [सं० अंत√स्था (ठहरना)+क] अंत या अंतिम अंश में रहने या होनेवाला। अंतिम। जैसे—अंतस्थ वर्ण। विशेष—दे० ‘अंतःस्थ’। |
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अंतस्थ-वर्ण :
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पुं० [क्रम० स०] देवनागिरी लिपि में य, र, ल, और व यो चार वर्ण है। |
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अंतस्सलिला :
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स्त्री० [ब० स०]=अंतः सलिला। |
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अंतस्सार :
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वि० [ब० स०] १. भीतर से ठोस। पोढ़ा। २. बलवान। पुं० (मध्य स०) १. ठोसपन। २. अंतरात्मा। ३. मन, बुद्धि और अहंकार का समन्वित रूप। |
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